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गंभीर बीमारियों का खतरा बढ़ा देता है नमक का अत्यधिक सेवन

नेशनल कंटेंट सेल नमक सिर्फ खाने का स्वाद ही नहीं बढ़ाता, बल्कि कई शारीरिक क्रियाओं में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका होती है. नमक के बिना हम जीवित नहीं रह सकते, लेकिन जब इसी नमक की मात्रा हमारे शरीर में आवश्यकता से अधिक हो जाती है, तो यह हमारे लिए जानलेवा हो जाता है. नमक का अधिक […]

नेशनल कंटेंट सेल

नमक सिर्फ खाने का स्वाद ही नहीं बढ़ाता, बल्कि कई शारीरिक क्रियाओं में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका होती है. नमक के बिना हम जीवित नहीं रह सकते, लेकिन जब इसी नमक की मात्रा हमारे शरीर में आवश्यकता से अधिक हो जाती है, तो यह हमारे लिए जानलेवा हो जाता है. नमक का अधिक मात्रा में सेवन हमारे हृदय और किडनियों को गंभीर नुकसान पहुंचाता है.

कितना जरूरी है नमक : नमक क्रिस्टलीय मिनरल होता है, जो सोडियम और क्लोरीन से बना होता है. ये दोनों तत्व जीवन के लिए बहुत जरूरी हैं. हम इनके बिना नहीं रह सकते हैं, क्योंकि ये कई महत्वपूर्ण बायलॉजिकल प्रक्रियाओं में योगदान देते हैं. कोशिकाओं के अंदर और बाहर पानी की मात्रा को नियंत्रित करते हैं. पोषक तत्वों को कोशिकाओं के अंदर और बाहर ले जाते हैं. पाचन और मेटाबॉलिज्म में सहायता करते हैं. तंत्रिकाओं को विद्युतीय आवेगों को बाहर भोजने में सहायता करते हैं. किडनियों की कार्यप्रणालियों में सहायता करते हैं. रक्त दाब को बनाये रखते हैं और नियंत्रित करते हैं. मस्तिष्क के कार्यों में सहायता करते हैं. सबसे पहले नमक के कुछ प्रकारों के बारे में जानना आवश्यक है.

बाजार में कई प्रकार के नमक मिलते हैं, जिनका रंग, टेक्सचर, स्वाद और पोषक मूल्य अलग-अलग होते हैं. लेकिन इनमें से रिफाइंड टेबल सॉल्ट, सी सॉल्ट, पिंक हिमालय सॉल्ट और सेल्टिक सॉल्ट सर्वाधिक प्रचलित हैं.

रिफाइंड सॉल्ट : इसे टेबल या कुकिंग सॉल्ट भी कहते हैं. इसे समुद्र के पानी को वाष्पीकृत करके बनाया जाता है. इसे खाने लायक बनाने के लिए 1,200 डिग्री फोरेनहाइट पर सुखाया जाता है. अत्यधिक गर्मी नमक की प्राकृतिक रासायनिक संरचना को बदल देती है. प्रक्रिया के दौरान इसमें एंटी-केकिंग एजेंट मिलाया जाता है, ताकि नमक जमे नहीं और आसानी से फ्लो हो सके. इसमें आयोडीन भी मिलाया जाता है, ताकि थायरॉइड तथा गॉइटर रोगों से बचा जा सके.

सी सॉल्ट : इसे सेंधा नमक भी कहते हैं. इसका टेक्सचर रिफाइंड सॉल्ट से अलग होता है. सी सॉल्ट कम पिसा हुआ होता है, अर्थात इसमें नमक के कण बड़े होते हैं. इसे भी समुद्र के पानी को वाष्पीकृत करके ही बनाया जाता है और आमतौर पर इसमें मिनरल्स, जैसे- पोटेशियम, आयरन और जिंक के अंश होते हैं. सेंधा नमक, रिफाइंड से बेहतर माना जाता है.

पिंक सॉल्ट : इसे नमक की खदान से निकाला जाता है. इसमें थोड़ी मात्रा में आयरन ऑक्साइड के अंश होते हैं, जो इसे गुलाबी रंग देता है. इसमें थोड़ी मात्रा में कैल्शियम, आयरन, पोटेशियम और मैग्नेशियम भी होता है. इसमें सोडियम की मात्रा रिफाइंड नमक से थोड़ी कम होती है. पिंक सॉल्ट का सेवन रक्त के संचरण को बढ़ाता है और कोशिकाओं के अंदर पीएच बैलेंस को स्टेबेलाइज करता है.

