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बिहार खुदे एक जाति है भइये

चंचल सामाजिक कार्यकर्ता जब से ई मुआ आवा है, सब उल्टा-पुल्टा हो रहा बा. अउर त अउर अबकी बार मुंहझौंसा बदरा भी दगा दे रहा बा. भला बताओ, सावन-भादों में धूल उड़े अउर दिन में दुआरे-दुआरे सियार फेकरै.. बटुली में करछुल डाल कर जंतुला ने उसे दो-तीन बार खड़खड़ाया और लगी महंगाई को गरियाने- दाल-रोटी […]

चंचल

सामाजिक कार्यकर्ता

जब से ई मुआ आवा है, सब उल्टा-पुल्टा हो रहा बा. अउर त अउर अबकी बार मुंहझौंसा बदरा भी दगा दे रहा बा. भला बताओ, सावन-भादों में धूल उड़े अउर दिन में दुआरे-दुआरे सियार फेकरै.. बटुली में करछुल डाल कर जंतुला ने उसे दो-तीन बार खड़खड़ाया और लगी महंगाई को गरियाने- दाल-रोटी पे जिंदगी कटत रही, न उधो के लेना न माधो कù देना, कोई बात की फिकर ना रहत रही.

इहौ छिनार जा के आसमान पे बैठी है. भला बताओ कभी सोचा रहा कि डेढ़ सौ रुपिया में सेर भर दाल बिकी? जारे जमाना! तोर नास होय.

महंगाई पर जंतुला चालू रहती, लेकिन चूल्हे ने रोक दिया. वह फूंक मार कर आग जलाने के लिए झुकी ही थी कि झबरा ने मौके का फायदा उठाया और थाली से एक रोटी खींच लिया.

जंतुला ने भांप लिया कि झबरे ने रोटी उठा लिया है. जंतुला ने अधजली लकड़ी का चइला उठाया और झबरे पे दे मारा. रोटी वहीं जमीन पे गिर गयी और झबरा पों-पों करते भागा. जंतूला महंगाई भूल गयी और लगी कुकुरों को कोसने- मुआ ई दुनो जब से आये हैं, जीना हराम कर दिये हैं.. एकरी दाढ़ी में..

उधर से खैनी मलते आ रहे नवल उपाधिया ने जंतूला को सलाम किया. जंतूला गांव के रिश्ते में नवल की बुआ लगती हैं, इसलिए दोनों में खुल कर मजाक होता है. शुरुआत नवल के दुअर्थी सवालों से होता है और जब जंतुला सवालों से घिर जाती हैं, तो सीधे-सीधे नवल की मां-बहन पर उतर आती हैं.

गरज यह कि जब जंतूला शुरू होती हैं, तो उसे नवल नहीं सुनते. वो कब के मुस्कुराते हुए आगे बढ़ गये होते हैं. उसे सुनते हैं उमर दरजी, रामलाल तेली, कनुई भक्तिन, चुन्नी लाल की बकरी, नीम की फुनगी. आज फिर वही मौका आ गया.

नवल रुके- किसे गरिया रही हो बुआ? जंतुला ने फुंकती को ठीक किया- इहै दुनो कुकुर, एक करियवा और एक ई झबरा. ई दुनौ हलकान मचाये हैं.. नवल और भी सुनते, लेकिन आज उन्हें जल्दी है.

चौराहे पर सब उनका इंतजार कर रहे होंगे- तो आज कौन रहा बुआ? झबरा कि करियवा? औ कहां मारिस ह झपट्टा, आगे कि.. बस इतना काफी था जंतुला नवल की मां पर चढ़ बैठीं. लेकिन नवल तो जा चुके थे. नवल मुस्कुराते हुए बढ़े जा रहे थे कि अचानक उनकी टकराहट बहिर दुबे से हो गयी, जो हबीब की दूकान पर खड़े चड्ढी सिलवा रहे थे.

बहिर दुबे सुनते कम हैं, लेकिन देखने में कोई कोताही नहीं करते. आधी बात वे सामने वाले के हाव-भाव से जान लेते हैं. जो नहीं जान पाते, उसे पूछ लेते हैं- नवल! का हुआ? उधर जंतुला काहे उखड़ी है? झबरा जंतुला कù रोटी लेके भाग गयल. बहिर दुबे चौंके- कहां भोजपुर कहां भागलपुर! इसकी ससुराल तो भोजपुर रही, एक बार लड़के आयी, तब से यहीं है, इसे का मालूम भागलपुर की बात? नवल धीरे से बुदबुदाये- अब ई बहिर राम के समुझावे. भाग गयल के भागलपुर समझ लिये हैं.

नवल चौराहे पर पहुंचे. चाय की केटली भट्ठी पर है और लाल्साहेब बेना हौंक रहे हैं. नवल का स्वागत लखन कहार ने किया- आओ हो नवल भाय कौनो खबर? काहे नहीं बा, हम कहत रहे झबरा रोटी लेके भाग गयल और बहिर दुबे लगे भागलपुर पे प्रबचन देने, किसी तरह से निकल पाये. नवल यह जानते थे कि वे भागलपुर से निकले नहीं हैं, अब भागलपुर जा रहे हैं. और हुआ वही भागलपुर जेरे बहस हो गया.

कीन उपाधिया ब कलम खुद- ‘पदैसी संघी हूं.’ भागलपुर सुनते ही उछले- भीड़ देखा? इसे कहते हैं रैली.

आया समझ में? उमर ने चिढ़ाया- पटना देखा, इसे कहते हैं रेला. सुनते ही जोर-जोर का ठहाका लगा. मद्दू पत्रकार ने संजीदगी से बोलना शुरू किया. इस बार बिहार की लड़ाई आर-पार की है. सांप्रदायिकता और समाजवादियों के बीच. फैसला बिहार को करना है.. कीन ने सवाल उठाया- और कांग्रेस भी तो है, दूसरी बात कि नीताश और लालू तो जातिवादी पार्टी चलाते हैं?

चिखुरी जो अब तक चुप थे, कीन को घुड़की दी- कुछ जानते भी हो कि बकवास ही करोगे? कांग्रेस की रसीद देखो, सबसे पहले उसमें यही लिखा है- समाजवादी समाज के प्रति प्रतिबद्धता. जेपी, डॉ लोहिया, आचार्य कृपलानी, आचार्य नरेंद्र देव के बगैर कांग्रेस का इतिहास ही नहीं पूरा होगा.

और सुन कीन, अपना यह भ्रामक प्रचार बंद कर कि बिहार में जातिवादी राजनीति होती है. यहां अगर जातिवादी राजनीति होती, तो इसी बिहार से कृपलानी, जॉर्ज, मधु लिमये जीतते रहे हैं. यह प्रचार वही करते हैं जो खुद सिकुड़े हुए मन के हैं.

दिल्ली में पूर्वोत्तर राज्यों के बच्चों पर हमला करेंगे. बंबई में बिहारी मारे जायेंगे, उन्हीं के साथ मिल कर राजनीति करनेवाले बिहार पर आरोप लगायेंगे? बिहार किसी भ्रम में नहीं है. देश का जनतंत्र जिंदा रहे, यह उसकी कामना है. देखा नहीं उस दिन पटना का रेला? कीन समझें या न समझें, लेकिन नवल समझ गये और गाते हुए निकले- मोसो छल किये जाय.. सइयां बेईमान..

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