11.1 C
Ranchi

लेटेस्ट वीडियो

‘पतरा’ नहीं,‘अंचरा’ का परब है छठ

और यह भी सच है कि ‘पंडिताईन के अंचरा’ से ज्यादा सच्ची कोई शय इस दुनिया में हो ही नहीं सकती, क्योंकि पंडिताईन के अंचरा में कथाएं नहीं होतीं, वहां गीत होते हैं. पंडितजी के पतरा का एकदम से विलोम है पंडिताईन का अंचरा. पोथी दुनिया भर में पसरना चाहती है, उसके भीतर ज्ञान का […]

और यह भी सच है कि ‘पंडिताईन के अंचरा’ से ज्यादा सच्ची कोई शय इस दुनिया में हो ही नहीं सकती, क्योंकि पंडिताईन के अंचरा में कथाएं नहीं होतीं, वहां गीत होते हैं. पंडितजी के पतरा का एकदम से विलोम है पंडिताईन का अंचरा. पोथी दुनिया भर में पसरना चाहती है, उसके भीतर ज्ञान का घमंड और विश्वविजयी होने की आकांक्षा होती है. शायद इसलिए पोथी से केहुनीमार कथाएं निकलती हैं.

छठ की कथा नहीं हो सकती, उसके गीत हो सकते हैं. गीत ही छठ के मंत्र होते हैं. छठ के गीतों में अपना कंठ मिलाइए, तो छठ का मर्म मालूम होगा. कथा का क्या है, सुननेवाले का मान रखने के लिए चाहे जितनी बना लीजिए. कह लीजिए कि जितने पुराने हैं वेद, उतनी ही पुरानी है छठ पूजा. पंडित बन कर ‘पोथी’ निकालिए और छठ-पर्व को लेकर 1990 के बाद से पत्रकारों के बीच बढ़ आयी रुचि को रिझाने-बुझाने के लिए कहिए- ऋग्वेद में आया है, ‘सूर्य आत्मा जगतस्थुषश्च’. सूर्य जगत की आत्मा है और छठ सूर्योपासना का ही लोकप्रचलित रूप है.

अपने इस वाक्य को प्रामाणिक सिद्ध करने के लिए कुछ पुराण-प्रसंगों के पन्ने पलटिए. ग्लोबल गांव कहलाती दुनिया के भीतर पूरब के साकिनों को कॉस्मोपॉलिटन और छठपूजा को विश्वव्यापी साबित करने को आतुर पत्रकारों को कथा सुनाइए कि ‘कृष्ण के बेटे शाम्ब को बड़ा अभिमान था अपने शरीर-बल पर. कठोर तप से कृशकाय ऋषि दुर्वासा कृष्ण से मिलने पहुंचे, तो शाम्ब को हंसी आयी कि देह है या कांटा. और, शाम्ब को ऋषिमुख से श्राप मिला- जा, तेरे शरीर को कुष्ठ खाये.

शाम्ब को रोग लगा, दवा काम न आयी, तो किसी ने सूर्याराधन की बात बतायी. शाम्ब रोगमुक्त हुआ और तभी से काया को निरोगी रखने के लिए सूर्यपूजा मतलब छठपूजा की रीत चली’. शाम्ब की कथा से संतोष ना हो तो राम कथा सुनाइए कि लंका-विजय और वनवास के दिन बिता कर राम जिस दिन अयोध्या लौटे उस दिन अयोध्या नगरी में दीये जले, पटाखे फूटे, दीवाली हुई. वापसी के छठवें दिन यानी कार्तिक शुक्ल षष्ठी को रामराज की स्थापना हुई. राम और सीता ने उपवास किया, सूर्य की पूजा की, सप्तमी को विधिपूर्वक पारण करके सबका आशीर्वाद लिया और तभी से रामराज स्थापना का यह पर्व छठ अस्तित्व में आया.

