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बिहार : मात्र 16 घंटे में ही बदल गयी बिहार की सियासी तस्वीर, नीतीश कुमार का राजनीतिक सफरनामा

पटना : जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार ने6वीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. राज्यपाल केशरी नाथ त्रिपाठी ने नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री के पद और गोपनीयता की शपथ दिलायी. साथ ही, भाजपा के वरिष्ठ नेता सुशील कुमार मोदी ने उपमुख्यमंत्री पद की शपथ ली. राजभवन के मंडपम् हॉल में आयोजित एक समारोह में […]

पटना : जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार ने6वीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. राज्यपाल केशरी नाथ त्रिपाठी ने नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री के पद और गोपनीयता की शपथ दिलायी. साथ ही, भाजपा के वरिष्ठ नेता सुशील कुमार मोदी ने उपमुख्यमंत्री पद की शपथ ली. राजभवन के मंडपम् हॉल में आयोजित एक समारोह में नीतीश ने शपथ ली. महागठबंधन के साथ लगातार असहज महसूस करने की खबरों के बीच नीतीश ने अपने स्टैंड और अपनी कसौटी की राजनीति को सर्वोपरि रखा और बुधवार को पद से इस्तीफा दे दिया. अब वे 6वीं बार बिहार के मुख्यमंत्री बने हैं. राजनीतिक जानकार मानते हैं कि बिहार में अब

महागठबंधन में सहज नहीं थे नीतीश कुमार

बिहार में महागठबंधन के नेता चुने जाने के बाद मुख्यमंत्री बने नीतीश कुमार ने बुधवार शाम अपने पद से इस्तीफा दे दिया था. उसके थोड़ी ही देर बाद उन्होंने अपने पुरानी सहयोगी पार्टी भाजपा से हाथ मिलाकर राज्यपाल के पास दोबारा सरकार बनाने का दावा पेश कर दिया था. बिहार की राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले नीतीश कुमार एक बार फिर चंद्रगुप्त बनने जा रहे हैं. उन्होंने वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में भारी पराजय झेलने के बाद अपने चिर प्रतिद्वंद्वी राजद प्रमुख लालू प्रसाद के साथ हाथ मिलाकर राजनीतिक पंडितों को हैरत में डाल दिया था. हाल में बिहार में पैदा हुई राजनीतिक परिस्थितियों में नीतीश अपने को असहज महसूस कर रहे थे. उन्होंने कहा कि इस्तीफे का फैसला अपनी अंतरात्मा की आवाज पर लिया. ऐसी स्थिति में सरकार चलना संभव नहीं, जितना संभव हुआ, उतना चलाया. राजनीतिक जानकारों की मानें, तो नीतीश कुमार अपनी कसौटी पर सरकार चलाने के लिए जाने जाते हैं. उन्होंने पूर्व में भी कई बार नैतिकता को सर्वोपरि रखते हुए बड़ा स्टैंड लिया है.

नीतीश हार गये थे दो बार चुनाव

नीतीश कुमार आंदोलन से उपजे नेता माने जाते हैं. जेपी से काफी प्रभावित रहे और उन्होंने हमेशा नैतिकता की राजनीति को तरजीह दी. नीतीश को 1985 में राज्य विधानसभा चुनाव में पहली बार जीत हासिल करने में आठ साल लग गये, जो उस समय तत्कालीन बिहार कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग में इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे थे. 1985 से पहले नीतीश दो बार चुनाव हार गये थे. नीतीश कुमार के पिता एक आयुर्वेदिक वैद्य थे. नीतीश ने 1989 में बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता पद के लिए लालू का समर्थन किया. इसके बाद 1990 में बिहार में जनता दल के सत्ता में आने के बाद मुख्यमंत्री पद के लिए नीतीश ने फिर लालू के कंधे पर हाथ रखा जिन्होंने प्रधानमंत्री वी.पी. सिंह के नामित उम्मीदवारों राम सुंदर दास तथा रघुनाथ झा को चुनौती दी थी.

एनडीए से है पुराना नाता

नीतीश कुमार काएनडीएसे पुराना नाता रहा है. उन्होंने 17 साल तक एनडीए के साथ अपनी लंबी दोस्ती निभायी.वाजपेयीकी सरकार में नीतीशकुमार महत्वपूर्ण मंत्रालयोंकापदभार संभाला. बाढ़ संसदीय सीट से 1989 में लोकसभा चुनाव जीतने वाले नीतीश ने अपनी नजरें राज्य की राजनीति से हटाकर दिल्ली पर केंद्रित कीथीं. वह 1991, 1996, 1998 और 1999 के लोकसभा चुनाव में भी विजयी रहे. नीतीश ने अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में कृषि मंत्री और 1999 में कुछ समय के लिए रेल मंत्री का पदभार संभाला, लेकिन 1999 में पश्चिम बंगाल के गैसल में ट्रेन हादसे में करीब 300 लोगों के मारे जाने की घटना के बाद नीतीश ने रेल मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया.