ग्रे सॉल्ट : ग्रे सॉल्ट को सेल्टिक सी सॉल्ट कहते हैं. यह सुरमई रंग का होता है, इसलिए इसे ग्रे सॉल्ट कहते हैं. यह नमक नमी रोककर रखता है. यह इलेक्ट्रोलाइट का संतुलन पुन: स्थापित करने में सहायता करता है. ग्रे सॉल्ट, पिंक सॉल्ट की तरह ही मांसपेशियों की ऐंठन में आराम पहुंचाता है. यह थोड़ा महंगा होता है, क्योंकि इसे निकालने और प्रोसेस करने में काफी खर्च आता है.

दादी-नानी के नुस्खे

दैनिक जीवन में लोग कई छोटी-छोटी समस्याओं का सामना करते हैं और इलाज के तौर पर एलोपैथिक दवाएं लेते हैं. इसका साइड इफेक्ट भी हो सकता है, जबकि बुजुर्गों के बताये कई नुस्खे हैं, जो सदियों से आजमाये जा रहे हैं और बेहद प्रभावी भी हैं. जानिए कुछ उपाय.सेंधा नमक को सरसों तेल में मिलाकर दांतों व मसूडों पर रगड़ने से दांत मजबूत होते हैं. पीलापन भी दूर होता है. यह पायरिया से भी बचाता है.

तुलसी के पांच-सात पत्तों को सुखा कर इसका पेस्ट तैयार कर लें. फिर इसे टूथपेस्ट में मिलाकर दांत साफ करें. इससे दांतो का पीलापन दूर होगा व मसूड़े मजबूत बनेंगे.

जब उल्टी करने का मन हो रहा हो, तो तो आप चावल से निकाले गये मांड़ का सेवन करें.

यदि आप शहद को एक गिलास पानी में मिलाकर पीते हैं, तो उल्टियां रुक जाती हैं.

मुंह से संबंधित समस्याएं हों, तो इमली की पत्तियों को चूसे और फिर इससे कुल्ला करें. परेशानियां दूर हो जायेंगी.

हृदय रोग

आम तौर पर यह सुनने के लिए मिलता है कि कोलेस्ट्रॉल लेवल बढ़ने से कई तरह की समस्याएं हो सकती हैं. शरीर में इसका सही लेवल क्या होना चाहिए?

राजेश्वर सिंह, दानापुर

कोलेस्ट्रॉल हमारे शरीर के सेल मेंब्रेन में मौजूद रहता है. शरीर इसका उपयोग कई प्रकार के हॉर्मोन को स्रावित करने के लिए करता है. इसी की मदद से विटामिन डी और बाइल एसिड बनता है, जो फैट को पचाने का कार्य करता है. शरीर को सही तरीके से कार्य करने के लिए बहुत ही कम मात्रा में कोलेस्ट्रॉल की जरूरत होती है. कोलेस्ट्रॉल लेवल के बढ़ जाने से कई समस्याएं हो सकती हैं, जैसे-हृदय रोग, मोटापा आदि. अत: इस समस्या से बचने के लिए समय-समय पर कोलेस्ट्रॉल टेस्ट कराना जरूरी होता है. टेस्ट में तीन चीजों को मापा जाता है- एचडीएल, एलडीएल और ट्राइग्लिसराइड.

टोटल कोलेस्ट्रॉल : यदि इसका रिजल्ट 200 एमजी/डीएल से कम है, तो कोलेस्ट्रॉल लेवल सामान्य है. यदि 200 से 239 एमजी/डीएल के बीच है, तो खतरे का संकेत है. यदि 240 एमजी/डीएल से अधिक है, तो स्थिति खतरनाक स्तर पर है.

एचडीएल : यदि यह 40 एमजी/डीएल पुरुष में और 50 एमजी/डीएल महिला में है, तो उसे हार्ट डिजीज का खतरा होता है.

एलडीएल : 100 एमजी/डीएल सामान्य और 160 एमजी/डीएल से अधिक को खतरे की श्रेणी में.

ट्राइग्लिसराइड : 150 एमजी/डीएल सामान्य और 200 से अधिक खतरे का संकेत हो सकता है.

डॉ निशांत त्रिपाठी

एसोसिएट प्रोफेसर, कार्डियोलॉजी, आइजीआइएमएस, पटना

इएनटी रोग

कान में गंदगी महसूस होने पर मैंने माचिस की तीली में रुई लपेट कर निकालने का प्रयास किया. उसके बाद से कान में दर्द रहने लगा है. कान को कैसे साफ रखा जाये?

