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मुंगेर न्यायालय से पहली बार माओवादियों को मिली फांसी

फैसला. सीआरपीएफ जवानों पर हमले के आरोपित थे पांचों नक्सली मुंगेर नक्सल प्रभावित जिला रहा है. घटनाएं भी होती रही हैं. कई मामलों में नक्सलियों की गिरफ्तारी भी हुई है. लेकिन गुरुवार को पहली बार पांच आरोपियों को फांसी की सजा सुनायी गयी है. मुंगेर : मुंगेर न्यायिक इतिहास में पहली बार पांच माओवादियों को […]

फैसला. सीआरपीएफ जवानों पर हमले के आरोपित थे पांचों नक्सली

मुंगेर नक्सल प्रभावित जिला रहा है. घटनाएं भी होती रही हैं. कई मामलों में नक्सलियों की गिरफ्तारी भी हुई है. लेकिन गुरुवार को पहली बार पांच आरोपियों को फांसी की सजा सुनायी गयी है.
मुंगेर : मुंगेर न्यायिक इतिहास में पहली बार पांच माओवादियों को फांसी की सजा सुनायी गयी. गुरुवार को मुंगेर न्यायालय परिसर पूरी तरह पुलिस छाबनी में तब्दील था और भारी सुरक्षा व्यवस्था के बीच सीआरपीएफ के जवानों पर हमला कर मौत के घाट उतारने वाले नक्सलियों को अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश प्रथम ज्योति स्वरूप श्रीवास्तव ने सजा-ए-मौत का आदेश सुनाया. सजा के बिंदु पर सुनवाई के दौरान लगभग 20 मिनट तक न्यायालय ने अभियोजन पक्ष एवं बचाव पक्ष के अधिवक्ता की दलीलें सुनी और फिर अपना फैसला सुनाया. इस दौरान न्यायालय कक्ष अधिवक्ताओं से खचाखच भरा था.
गुरुवार को पूर्वाह्न 10:15 बजे अपर सत्र न्यायाधीश प्रथम ने सत्रवाद संख्या 319/15 में सुनवाई प्रारंभ की. इससे पूर्व ही पूरा न्यायालय परिसर की सुरक्षा व्यवस्था को चाक चौबंद बना दी गयी थी. कोतवाली इंस्पेक्टर श्रीराम चौधरी, सार्जंट मेजर अरविंद शर्मा एवं पूरबसराय ओपी प्रभारी सफदर अली न्यायालय कक्ष में मौजूद थे. अधिवक्ताओं की भी भीड़ लगी थी. जबकि पांचों आरोपी न्यायालय में मौजूद थे. अभियोजन पक्ष की ओर से सर्वप्रथम अपर लोक अभियोजक सुशील कुमार सिन्हा ने बहस प्रारंभ किया. नक्सलवाद के इतिहास से प्रारंभ बहस के दौरान उन्होंने उच्चतम न्यायालय के कई मामलों का भी उल्लेख किया.
बाद में अपर लोक अभियोजक संदीप भट्टाचार्या ने बहस प्रारंभ करते हुए कांड के अनुसंधानकर्ता सह खड़गपुर के तत्कालीन अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी पर गंभीर आरोप लगाते हुए अनुसंधान में लापरवाही बरतने की बात कही. बचाव पक्ष के अधिवक्ता ने न्यायालय के समक्ष विभिन्न गवाहों द्वारा दिये गये साक्ष्य के संदर्भ में अपनी बातों को रखा. उन्होंने कहा कि अनुसंधानकर्ता ने अपने बयान में कहीं भी अभियुक्तों के नाम के साथ पिता का नाम डायरी में अंकित नहीं किया है. जबकि बाद में उसे जोड़ा गया. साथ ही घटनास्थल पर पुलिस ने मात्र गोली के छह खोखे बरामद किये थे.
सजा सुनाने के बाद भींगी आरोपितों के परिजनों की आंखें
10 अप्रैल 2014 को जमुई लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत पड़ने वाले तारापुर विधान सभा क्षेत्र में मतदान कराने के लिए सीआरपीएफ कैंप भीमबांध से 131 के बटालियन रात लगभग 2 बजे चले थे. वे लोग पैदल व वाहन से खड़गपुर-जमुई मुख्य मार्ग पहुंचे और सभी जवान विभिन्न वाहन पर सवार हो गये. रात लगभग
3 :10 बजे वाहनों पर सवार होकर सीआरपीएफ की टुकड़ी ज्यों ही कुंडा बाबा स्थान से खड़गपुर की ओर बढ़ी कि लगभग 500 गज की दूरी पर सड़क के किनारे कच्ची में जोरदार बारूदी विस्फोट हुआ. विस्फोट की चपेट में एक लाल रंगा का मैजिक वाहन आ गया. जिस पर सवार जवान जब तक कुछ समझते तब तक गोलियों की बौछार होने लगी. घायल जवानों ने वाहन से कूद कर मोरचा संभाला. इसी बीच दो हेड कास्टेबल सोने गौरा व रविंद्र कुमार राय नक्सलियों के गोली के शिकार हो गये. साथ ही सात सीआरपीएफ जवान विस्फोट में घायल हो गये. जवाबी कार्रवाई में सीआरपीएफ के जवानों ने भी गोलियां चलायी.
किंतु जंगल, पत्थर एवं अंधेरा का लाभ उठा कर नक्सली भाग निकले. घायलों को जब खड़गपुर अस्पताल लाया गया तो चिकित्सकों ने सोने गौरा व रविंद्र कुमार राय को मृत घोषित कर दिया. सोने गौरा कर्नाटक राज्य का रहने वाला था. जबकि रविंद्र कुमार राय हाजीपुर जिले के सोनपुर का रहने वाला था.

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