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ब्रिक्स समूह को डूबो सकता है भारत और चीन की असहमति : चीनी मीडिया

बीजिंग : चीन के मीडिया का कहना है कि यदि ब्रिक्स समूह के सदस्य देश अपने बीच प्रतिस्पर्धा और असहमति का समाधान नहीं कर पाये तो भारत-चीन के मतभेद और पाकिस्तान को लेकर उनके बीच असहमति उन मतभेदों में शामिल हैं जो समूह को ‘डूबो सकते हैं’. चीन के सरकारी ‘ग्लोबल टाइम्स’ में गोवा ब्रिक्स […]

बीजिंग : चीन के मीडिया का कहना है कि यदि ब्रिक्स समूह के सदस्य देश अपने बीच प्रतिस्पर्धा और असहमति का समाधान नहीं कर पाये तो भारत-चीन के मतभेद और पाकिस्तान को लेकर उनके बीच असहमति उन मतभेदों में शामिल हैं जो समूह को ‘डूबो सकते हैं’. चीन के सरकारी ‘ग्लोबल टाइम्स’ में गोवा ब्रिक्स सम्मेलन पर प्रकाशित एक लेख में कहा गया कि ब्रिक्स (ब्राजील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका) देशों को ‘अपने संयुक्त प्रयासों के जरिये पर्याप्त लाभ हासिल करते हुए अपने हितों के टकराव का समाधान तलाश करना चाहिए जिसने यह चिंता उत्पन्न की है कि समूह अपनी चमक खो रहा है.’

उसने कहा, ‘चीन और भारत के बीच सीमा विवाद दोनों पक्षों के बीच एक दु:साध्य व्याधि रहा है. इसके साथ ही कुछ भारतीयों का मानना है कि चीन पाकिस्तान का समर्थन करता है जिसे आतंकवाद के समर्थन के बराबर माना जाता है.’ उसने कहा, ‘यह कहा जाता है कि ब्रिक्स के सदस्य देश तीन प्रमुख मुद्दों का सामना करते हैं जिसमें साझा हितों के लिए एक ठोस आधार की कमी, कमजोर सहयोग तंत्र और बाहरी दबाव शामिल हैं. यदि सदस्य देश पर्याप्त सावधान नहीं रहे तो वे आगे बढने के दौरान डूब सकते हैं.’

रेनमिन विश्वविद्यालय के एक थिंकटैंक द्वारा ‘ब्रिक्स नीड टू एड्रेस चैलेंजेंस टू स्ट्रेंथेन टाइज’ शीर्षक से लिखे गये लेख में कहा गया है कि साझा हितों के संबंध में ‘‘ब्रिक्स देशों के बीच प्रतिद्वंद्विता और असहमति एक अवरोधक रहा है.’ इसमें कहा गया, ‘पांच उभरते देशों में सभी निर्यात और विदेशी निवेश को महत्व देते हैं, इसके परिणामस्वरुप अवश्यंभावी टकराव और मनमुटाव होता है क्योंकि वे संसाधनों, बाजार आधार और विदेशी निवेश प्रवाह के लिए प्रतिद्वंद्विता करते हैं.’

उसने भारत, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका पर ‘व्यापार संरक्षणवाद का संकेत देने’ का आरोप लगाते हुए कहा कि तीनों ‘अक्सर चीन के खिलाफ एंटी डंपिंग जांच की तलाश में रहते हैं.’ उसने कहा, ‘भारत और ब्राजील उन देशों में शामिल हैं जिन्होंने चीन के खिलाफ सबसे अधिक संख्या में संरक्षणवादी उपाय लागू किये हैं.’ उसने कहा, ‘ब्रिक्स जो दूसरे खतरे का सामना करता है वह है एक अपर्याप्त सहयोग तंत्र। गोवा में सम्पन्न आठवें वार्षिक ब्रिक्स सम्मेलन के अतिरिक्त कई मंत्रिस्तरीय बैठकें वार्षिक रूप से होती हैं.’ उसने कहा, ‘यद्यपि ब्रिक्स का समूह एक कमजोर संघ है जिसमें स्थिरता की कमी है.

ब्रिक्स के सहयोग के लिए एक संस्थान जैसे एक सचिवालय या दिशानिर्देश और प्रक्रियाएं बनाने की जरुरत है.’ उसने कहा, ‘भारत हमेशा से ही अमेरिका के निशाने पर रहा है ताकि ब्रिक्स के सदस्यों को उभरती महाशक्तियों के समूह में रखा जा सके. ट्रांस-पेसिफिक पार्टनरशिप, ट्रांसएटलांटिक ट्रेड एंड इंवेस्टमेंट पार्टनरशिप और ट्रेड इन सर्विसेज एग्रीमेंट शुरू करके अमेरिका का उद्देश्य ब्रिक्स देशों को अलग-थलग करना तथा विकासशील देशों पर और अधिक दबाव बनाना है.’

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