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World Cancer Day: पेट की तकलीफों की लंबे समय तक अनदेखी ठीक नहीं, पढ़ें ये खास रिपोर्ट

पूरी दुनिया में 4 फरवरी का दिन World Cancer Day के नाम से मनाया जाता है. इस बीमारी का नाम सुनकर ही सबके होश उड़ जाते हैं कारण है, इसका इलाज…पढ़ें ये स्पेशल स्टोरी आजकल लोगों में पाचन से संबंधित परेशानियां बढ़ रही हैं, जो गॉल ब्लैडर के कैंसर का भी कारण बन रहा है. […]

पूरी दुनिया में 4 फरवरी का दिन World Cancer Day के नाम से मनाया जाता है. इस बीमारी का नाम सुनकर ही सबके होश उड़ जाते हैं कारण है, इसका इलाज…पढ़ें ये स्पेशल स्टोरी

आजकल लोगों में पाचन से संबंधित परेशानियां बढ़ रही हैं, जो गॉल ब्लैडर के कैंसर का भी कारण बन रहा है. भारत में इसके रोगियों की संख्या काफी ज्यादा है. विश्व के 10 प्रतिशत केस भारत में पाये जाते हैं. दक्षिण भारत की तुलना में उत्तरी और मध्य भारत के लोगों में यह कैंसर सात गुना ज्यादा देखा जाता है. साल 2012 में एम्स द्वारा जारी एक रिपोर्ट में बताया गया था कि 90 प्रतिशत मरीजों को बीमारी का पता फोर्थ स्टेज पर चलता है. तब तक इलाज के लिए देर हो चुकी होती है. सबसे ज्यादा मामले यूपी और बिहार के हैं. खासकर गंगा किनारे के शहरों में इसकी संख्या ज्यादा देखी गयी. हालांकि इसके पीछे कारणों का पता अब तक नहीं चला.

पुरुषों के मुकाबले 30 से 50 साल की महिलाओं में इसके मामले तीन गुना अधिक देखे गये हैं. महिलाओं के अंदर बननेवाला हॉर्मोन एस्ट्रोजन इसमें मुख्य भूमिका निभाता है. इसके साथ ही बैक्टीरिया, केमिकल, जैसे- आर्सेनिक आदि तथा कार्य क्षेत्रों में बढ़ते एक्सपोजर के कारण भी गॉल ब्लैडर कैंसर का खतरा बढ़ जाता है. मामला सामने आने के एक साल के अंदर 95 फीसदी मरीजों की मौत हो जाती है.

क्या होता है गॉल ब्लैडर कैंसर : गॉल ब्लैडर या पित्ताशय नाशपाती के आकार का एक छोटा-सा अंग है, जो पेट के दायीं ओर, लिवर के नीचे होता है. पित्ताशय में पित्त (पीले रंग का बाइल) भरा रहता है, जो पाचन में मदद करने के लिए लिवर द्वारा पैदा किया गया एक पाचक रस होता है. यह शरीर के अंदर बने जहरीले पदार्थों को हटाने का काम भी करता है. पाचन के समय पित्त को बाइल डक्ट के जरिये (एक पतली नली) छोटी आंत में छोड़ता है. इन्हीं जगहों पर जब असामान्य कोशिकाओं की अनियंत्रित वृद्धि होती है, तो यह गॉल ब्लैडर कैंसर कहलाता है.

क्या होते हैं लक्षण : शुरुआती अवस्था में कोई खास लक्षण नहीं दिखाई देता. अधिकांश मामलों में पता तब चलता है जब गॉल ब्लैडर की पथरी (गॉल स्टोन्स) को उपचार के लिए हटाया जा रहा होता है. ये ट्यूमर शुरुआती अवस्था में सामान्य शारीरिक जांच के दौरान देखे या महसूस नहीं किये जा सकते. इसके अधिकांश मामले में जॉन्डिस (पीलिया) सबसे सामान्य लक्षण होता है. ऐसा तब होता है जब गुर्दे से पित्त (बाइल) नहीं निकलता, जिससे बिलीरूबिन का स्तर खून में बढ़ जाता है. अन्य लक्षणों में पेट में ऊपरी दायें हिस्से में दर्द होता है. इसके साथ मितली, उल्टी भी हो सकती है.

सर्जरी व जांच : गॉल ब्लैडर को निकालने के लिए की जाने वाली लेप्रोस्कोपी सर्जरी को कोलेसिस्टेक्टॉमी कहते हैं. इस सर्जरी के लिए मरीज को अस्पताल में सिर्फ एक या दो दिन रहना पड़ता है. अल्ट्रॉसाउंड के साथ एंडोस्कोपी और लैप्रोस्कोपी भी की जा सकती है. कैंसर के फैलाव को गहराई से जानने के लिए कंप्यूटेड टोमोग्रॉफी (सीटी), एमआरआइ और एमआरसीपी भी की जा सकती है.

कैंसर से जुड़े मिथक व सच्चाई

मिथक : कैंसर संक्रामक है.