पंडितजी की पोथी से निकली कोई भी कथा हो, छठ की प्रभा और पवित्रता के आगे वह कथा फीकी और ओछी है. छठ की कथा पंडितजी के पतरा से कम पंडिताईन के अंचरा से ज्यादा निकलती है. पंडितजी की पोथी से ज्यादा अविश्वसनीय कोई और चीज है भी भला? पोथी का नाम एक बना रहता है, मगर पन्ने बदलते जाते हैं, उसके पन्नों में एक कथा को धकिया कर दूसरी आन खड़ी होती है और इस दूसरी को भी हटाने के लिए कोई तीसरी कथा अपनी कोहनी भिड़ाये रहती है- जितने स्वार्थ उनको जायज ठहराने की उतनी ही कथाएं! ज्यादातर कथाओं में दंड और पुरस्कार, स्तुति और निंदा, श्राप और वरदान का शक्ति-संधानी खेल चलता रहता है. और यह भी सच है कि ‘पंडिताईन के अंचरा’ से ज्यादा सच्ची कोई शय इस दुनिया में हो ही नहीं सकती, क्योंकि पंडिताईन के अंचरा में कथाएं नहीं होतीं, वहां गीत होते हैं. पंडितजी के पतरा का एकदम से विलोम है पंडिताईन का अंचरा. पोथी दुनिया भर में पसरना चाहती है, उसके भीतर ज्ञान का घमंड और विश्वविजयी होने की आकांक्षा होती है. शायद इसलिए पोथी से केहुनीमार कथाएं निकलती हैं. अंचरा को अपनी हैसियत भर की दुनिया से संतोष होता है, इस संतोष के भीतर होता है अपने नेह-नातों को एक साथ समेट कर रखने की उम्मीद. शायद इसलिए पंडिताईन के अंचरा में करुण गीत गूंजते हैं. पोथी को चाहिए आंखें, जो हमेशा आगे ही देखती हैं, उनसे पीछे देखना नहीं हो पाता. गीत को चाहिए कंठ, क्योंकि कंठ अगले और पिछले सबको समान रूप से पुकार लेता है.
छठ के गीतों में ना जाने किस युग से एक सुग्गा चला आता है, यह सुग्गा केले के घौंद पर मंडराता है, झूठिया देता है, धनुख से मार खाता है. एक सुगनी चली आती है. वह वियोग से रोती है- ‘आदित्य होखीं ना सहाय.’ इस सुग्गे के हजार अर्थ निकाल सकते हैं आप, लेकिन जिस भाषा का यह गीत है, वहां सुग्गा शहर कलकत्ता बसने के बाद से एक विशेष अर्थ में प्रयुक्त हुआ है. याद करें महेंदर मिसिर को- ‘पिया मोरा गइले रामा पुरूबी बनिजिया से देके गइले ना, एगो सुगना खेलवना राम से देके गइले ना.’ गीत में ऊपर की ओर चढ़ता विरह आखिर को बोल देता है- ‘एक मन करे सुगना धई के पटकती से दोसर मनवा ना, हमरा पियवा के खेलवना से दोसर मनवा ना.’ लेकिन गीत के आखिर में यही सुगना नेह की डोरी को टूटने से बचा लेता है- ‘उड़ल उड़ल सुगना गइले पुरूबवा से जाके बइठे ना, मोरा पिया के पगरिया से जाके बइठे ना…’ पिया पगड़ी को उतार कर सुगना को अपनी जांघ पर बैठा लेते हैं- ‘पूछे लगले ना, अपना घरवा के बतिया से पूछे लगले ना.’ और फिर सुग्गे का बयान सुन कर हृदय में हाहाकार उठा- ‘सुनी सुगना के बतिया पिया सुसुके लगले ना, सुनि के धनिया के हलिया पियवा सुसुके लगले ना…’

केले के घौंद पर मंडराते सुग्गे का अर्थ महेंदर मिसिर के इस गीत में गूंजते विरह और पलायन के भीतर अगर आपने नहीं पढ़ा, तो फिर निश्चित जानिए बीते दो सौ बरसों से हम पुरबिया लोगों के बीच छठ की बढ़ती आयी महिमा को पहचानने से आप वंचित रह जायेंगे. पारिवारिकता की कुंजी है दाम्पत्य और ‘पूरब के साकिनों’ के दाम्पत्य यानी पारिवारिकता पर पिछले पौने दो सौ बरसों से रेलगाड़ियां बैरन बन कर धड़धड़ा रही हैं. ‘पिया कलकतिया भेजे नाहीं पतिया’ नाम के शिकायती सुर के भीतर शहर कलकत्ते के हजार नये संस्करण निकले आये हैं. गौहाटी, नैहाटी, दिल्ली, नोएडा, गुड़गांव मुंबई, पुणे, चेन्नई, बंगलुरु कितने नाम गिनाएं. ये सब नगरों के नाम नहीं हमारे लिए हमेशा से ‘शहर कलकत्ता’ हैं- वणिज के देश! क्या होता है वणिज के देशों में जाकर? पूर्वांचल के गांवों में बड़े-बुजुर्ग कहते हैं- जिन पूत परदेसी भईलें, देव पितर, देह सबसे गईलें! ऐसे में जो घर का उजाड़ है, वह छठ-घाट के उजाड़ के रूप में झांकने लगे, तो क्या अचरज! और, घर को कायम रखने का जो संकल्प है, वही छत्तीसों घंटे उपवास रह कर, भूमि को शैय्या बना कर, एक वस्त्र में हाड़ कंपाती ठंड में दीया जला कर छठी मईया से घर भर में गूंजनेवाली किलकारी आशीर्वाद रूप में मांग बैठे, तो भी क्या अचरज! छठ के एक गीत में यों ही नहीं आया- ‘कोपी कोपी बोलेली छठी मईया, सुनी ए सेवक सब/ मोरा घाटे दुबिया उपजी गईलें, मकड़ी बसेर लेले/ हंसी हंसी बोलेनी महादेव/ सुनी ए छठी मईया, मोरा गोदे दीहीं ना बलकवा/ त दुभिया छिलाई देब, मकड़ी उजाड़ी देब, दूधवे अरघ देब.’

छठ पूरब के उजाड़ को थाम लेने का पर्व है, छठ चंदवा तानने और उस चंदवे के भीतर परिवार के चिरागों को नेह के आंचल की छाया देने का पर्व है. छठ ‘शहर कलकत्ता’ बसे बहंगीदार को गांव के घाट पर खींच लाने का पर्व है. छठ में आकाश का सूरज बहुत कम-कम है, मिट्टी का दीया बहुत-बहुत ज्यादा!

चंदन श्रीवास्तव
एसोसिएट फेलो, सीएसडीएस
[email protected]

Prabhat Khabar Digital Desk
Prabhat Khabar Digital Desk
यह प्रभात खबर का डिजिटल न्यूज डेस्क है। इसमें प्रभात खबर के डिजिटल टीम के साथियों की रूटीन खबरें प्रकाशित होती हैं।

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

संबंधित ख़बरें

Trending News

जरूर पढ़ें

वायरल खबरें

ऐप पर पढें
होम आप का शहर
News Snap News Reel