अमेरिका के इस शहर में डूबा सूरज अब 65 दिन बाद निकलेगा, कैसे और क्यों होती है इतनी लंबी रात?
Polar night in Utqiagvik, Alaska: अमेरिका के अलास्का में पोलर नाइट की शुरुआत हो गई है. इस शहर में 18 नवंबर को डूबा सूर्य अब 22 जनवरी को निकलेगा. कैसे होता है यह अजूबा, पृथ्वी और सूर्य की इस जुगलबंदी का क्या है साइंस?
Polar night in Utqiagvik, Alaska: क्या हो अगर आप उठें और सूरज निकले ही नहीं. आम जगहों पर ऐसा नहीं होता, लेकिन दुनिया में ऐसी जगहें हैं, जहां सूरज एक दो नहीं बल्कि पूरे 65 दिन नहीं निकलता. जी हां. अलास्का का शहर उत्कियाग्विक ने मंगलवार (18 नवंबर) को साल का अपना आखिरी सूर्यास्त देखा और “पोलर नाइट” में प्रवेश कर लिया. उत्कियाग्विक में अब अगला सूर्योदय 22 जनवरी 2026 को होने की उम्मीद है. पोलर नाइट लगभग 65 दिनों तक बिना सीधे सूरज की रोशनी वाला समय होता है. (65 days without Sun) इस जगह को पहले बैरो के नाम से जाना जाता था. यहां की आबादी करीब 4600 है.
आर्कटिक सर्कल से लगभग 483 किलोमीटर उत्तर में स्थित उत्तरी अमेरिका का यह सबसे उत्तरी समुदाय अब लंबे अंधेरे में रहेगा. सितंबर और मार्च के विषुव (इक्विनॉक्स) के बीच पृथ्वी का उत्तरी गोलार्ध सूर्य से दूर की ओर झुका रहता है. इसी वजह से उत्तरी अक्षांशों में दिन की रोशनी धीरे-धीरे कम होती जाती है और दिसंबर संक्रांति के आसपास अपने चरम पर पहुँच जाती है. इस पूरे समय के दौरान केवल हल्की सी धुंधली रोशनी दक्षिणी क्षितिज के पास दिखाई देती है और कभी-कभी आसमान में दिखने वाला ऑरोरा बोरेलिस (उत्तरी रोशनी) थोड़ी बहुत चमक प्रदान करता है.
गर्मियों में होता है केवल दिन
पोलर नाइट के दौरान परिस्थितियाँ बेहद कठिन हो जाती हैं. तापमान अक्सर शून्य फारेनहाइट से काफी नीचे चला जाता है. सूरज की रोशनी की अनुपस्थिति लगभग 4600 निवासियों के डेली रूटीन को प्रभावित करती है. हालाँकि, यह अंधेरा केवल एक चरण है. जैसे-जैसे वसंत करीब आता है, दिन की रोशनी धीरे-धीरे वापस लौटती है और मई के मध्य तक स्थिति पूरी तरह उलट जाती है. मई से लेकर अगस्त की शुरुआत तक सूरज बिल्कुल भी नहीं डूबता यानी लगातार दिन रहता है. यही उत्कियाग्विक की चमकीली गर्मियों का मौसम है, जो लंबी सर्दियों की रात के पूरी तरह उलट है.
भारत में ऐसा क्यों नहीं होता?
भारत में, द्रास, लेह या गुलमर्ग जैसे सबसे ठंडे स्थानों में भी, सूरज रोज उगता और डूबता है. सर्दियों में दिन भले छोटे हों, लेकिन ऐसा कभी नहीं होता कि सूरज बिल्कुल गायब हो जाए. भारत में ठंडी जगहों पर दिन और रात का अंतर इस कारण पता चलता है क्योंकि भारत ध्रुवों से काफी दूर स्थित है, इसलिए सूरज का रास्ता हमेशा क्षितिज को पार करने के लिए पर्याप्त ऊँचा रहता है.
अलास्का में क्यों होता है ऐसा?
वहीं उत्कियाग्विक जैसे स्थानों में स्थिति बिल्कुल अलग होती है. ये आर्कटिक सर्कल के भीतर गहराई में स्थित हैं. यहां पर पृथ्वी का झुकाव सर्दियों के दौरान सूरज को इतना नीचे धकेल देता है कि वह हफ्तों तक क्षितिज के नीचे रहता है और यही लंबी अंधकार अवधि पोलर नाइट कहलाती है. यही घटना दक्षिणी गोलार्ध में भी होती है, लेकिन दक्षिणी ध्रुव पर यह और भी नाटकीय है.
आर्कटिक-अंटार्कटिका में दिन-रात का गजब खेल
जहाँ आर्कटिक (उत्तरी ध्रुव- उत्तरी रूस और नॉर्डिक देशों के ऊपर का हिस्सा) कस्बों को कुछ हफ्तों का अंधेरा मिलता है, वहीं दक्षिणी ध्रुव पर लगभग छह महीने लंबी एक ही रात होती है, क्योंकि वह पृथ्वी के ठीक उस बिंदु पर स्थित है जहाँ झुकाव का असर सबसे ज्यादा होता है. वहीं जब आर्कटिक अंधकार में डूबा होता है, तब दक्षिणी ध्रुव पर लगातार सूरज चमकता रहता है, और जब आर्कटिक में ‘मिडनाइट सन’ होता है, तब दक्षिणी ध्रुव अपनी आधे साल लंबी रात में प्रवेश कर जाता है.
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