नयी दिल्ली : कंपनियों से संबंधित लंबित मुकदमों को कम करने के लिए सरकार और न्यायपालिका के समन्वित प्रयासों की जरूरत है. संसद में आज पेश आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि इससे कारोबार सुगमता रेटिंग में सुधार लाने में मदद मिलेगी और साथ ही आर्थिक गतिविधियों को भी प्रोत्साहन मिलेगा. वित्त वर्ष 2017-18 की आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि कारोबार सुगमता की स्थिति को बेहतर करने के लिए अपीलीय तथा न्यायपालिका क्षेत्रो में लंबित वाणिज्यिक मामलों, देरी और पुराने लटके मामलों का निपटान करने की जरूरत है.
इसमें कहा गया है कि इन मुद्दों की वजह से विवादों का निपटान, अनुबंध को लागू करने का काम प्रभावित हो रहा है. साथ ही इससे निवेश हतोत्साहित हो रहा है, परियोजनाएं अटकी हुई हैं, कर संग्रह पर असर पड़ रहा है, करदाताओं पर दबाव पड़ रहा है तथा कानूनी लागत बढ़ रही है.
इसमें कहा गया है कि विश्व बैंक की कारोबार सुगमता रिपोर्ट 2018 में भारत उल्लेखनीय सुधार के साथ 100वें स्थान पर पहुंच गया है. इसके बावजूद अनुबंधों को लागू करने के मोर्चे पर भारत काफी पीछे है. ताजा रिपोर्ट में अनुबंधों को लागू करने के मामले में भारत की रैंकिंग मामूली सुधार के साथ 172 से 164 पर पहुंची है.
समीक्षा में आर्थिक वृद्धि और विकास के लिए प्रभावी, दक्ष और तेजी से अनुबंध लागू करने की व्यवस्था पर जोर दिया गया है. समीक्षा कहती है कि उच्चतम न्यायालय, आर्थिक न्यायाधिकरणों तथा कर विभाग में लंबित और अटके मामलों की वजह से अर्थव्यवस्था बुरी तरह प्रभावित हो रही है. इससे परियोजनाएं अटक रही हैं, मुकदमेबाजी की लागत बढ़ रही है, कर राजस्व प्रभावित हो रहा है और निवेश घट रहा है.
मार्च, 2017 को समाप्त तिमाही तक आयुक्त (अपील), सीमा शुल्क, उत्पाद एवं सेवा कर अपीलीय न्यायाधिकरण, उच्च न्यायालयों तथा उच्चतम न्यायालय में लंबित अपीलों की संख्या 1.45 लाख थी. मूल्य के हिसाब से यह लंबित मामले 2.62 लाख करोड़ रुपये के हैं.
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