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IIT Delhi के प्रोफेसरों के सहयोग से सैनफे का कारनामा, केले के रेशे से बनाया 120 बार इस्तेमाल किया जाने वाला नैपकिन

नयी दिल्ली : आईआईटी दिल्ली से जुड़े एक स्टार्टअप ने पहली दफा 120 बार इस्तेमाल में लाये जा सकने वाले सेनेटरी नैपकिन की पेशकश की है, जिसे समग्र केले के रेशे से बनाया गया है. इस प्रकार इसे दो साल तक चल सकता है और इसे लगभग 120 बार दोबारा उपयोग में लाया जा सकता […]

नयी दिल्ली : आईआईटी दिल्ली से जुड़े एक स्टार्टअप ने पहली दफा 120 बार इस्तेमाल में लाये जा सकने वाले सेनेटरी नैपकिन की पेशकश की है, जिसे समग्र केले के रेशे से बनाया गया है. इस प्रकार इसे दो साल तक चल सकता है और इसे लगभग 120 बार दोबारा उपयोग में लाया जा सकता है. आईआईटी दिल्ली के प्रोफेसरों की सहायता से ‘सैनफे’ द्वारा विकसित दो नैपकिन की कीमत 199 रुपये रखी गयी है. टीम ने इस उत्पाद के लिए एक पेटेंट का आवेदन जमा कराया है.

इसे भी देखें : Sanitary Napkin को साफ करने के लिए IIT की छात्राओं ने बनायी खास Device

स्टार्टअप के संस्थापकों में से एक अर्चित अग्रवाल ने कहा कि अधिकांश सैनिटरी नैपकिन सिंथेटिक सामग्री और प्लास्टिक से बने होते हैं, जिन्हें सड़ने में 50-60 साल से ज्यादा वक्त लग सकते हैं. मासिक धर्म के समय इस्तेमाल किये जाने वाले इन नैपकीन को कूड़ेदान, खुले स्थान या और जल में फेंक दिया जाता है, जला दिया जाता है या मिट्टी में दबा दिया है या फिर शौचालयों में बहा दिया जाता है.

उन्होंने कहा कि ये निपटान तकनीकें पर्यावरण के लिए खतरा पैदा करती हैं. उदाहरण के लिए, जलने से डाइऑक्सिन के रूप में कार्सिनोजेनिक धुएं का उत्सर्जन होता है, जिससे वायु प्रदूषण का खतरा पैदा होता है. इस कचरे को लैंडफिल में डालने से केवल कचरे का बोझ बढ़ता है. अग्रवाल ने हैरी सेहरावत के साथ अपने स्टार्टअप की स्थापना उस समय की थी, जब वे भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, दिल्ली में बीटेक कर रहे थे.

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