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झारखंड के लोकगीतों में रचे-बसे हैं बिनोद बिहारी महतो

बिनोद बिहारी महतो ने शिक्षा और अधिकार की बात कही, तो हमेशा झारखंड के लोकगीतों, त्योहारों और संस्कृति को बढ़ावा दिया. लोकनृत्यों व गीतों को बढ़ावा देने के लिए प्रतियोगिताओं का आयोजन कराते रहे

प्रभाष देव महतो, धनबाद :

कई झूमर व करम गीतों में बिनोद बाबू का उल्लेख है. झारखंड के गांवों-जंगलों में आज भी इन गीतों पर लोग अनुराग के साथ झूमते मिल जायेंगे. मोबाइल के इस दौर में रिंगटोन के रूप में जब “बिनोद बाबू तोहर चरणे प्रणाम….”बजता है तो एक अलग अनुभूति होती है. परिवर्तन के इस दौर में भी यहां की मिट्टी में बिनोद बाबू की खुशबू है. यह इस वजह से क्योंकि चाहे जिस पद पर वह रहे, पर अपनी माटी से दूर नहीं हुए.

शिक्षा और अधिकार की बात कही, तो हमेशा झारखंड के लोकगीतों, त्योहारों और संस्कृति को बढ़ावा दिया. लोकनृत्यों व गीतों को बढ़ावा देने के लिए प्रतियोगिताओं का आयोजन कराते रहे. उनका मानना था कि लोकगीत मानव हृदय की सहज धड़कन है. जिस दिन यह धड़कन बंद हो जायेगी उस दिन समाज, संस्कृति व साहित्य सभी निष्प्राण हो जायेंगे.

यदि कुछ बचा भी रहेगा तो वह देखने, सुनने और प्रयोग करने लायक नहीं रहेगा. लोकगायक अर्जुन महतो (धनबाद, ढांगी), मिसिर पुनरियार (बोकारो), साेनू पुनरियार (बोकारो), चित्तरंजन महतो (धनबाद, रघुनाथपुर), अजीत महतो (बोकारो) आदि कहते हैं कि बिनोद बाबू से जुड़े झूमर, करम व अन्य गीतों में वो जादू है, जो सबकाे बांध लेता है. उनका कहना है कि बिनोद बाबू के बिना झारखंड की लोक संस्कृति अधूरी-सी है. प्रसिद्ध झूमर गायक अर्जुन महतो का तो मानना है कि बिनोद बाबू से जुड़े गीत नहीं गाने से अखड़ा जमता नहीं है.

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