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ग्रास रूट लेवल पर युवा नेतृत्व की उठी मांग

कोलकाता: पश्चिम बंगाल में माकपा समेत वाममोरचा में शामिल अन्य वामपंथी दलों की समस्या जैसे खत्म होने का नाम नहीं ले रही है. केवल बंगाल ही नहीं बल्कि देश की राजनीति में वामपंथी दल जैसे अप्रासंगिक होते जा रहे हैं. सबसे ज्यादा समस्या का कारण यह है कि इनसे युवा वर्ग नहीं जुड़ पा रहा […]

कोलकाता: पश्चिम बंगाल में माकपा समेत वाममोरचा में शामिल अन्य वामपंथी दलों की समस्या जैसे खत्म होने का नाम नहीं ले रही है. केवल बंगाल ही नहीं बल्कि देश की राजनीति में वामपंथी दल जैसे अप्रासंगिक होते जा रहे हैं. सबसे ज्यादा समस्या का कारण यह है कि इनसे युवा वर्ग नहीं जुड़ पा रहा है. जिसकी सबसे ज्यादा मार माकपा झेल रही है.

पार्टी सूत्रों के अनुसार माकपा के कुल सदस्यों में करीब 6.5 प्रतिशत ही ऐसे कार्यकर्ता हैं जिनकी उम्र 25 वर्ष से कम है. युवा वर्ग को पार्टी से जोड़ने के लिए पार्टी ने सोशल मीडिया का सहारा लेने पहल की लेकिन इसका खासा प्रभाव तो दिखायी नहीं दे रहा है बल्कि सोशल मीडिया पर ही पार्टी के ग्रास रूट लेवल पर युवा नेतृत्व की मांग ज्यादा की जाने लगी है. यानी पार्टी ढांचे के मूल स्तर पर नेतृत्व की कमान युवाओं को देने की मांग की जा रही है. ऐसी मांग करने वालों में युवा कार्यकर्ताओं का एक बड़ा हिस्सा है.

निष्क्रिय पार्टी कार्यकर्ताओं की छंटनी : एक तरफ पार्टी में युवा वर्ग को शामिल किये जाने की मांग तो दूसरी तरफ निष्क्रिय कार्यकर्ता पार्टी के लिए अहम समस्या बने हुए हैं. सूत्रों के अनुसार इस समस्या से निबटने के लिए माकपा के राज्य सचिव डॉ सूर्यकांत मिश्रा ने निष्क्रिय पार्टी कार्यकर्ताओं की छंटनी पर जोर दिया है. बताया जा रहा है कि राज्य में करीब 30 प्रतिशत पार्टी कार्यकर्ता निष्क्रिय हैं. पार्टी के एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि राज्य में माकपा कार्यकर्ताओं की संख्या करीब 2.65 लाख है. हर साल निष्क्रिय कार्यकर्ताओं की छंटनी होती है. कई नये कार्यकर्ता पार्टी से जोड़े जाते हैं. जिसका दर लगभग 10-15 प्रतिशत होता है. पहली दफा है जब पार्टी में निष्क्रिय कार्यकर्ताओं के एक बड़े हिस्से की छंटनी पर जोर दिया जा रहा है.
लगातार घट रहा जनाधार : कभी पश्चिम बंगाल वामपंथियों का गढ़ माना जाता था लेकिन अब स्थिति दूसरी है. वर्ष 2011 में राज्य में हुए विधानसभा चुनाव में करारी शिकस्त खाने के बाद से ही वामपंथियों की नींव जैसे कमजोर होती जा रही है. वर्ष 2014 में हुए लोकसभा चुनाव और गत वर्ष विधानसभा चुनाव में मिली हार ने रही सही कसर भी पूरी कर दी. इसी महीने सात नगर निकायों में हुए चुनाव में वामपंथी दलों की बुरी तरह से हार हुई.
माकपा ने एक वार्ड पर भी कब्ज नहीं जमा पायी. आंकड़ों की मानें तो वर्ष 2011 के विधानसभा चुनाव में वामपंथी दलों को 41.0 प्रतिशत वोट मिले थे. वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में यह आंकड़ा करीब 29.6 प्रतिशत रह गया.
वर्ष 2016 में हुए विधानसभा चुनाव में वामपंथी दलों को लगभग 26.1 प्रतिशत वोट मिले यानी गिरावट लगातार है.
कमजोर नहीं पड़े हैं वामपंथी : येचुरी
पार्टी की सांगठनिक ताकत के मुद्दे पर माकपा के महासचिव सीताराम येचुरी का कहना है कि वर्ष 2011 में हुए विधानसभा चुनाव के बाद से ही बंगाल में लोकतंत्र पर हमले जारी हैं. वर्ष 2016 के विधानसभा चुनाव के बाद स्थिति और विषम हो गयीं. राज्य में सैंकड़ों माकपा कार्यालयों पर हमले हुए या उनपर जबरन कब्जा किया गया. हिंसा और भय के वातावरण में भी वामपंथी आंदोलन कमजोर नहीं हुआ है. इसका मतलब है वामपंथी कमजोर नहीं पड़े हैं.

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