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व्यापमं की व्यापकता

बीते तीन दिनों में ही मध्य प्रदेश व्यावसायिक परीक्षा मंडल (व्यापमं) घोटाले से जुड़ी तीन संदिग्ध मौतों ने देश की चेतना को स्तब्ध कर दिया है. रिपोर्टो की मानें, तो अब तक ऐसे 45 से अधिक लोग दम तोड़ चुके हैं, जो इस घोटाले से प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से संबंधित थे. हालांकि राज्य सरकार […]

बीते तीन दिनों में ही मध्य प्रदेश व्यावसायिक परीक्षा मंडल (व्यापमं) घोटाले से जुड़ी तीन संदिग्ध मौतों ने देश की चेतना को स्तब्ध कर दिया है. रिपोर्टो की मानें, तो अब तक ऐसे 45 से अधिक लोग दम तोड़ चुके हैं, जो इस घोटाले से प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से संबंधित थे.

हालांकि राज्य सरकार सिर्फ 25 मौतों का उल्लेख कर रही है और मामले की जांच कर रही एसआइटी ने हालिया मौतों से पहले तक 23 मौतों को संदिग्ध माना है. ऐसी अनिश्चितता सिर्फ मौतों की संख्या पर भ्रम पैदा नहीं करती, बल्कि इस पूरे प्रकरण उलङो जाल को और भी जटिल बना देती है. कुल मिलाकर व्यापमं की व्यापकता और भयावहता स्वतंत्र भारत के किसी भी घोटाले की तुलना में कहीं अधिक परेशान करनेवाली लग रही है.

यह स्थिति तब है, जबकि इस प्रकरण की जांच जारी है. करीब दो हजार गिरफ्तारियों (जिनमें वरिष्ठ राजनेता, अधिकारी, कर्मचारी, चिकित्सक, छात्र, शिक्षक, बिचौलिये आदि शामिल हैं) और अनेक अभियोग पत्रों के दाखिल होने के बाद भी घोटाले की जड़ तक नहीं पहुंचा जा सका है.

मध्य प्रदेश के राज्यपाल तक के विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज की गयी थी, जिसे बाद में संवैधानिक आधारों पर वापस ले लिया गया था. उनके पुत्र की संदिग्ध परिस्थितियों में मृत्यु भी हो चुकी है. दुर्भाग्य की बात है कि राज्यपाल अब तक अपने पद पर जमे हुए हैं.

हद तो यह है कि राज्य सरकार के कई मंत्री इन मौतों को प्राकृतिक कह रहे हैं, वहीं एक वरिष्ठ मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने एक पत्रकार की मौत के बाद असंवेदनशील रवैया भी दिखाया. इन सबके बीच मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का दावा है कि उन्होंने ही इस घपले की जांच का आदेश दिया था और यह जांच सही दिशा में चल रही है, लेकिन रिपोर्टो में उनके करीबियों के भी इस मामले में शामिल होने के आरोप लगते रहे हैं.

ऐसे में मामले की जांच केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआइ) से न कराने की मुख्यमंत्री की जिद्द इस प्रकरण से जुड़े भ्रम को और गहरा बनाती है. व्यापमं ने हमारे देश की शिक्षा और परीक्षा प्रणाली के साथ-साथ स्वास्थ्य, न्यायिक व्यवस्था और राजनीति को भी कटघरे में खड़ा किया है. मामले का पूरा सच सामने लाने में राज्य सरकार की विफलता सबके सामने है.

अब समय आ गया है कि सर्वोच्च न्यायालय में दायर उच्चस्तरीय जांच की मांग वाली याचिका पर निर्देश की प्रतीक्षा न करते हुए केंद्र सरकार इसकी निष्पक्ष जांच का आदेश निर्गत करे, ताकि व्यापमं घोटाले पर पड़ा रहस्य का खूनी परदा जल्द उठ सके.

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