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विश्वविद्यालयों में कुलाधिपति की क्षमता को किया सीमित

कोलकाता : राज्यपाल जगदीप धनखड़ और राज्य की तृणमूल कांग्रेस सरकार में चल रहे टकराव के बीच विश्वविद्यालयों में कुलाधिपति (राज्यपाल) के अधिकारों को सीमित करने के लिए राज्य सरकार ने नियमों में बदलाव किया है. मंगलवार को वेस्ट बंगाल यूनिवर्सिटीज एंड कॉलेज (एडमिनिस्ट्रेशन एंड रेगुलेशन) एक्ट 2017 के सेक्शन 17 में राज्यपाल को प्राप्त […]

कोलकाता : राज्यपाल जगदीप धनखड़ और राज्य की तृणमूल कांग्रेस सरकार में चल रहे टकराव के बीच विश्वविद्यालयों में कुलाधिपति (राज्यपाल) के अधिकारों को सीमित करने के लिए राज्य सरकार ने नियमों में बदलाव किया है. मंगलवार को वेस्ट बंगाल यूनिवर्सिटीज एंड कॉलेज (एडमिनिस्ट्रेशन एंड रेगुलेशन) एक्ट 2017 के सेक्शन 17 में राज्यपाल को प्राप्त अधिकारों को सीमित करने वाले नियम को राज्य विधानसभा में रखा गया.

शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी ने गैजेट अधिसूचना के जरिये वेस्ट बंगाल स्टेट यूनिवर्सिटीज रूल्स 2019 को सदन में रखा. इस संबंध में शिक्षा मंत्री ने कहा कि राज्य सरकार ने वर्ष 2017 में ही अधिनियम पारित कर लिया गया था. उसी समय से यह नियम भी तैयार कर लिया गया था, जिसे मंगलवार को सदन के समक्ष रखा गया. उन्होंने कहा कि इस पर सदन में चर्चा करना जरूरी नहीं है.
गौरतलब है कि इस नये नियम के लागू होने से विश्वविद्यालयों के पदेन कुलाधिपति के तौर पर राज्यपाल के सारे अधिकार सीमित कर दिये गये हैं.पहले नियम था कि विश्वविद्यालयों में सेनेट अथवा कोई और बैठक करने से पहले कुलाधिपति के तौर पर राज्यपाल को सारी जानकारी देनी होगी. उसके बाद राज्यपाल बैठक बुलाते रहे हैं. अब विश्वविद्यालय की ओर से शिक्षा विभाग को बताया जायेगा जहां से राज्यपाल को सीधे तौर पर बैठक की केवल तारीख बतायी जायेगी.
मानद उपाधि की सूची में बदलाव नहीं कर पायेंगे कुलाधिपति
इसके अलावा विश्वविद्यालय से मानद उपाधि देने के लिए जिन लोगों की सूची तैयार की जाती थी वह राज्यपाल के पास भेजने पड़ती थी. आवश्यकता पड़ने पर राज्यपाल उस तालिका में बदलाव करने की क्षमता रखते थे. लेकिन जो नया नियम बनाया जा रहा है, उसमें विश्वविद्यालयों के कुलपति राज्य के शिक्षा विभाग को सूची भेजेंगे.
उसके बाद शिक्षा विभाग की ओर से इसे राज्यपाल के पास भेज दिया जायेगा. राज्यपाल उस सूची में कोई बदलाव नहीं कर पायेंगे. केवल उन्हें जानकारी दी जायेगी. कुल मिलाकर कहा जाये तो विश्वविद्यालयों के लिए राज्यपाल को प्रदत सारे अधिकारों को इस नये नियम के जरिये खत्म कर दिया गया है और सीधे तौर पर राज्य का शिक्षा विभाग विश्वविद्यालयों से संवाद करेगा.
विश्वविद्यालयों में कुलपति की नियुक्ति पर भी कुलाधिपति की क्षमता समाप्त
पहले यह भी नियम था कि किसी भी विश्वविद्यालय में कुलपति की नियुक्ति के लिए सर्च कमेटी के जरिये तीन लोगों के नाम की सूची तैयार कर शिक्षा विभाग राज्यपाल के पास भेजता था. उन तीन लोगों में से किसी एक को राज्यपाल कुलपति के तौर पर नियुक्त कर सकते थे. लेकिन नये विधेयक के पारित होने पर शिक्षा विभाग सीधे तौर पर कुलपति का चुनाव करेगा और एक ही व्यक्ति का नाम राज्यपाल के पास भेजा जायेगा, जिसे अनुमति देने के लिए राज्यपाल बाध्य होंगे.
किसी भी कुलपति अथवा विश्वविद्यालय के संबंध में राज्यपाल की अगर कोई शिकायत रहेगी तो सीधे तौर पर वह कोई फैसला नहीं ले सकेंगे, बल्कि शिक्षा विभाग को बताना होगा. शिक्षा विभाग उसकी जांच करेगा और उसी के बाद आगे की कार्रवाई का निर्णय लिया जा सकेगा.
दीक्षांत समारोह को लेकर कुलपति के निर्णय में हस्तक्षेप नहीं कर पायेंगे कुलाधिपति
दीक्षांत समारोह को लेकर भी विश्वविद्यालय के कुलपति जो निर्णय लेंगे, उसमें राज्यपाल हस्तक्षेप नहीं कर पायेंगे. इसके अलावा विश्वविद्यालयों के संबंध में राज्यपाल अगर कोई प्रस्ताव देना चाहते हैं तो वह सीधे तौर पर विश्वविद्यालय को नहीं देंगे, बल्कि शिक्षा विभाग को देना होगा. अब तक राज्यपाल प्रस्ताव को विश्वविद्यालय के कुलपति तक भेजते थे.
इसके अलावा विश्वविद्यालयों में अब तक कुलाधिपति के तौर पर राज्यपाल के लिए अलग सचिवालय था, लेकिन अब उसे भी खत्म कर दिया गया है. अब विश्वविद्यालयों में किसी भी तरह के बदलाव का सीधा अधिकार राज्य शिक्षा विभाग के पास होगा.

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