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मॉडल स्कूलों में जमीन पर बैठ कर पढ़ाई करते हैं छात्र

दुर्दशा. प्रत्येक स्कूल भवन की लागत तीन करोड़, पर बेंच-डेस्क नहीं रांची : राज्य के मॉडल स्कूलों में बच्चों के लिए बेंच-डेस्क तक की व्यवस्था नहीं है. बच्चे जमीन पर ही बैठ कर पढ़ाई करते हैं. वहीं कुर्सी के अभाव में शिक्षक भी जमीन पर ही बैठ कर पढ़ाते हैं. स्कूलों में जरूरी कागजात रखने […]

दुर्दशा. प्रत्येक स्कूल भवन की लागत तीन करोड़, पर बेंच-डेस्क नहीं
रांची : राज्य के मॉडल स्कूलों में बच्चों के लिए बेंच-डेस्क तक की व्यवस्था नहीं है. बच्चे जमीन पर ही बैठ कर पढ़ाई करते हैं. वहीं कुर्सी के अभाव में शिक्षक भी जमीन पर ही बैठ कर पढ़ाते हैं. स्कूलों में जरूरी कागजात रखने के लिए अलमीरा तक नहीं है.
राज्य में केंद्रीय विद्यालय की तर्ज पर 89 मॉडल स्कूल खोले गये हैं. इनमें से प्रथम चरण में खोले गये 40स्कूलों के भवन बन कर तैयार हो गये हैं. अधिकतर विद्यालय नये भवन में शिफ्ट भी हो गये हैं.
पठन-पाठन भी शुरू हाे गया. एक विद्यालय भवन की लागत लगभग तीन करोड़ है. विद्यालय भवन बनने से पूर्व उक्त मॉडल स्कूल दूसरे मध्य या उच्च विद्यालय में चल रहे थे. पठन-पाठन जब दूसरे विद्यालयों में होता था, तब बच्चों को बैठने के लिए उस विद्यालय का बेंच-डेस्क मिल जाता था. अब जब अपना भवन बना, तो उसमें बेंच-डेस्क ही नहीं है. स्कूली शिक्षा व साक्षरता विभाग की सचिव आराधना पटनायक ने गत दिनों अनगड़ा के मॉडल स्कूल का निरीक्षण किया था. इस दौरान स्कूल के बच्चे फर्श पर बैठ कर पढ़ाई कर रहे थे. इस पर शिक्षा सचिव ने नाराजगी जतायी थी.
वर्ष 2011 में केंद्र सरकार की योजना के तहत शैक्षणिक रूप से पिछड़े प्रखंडों में विद्यालय खोलने की योजना शुरू हुई थी़ झारखंड में कुल 203 मॉडल स्कूल खोले जाने थे़ इसके तहत वर्ष 2011 में 40, वर्ष 2012 में 49 तथा 2014 में 75 विद्यालय खोलने को स्वीकृति दी गयी थी़
इन विद्यालयों में कक्षा छह से 12वीं तक की पढ़ाई होनी है़ बाद में केंद्र सरकार ने मॉडल स्कूल योजना को बंद कर दिया. विद्यालय खोलने का मुख्य उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्र के बच्चों को अंगरेजी माध्यम से शिक्षा देना था़ प्रथम चरण में खुले 40 में से अधिकांश विद्यालयों का भवन तैयार हो गया है. दूसरे चरण के विद्यालयों के भवन का निर्माण भी शुरू हो गया है.
किस जिले में कितने मॉडल स्कूल
जिला स्कूलों की संख्या
रांची 08
गुमला 08
लोहरदगा 02
सिमडेगा 05
खूंटी 03
हजारीबाग 05
गिरिडीह 11
धनबाद 02
कोडरमा 03
चतरा 02
लातेहार 03
दुमका 06
साहेबगंज 07
पाकुड़ 03
गोड्डा 04
जमशेदपुर 06
चाईबासा 06
प्रति वर्ष खाली रह जाती है सीट
मॉडल स्कूलों में प्रति वर्ष सीट खाली रह जाती है़ इन विद्यालयों में कक्षा छह में टेस्ट के आधार पर नामांकन लिया जाता है़ नामांकन टेस्ट जैक द्वारा लिया जाता है़ एक विद्यालय में 40 बच्चों के नामांकन का प्रावधान है़ वर्ष 2015 में 86 विद्यालयों में सीट रिक्त रह गयी. कुछ विद्यालयों में तो नामांकन के लिए चयनित बच्चों की संख्या 10 से भी कम थी़ बच्चों को सरकार की ओर से नि:शुल्क किताब देने का प्रावधान है, लेकिन स्कूल खुलने के बाद से कभी भी बच्चों को समय पर किताब नहीं मिली है़ ऐसे में बच्चों को बिना किताब पढ़ाई करनी पड़ती है़. स्कूलों में शिक्षकों की भी कमी है़
खल्ली-डस्टर तक का पैसा नहीं
मॉडल स्कूलों को स्थापना काल से ही आकस्मिक निधि के लिए कोई राशि नहीं दी गयी है. विद्यालयों में खल्ली व डस्टर तक की व्यवस्था नहीं है. उपस्थिति पंजी समेत अन्य आवश्यक सामग्री के लिए शिक्षक अपने स्तर से राशि देते हैं. कई बार बगल के विद्यालय से खल्ली व डस्टर मांगना पड़ता है. कई बार छात्र चंदा एकत्र कर जरूरी सामग्री खरीदते हैं.

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