राजनीति में नैतिकता के पैरोपकार हैं नीतीश

राष्ट्रीय राजनीति में अपने स्टैंड के लिए जानें-जाने वाले नीतीश कुमार हमेशा से अपनी शर्तों पर राजनीति करने के लिए जाने जाते रहे हैं. भ्रष्टाचार को लेकर उनकी जीरो टॉलरेंस की नीति को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी सराहा है. सौम्य और स्पष्टवादी नीतीश वर्ष 2001 में फिर से रेल मंत्री बने और 2004 तक इस पद पर रहे. इस दौरान सार्वजनिक क्षेत्र के इस विशाल उपक्रम में बड़े सुधार लाने का श्रेय उन्हें मिला, जिसमें इंटरनेट टिकट बुकिंग और तत्काल बुकिंग शामिल है. इसी दौरान ही फरवरी 2002 में गोधरा ट्रेन कांड हुआ, जिसने जल्द ही गुजरात को सांप्रदायिक आग के लपेटे में ले लिया. केंद्रीय राजनीति में सक्रिय नीतीश लगातार लालू से दूर होते गये.

जनता दल से बाहर निकल गये नीतीश

उन्होंने समता पार्टी का गठन किया और कहा जाता है कि जार्ज फर्नांडिस के साथ जनता दल से बाहर निकल गये. 1996 के आम चुनाव से पूर्व भाजपा के साथ हाथ मिला लिया. इसके बाद आने वाले समय में शरद यादव को भी जनता दल में हाशिये पर डाल दिया गया और लालू ने पार्टी को पूरी तरह अपने कब्जे में ले लिया. बाद में शरद यादव की अगुवाई वाले जनता दल, समता पार्टी तथा कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री रामकृष्ण हेगड़े की लोकशक्ति पार्टी का आपस में विलय हो गया और 2003 में एक नया दल जनता दल यूनाइटेड अस्तित्व में आ गया.

एनडीए के साथ मिलकर किया राज्य का विकास

नीतीश कुमार ने वर्ष 2004 के लोकसभा चुनाव में एनडीए की हार के चलते फिर से अपना ध्यान बिहार पर केंद्रित किया, जहां राबड़ी देवी की सरकार की लोकप्रियता का ग्राफ तेजी से गिर रहा था. खुद अन्य पिछड़ा वर्ग से ताल्लुक रखने वाले नीतीश बिहार की राजनीति में लौटे और लालू-राबड़ी सरकार के खिलाफ जबरदस्त अभियान छेड़ दिया. उनके प्रयास रंग लाये और जेडीयू-भाजपा गठबंधन ने वर्ष 2005 के विधानसभा चुनाव के बाद राज्य में अपनी सरकार गठित की जिसमें स्वयं मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. मुख्यमंत्री पद की कमान संभालते ही नीतीश मिशन मोड में आ गए और बरसों बाद प्रदेश की राजनीति में विकास जैसा नया शब्द सुनायी दिया. उनकी सरकार ने लंबित परियोजनाओं को पूरा किया, एक लाख से अधिक स्कूली अध्यापकों की भर्ती की गयी और अपराध पर लगाम लगायी गयी.

नीतीश जल्द ही ‘विकास पुरुष’ कहलाने लगे

नीतीश कुमार ने दलितों के बीच लालू के समर्थन को काटते हुए महादलितों की एक नयी श्रेणी सृजित कर दी और उनके लिए कई कल्याणकारी योजनाओं की घोषणा की. वर्ष 2010 के विधानसभा चुनाव में जदयू-भाजपा गठबंधन ने 243 में से 206 सीटों पर जीत हासिल की और राजद को हाशिये पर धकेल दिया जो केवल 22 सीटों पर सिमट गयी और विपक्ष के नेता पद तक पर दावा नहीं कर सकी, लेकिन भाजपा के साथ अपने मजबूत संबंधों के बावजूद नीतीश कुमार के संबंध अपने गुजरात के समकक्ष नरेंद्र मोदी के साथ लगातार तनावपूर्ण बने रहे.

जब, एनडीए से तोड़ा नाता

नीतीश और भाजपा के संबंधों में नरेंद्र मोदी को लेकर तल्खी बढ़ती गयी. वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा चुनाव प्रचार समिति के प्रमुख के तौर पर मोदी की नियुक्ति गठबंधन सहयोगी के साथ संबंधों में निर्णायक साबित हुई और नीतीश कुमार जून 2013 में एनडीए से किनारा कर अपने अलग रास्ते पर निकल पड़े. लोकसभा चुनाव में जदयू की शर्मनाक पराजय के बाद 17 मई 2014 को नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और महादलित नेता जीतन राम मांझी को सरकार की कमान सौंप दी. इस लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी को केवल दो सीटें मिली थीं.

जीतन को बनाया सीएम

नीतीश कुमार को विधानसभा चुनाव से ठीक पहले यह लगा कि महादलित नेता जीतन राम मांझी पार्टी को जीत नहीं दिला सकेंगे. उन्होंने मांझी से इस्तीफा देने और मुख्यमंत्री पद पर उनकी वापसी का रास्ता साफ करने को कहा. लेकिन मांझी ने इनकार कर दिया और जदयू विधायकों ने उन्हें अपदस्थ कर दिया. फिर नीतीश नौ महीने के वनवास के बाद लालू की राजद तथा कांग्रेस के समर्थन से पुन: सत्तासीन हो गये. बाद में नयी दोस्ती के साथ उन्होंने महागठबंधन के जरिये जीत हासिल की और विधायक दल के नेता चुने गये, लेकिन वहां भी वह असहज रहे और अब उन्होंने दोबारा 6ठीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली.

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