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डुमरांव में उद्योगों-धंधों के बंद होने से युवाओं के सुनहरे सपनों पर लगा ग्रहण

कोरोना काल के दौरान बिहार में लोकतंत्र के महापर्व का शंखनाद होते ही रोजगार की तलाश में इधर-उधर भटक रहे युवाओं की लंबी कतार अपने सुनहरे भविष्य को गढ़ने के लिए आतुर दिख रही है.

अमरनाथ केसरी, डुमरांव : कोरोना काल के दौरान बिहार में लोकतंत्र के महापर्व का शंखनाद होते ही रोजगार की तलाश में इधर-उधर भटक रहे युवाओं की लंबी कतार अपने सुनहरे भविष्य को गढ़ने के लिए आतुर दिख रही है. ऐसे युवा कोरोना को पराजित करते हुए लोकतंत्र के महापर्व में अपनी नयी उम्मीद के साथ भागीदारी निभायेंगे. बेरोजगार युवकों से जब ‘प्रभात खबर’ की टीम ने उनके भविष्य को लेकर बात की तो युवाओं का दर्द झलक पड़ा और उन्होंने बेबाक विचार रखी. डुमरांव में डेढ़ दशक पूर्व उद्योग को लेकर यह इलाका पूरे शाहाबाद क्षेत्र की शान बना था.

किलो के भाव से बिक गयी औद्योगिक इकाइयां

क्षेत्र के विकास से जुड़ी औद्योगिक इकाइयां कई थपेड़े सहे, लेकिन व्यवस्था की काली स्याही ने इस गौरवशाली अतीत को हमेशा के लिए मिटा दिया. कई इकाइयां सैकड़ों लोगों की रोजी-रोटी की जरिया बनी थी. उस मिलों की गड़गड़ाहट बंद हो गयी और सैकड़ों हाथ बेरोजगार हो गये. अपने भविष्य के सपने पाले युवाओं के सुनहरे सपनों पर ग्रहण लग गया. मेहनतकश बेरोजगारों का परिवार भुखमरी के आलम में जीने पर विवश हैं. डुमरांव में सूबे के मुख्यमंत्री सहित कई राजनेताओं के अलावे विपक्षी पार्टियां भी अपने पदचाप से आमजनों के सवालों की आवाज बनकर अपनी राजनीति करती है. लेकिन सरकार के इस औद्योगिक नीति पर अपनी चुप्पी साध लेती है. नतीजतन क्षेत्र के विकास से जुड़ी औद्योगिक इकाइयां किलो के भाव से बिक गयी. जहां मशीनें चलती थी वह जमीन टुकड़ो में बंट रिहायशी कॉलोनी में तब्दील हो गयी.

व्यवस्था ने किया निराश

बिहार का इकलौता डुमरांव सूत मिल, ग्लेज टाइल्स फैक्टरी, सुप्रभात स्टील पाइप फैक्टरी, आइस फैक्टरी, लालटेन फैक्टरी सहित दर्जनों राइस मिलों के परिचालन ने डुमरांव के उद्योगों को पूरे देश में पहचान दिलायी. लेकिन संसाधनों की घोर कमी से बंद हुई औद्योगिक इकाइयों ने डुमरांव के उद्योग जगत को चौपट किया बल्कि सैकड़ों हाथों को बेरोजगार बना दिया. डेढ़ दशक पहले यहां मशीनों के आवाज से दिन-रात गुलजार रहता था. एक बड़े भू-भाग में कई तरह के उत्पादन हुआ करता था. यहां के बने लालटेन की ख्याति पूरे भारत में थी. ग्लेज टाइल्स फैक्टरी खुलने से पहले ही बिगड़ गयी. ऐसी स्थिति में औद्योगिक इकाइयों को जीवंत करने की सरकारी घोषणा विफल साबित हो रही है.

नीति बदले तो बदल जायेगी तस्वीर

सरकार की उदासीनता से इस इलाके में हजारों बेरोजगारों की फौज खड़ी हो गयी. बेरोजगार अनिल, सुभम, राकेश, मोहन और विवेक कहते हैं कि सरकार की नीति बदले तो इस इलाके की तस्वीर बदल जायेगी. बेरोजगारों को निबंधन कराने के लिए जिला मुख्यालय की दौड़ लगानी पड़ती है. इसके लिए पंचायत व प्रखंड स्तर पर शिविर लगानी चाहिए.

posted by ashish jha

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