फैक्ट : कुछ कैंसर वायरस और बैक्टीरिया के कारण होते हैं. उदाहरण के लिए ह्यूमन पैपिलोमा वायरस जो सर्वाइकल कैंसर का कारण है. हेपेटाइटिस बी और सी लीवर कैंसर कारक और एप्सटीन बार वायरस या हेलिकोबेक्टर पायलोरी बैक्टीरिया पेट के कैंसर के लिए जिम्मेदार होते हैं. यानी कैंसर संक्रामक नहीं है.

मिथक : परिवार में किसी को कैंसर नहीं है, तो आपको कैंसर नहीं हो सकता.

फैक्ट : केवल 5 से 10% मामलों में ही आनुवंशिक कारणों से कैंसर होता है. अधिकतर मामलों में इसका कारण बढ़ती उम्र, पर्यावरणीय कारक, जेनेटिक बदलाव, तंबाकू, सिगरेट, रेडिएशन आदि होते हैं.

मिथक : अगर परिवार में किसी को कैंसर है, तो आप भी शिकार होंगे.

फैक्ट : कैंसर का पारिवारिक इतिहास कैंसर के खतरे को बढ़ाता जरूर है, लेकिन केवल 5 से 10% मामलों में.

मिथक : पॉजिटिव सोच कैंसर को खत्म कर देगी.

फैक्ट : ऐसा कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं.

मिथक : अगर आपको कैंसर है तो कुछ ही दिनों में मृत्यु हो जायेगी.

फैक्ट : सही इलाज के द्वारा कैंसर मरीज 5 साल या इससे भी ज्यादा समय तक जीवित रह पाते हैं.

मिथक : सेलफोन और मोबाइल टावर के संपर्क में रहने वाले लोग कैंसर के शिकार हो जाते हैं.

फैक्ट : अब तक ऐसा कोई प्रमाण नहीं. यह विवादित विषय है, जिस पर शोध जारी है.

कब मिलें डॉक्टर से

पेट के दायीं ओर लगातार दर्द, कमरदर्द और दायें कंधे में दर्द

गैस, बदहजमी के साथ भारीपन लगना

दवा लेने के बाद भी ठीक न होना, पेट दर्द के साथ बुखार आदि लक्षणों को नजरअंदाज न करें, तुरंत डॉक्टर को दिखायें

इन बातों का रखें ख्याल

लंबे समय तक भूखे रहने से गॉल ब्लैडर सिकुड़ना बंद हो जाता है, जिससे इसमें पथरी विकसित हो सकती है

सैचुरेटेड फैट का सेवन कम से कम करें, जैसे- मांस, घी, वनस्पति घी, मक्खन आदि

अपना वजन संतुलित रखें

धूम्रपान, शराब आदि की लत से दूर रहें

फैक्ट फाइल

-2015 में वैश्विक स्तर पर गॉल ब्लैडर कैंसर के लगभग

-1,78,101 मामले होने का अनुमान रहा है.

-60-70% इसके मामलों में मरीज के गॉल ब्लैडर में पथरी पायी गयी.

-कैंसर के कुल मामलों में 20% मामले गॉल ब्लैडर कैंसर के.

-पुरुषों के मुकाबले महिलाओं में होते हैं 03 गुना मामले.

-90% मरीजों को बीमारी का पता फोर्थ स्टेज पर चलता है.

1.8 करोड़ लोग हर साल कैंसर के शिकार हो जाते हैं.

-पित्ताशय एक उपयोगी अंग है, लेकिन आवश्यक अंग नहीं. इसे शरीर से निकाल देने पर पाचन तंत्र पर कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ता. कैंसर के मामले में जिन व्यक्तियों का पित्ताशय शल्य चिकित्सा द्वारा निकाल दिया जाता है, वे बाद में भी सामान्य जीवन व्यतीत कर पाते हैं.

-गॉल स्टोन सर्जरी से पहले कैंसर जांच करायें

किडनी स्टोन के मामले में ज्यादातर पथरी दवाइयों से ही निकल जाती है, लेकिन गॉल ब्लैडर स्टोन सहजता से नहीं निकलता, इसलिए गॉल ब्लैडर में स्टोन का पता चलने के बाद डॉक्टर्स सर्जरी की सलाह देते हैं. सर्जरी से पहले कैंसर की जांच अवश्य करा लें, क्योंकि गॉल ब्लैडर कैंसर के 60 से 70 प्रतिशत मामलों में मरीज के गॉल ब्लैडर में पथरी पायी गयी. अगर यह कैंसर हुआ तो सर्जरी के दौरान और फैल सकता है. इसके बाद मरीज की आयु सिर्फ 6 महीने रह जाती है. ऐसे कैंसर का पता सर्जरी के पहले चल सकता है.

-डब्ल्यूएचओ के अनुसार, विश्व में 96 लाख लोगों की मृत्यु हर साल कैंसर से हो जाती है, जो एड्स, मलेरिया और टीबी से भी ज्यादा है. यह आंकड़ा 2030 तक 132 लाख तक बढ़ने की आशंका है.

इनपुट : सौम्या ज्योत्स्ना

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