धवल कुमार, रांची

आपको इएनटी विशेषज्ञ से कान की जांच करा लेनी चाहिए. कान में जमी गंदगी या वैक्स को सिरुमिन कहते हैं. कान में मौजूद कई ग्रंथियों से यह निकलता है. यह कोई हानिकारक पदार्थ नहीं है. दरअसल, यह कान में अंदरूनी हिस्से को ल्यूब्रिकेट करता है. यह कान को सूखने से बचाता है. इसके अलावा कान में जानेवाली धूल और गंदगी इससे चिपक जाती है, अर्थात् यह धूल और गंदगी को कान के परदे पर जमा होने या चिपकने से रोकता है. इसे साफ करने की भी जरूरत नहीं पड़ती है.

दरअसल, कान का अपना एक ऑटो क्लीनिंग मैकेनिज्म होता है. इसके तहत यदि यह अधिक जमा हो जाता है, तो खुद ही धीरे-धीरे करके बाहर आ जाता है. पर कुछ लोगों में ऐसा नहीं हो पाता है. इससे वैक्स का लेयर बढ़ता चला जाता है और सूख कर कड़ा हो जाता है. इसके कारण सुनाई देने में परेशानी हो सकती है. लोग माचिस की तीली या अन्य चीजों से इसे निकालने का प्रयास करते हैं, जिससे अंदरूनी चोट लग सकती है या परदा भी फट सकता है. अत: इस तरह का प्रयास बिल्कुल भी न करें. अगर सुनने में अधिक परेशानी हो रही हो, तो इएनटी विशेषज्ञ के पास जाकर कान की सफाई करा लें. डॉक्टर आम तौर पर ऐसे मामलों में एंटीबायोटिक का डोज देते हैं, ताकि इन्फेक्शन को रोका जा सके.

डॉ हर्ष कुमार

एमबीबीएस, एमएस (इएनटी), पॉपुलर नर्सिंग होम, रातु रोड, रांची

कितनी मात्रा में खाएं नमक

ज्यादा नमक खाने से हाइ ब्लड प्रेशर हो जाता है, तो कम नमक लो ब्लड प्रेशर का कारण बनता है. असंतुलित मात्रा में सेवन करने से मांसपेशियों में ऐंठन हो जाती है, इसलिए जरूरी है कि उचित मात्रा में इसका सेवन किया जाये. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार एक मनुष्य को जीवन के विभिन्न स्तरों पर प्रतिदिन इतनी मात्रा में नमक की जरूरत होती है –

किडनी को कैसे पहुंचता है नुकसान

अगर आप नमक का अधिक मात्रा में सेवन करेंगे, तो आपकी किडनियों को इलेक्ट्रोलाइट्स और फ्लुयड्स का संतुलन बनाने में अधिक मेहनत करनी पड़ेगी. अत्यधिक नमक रक्त में इलेक्ट्रोलाइट और फ्लुयड के संतुलन को गड़बड़ा देता है. इससे हृदय को रक्त पंप करने के लिए अधिक मेहनत करनी पड़ती है, इससे रक्त नलियों में दाब बढ़ता है. आगे रक्त नलिकाएं क्षतिग्रस्त होकर किडनी फंग्शन को प्रभावित करती हैं.

औसत से कम मात्रा में करें नमक का सेवन

सामान्य मात्रा में नमक का सेवन शरीर के सुचारू रूप से कार्य करने के लिए जरूरी है, लेकिन अधिक मात्रा में सेवन गंभीर बीमारियों का खतरा बढ़ा देता है. अत्यधिक नमक के सेवन से उच्च रक्तचाप के अलावा स्ट्रोक, हृदय रोग, हार्ट फेल्योर और किडनी फेल्योर की आशंका कई गुना बढ़ जाती है. नमक उच्च रक्तचाप का सबसे प्रमुख कारण है.

लेकिन जिन लोगों को उच्च रक्तचाप की समस्या नहीं है, उन्हें भी औसत से कम मात्रा में नमक का सेवन करना चाहिए. इस बात का कोई वैज्ञानिक आधार उपलब्ध नहीं है, लेकिन कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि अगर सामान्य व्यक्ति भी प्रतिदिन नमक के सेवन को 1/3 से घटा दे, तो स्ट्रोक की आशंका 22 प्रतिशत और हार्ट अटैक की आशंका 16 प्रतिशत कम हो जायेगी. भोजन में सोडियम की मात्रा कम करना और पोटेशियम का सेवन बढ़ाना उच्च रक्तचाप से बचने का सबसे कारगर तरीका है.

डॉ सुदीप सिंह सचदेव

नेफ्रोलॉजिस्ट, नारायणा सुपर स्पेशेलिटी हॉस्पिटल, गुरुग्राम

स्पाइन रोग

उम्र 37 साल है. छह माह से पीठ में दर्द है. कभी-कभी दर्द इतना बढ़ जाता है कि बुखार आ जाता है. प्रारंभिक जांच में स्पाइनल ट्यूमर का पता चला है. उपचार के बारे में जानना है. चंचल घोष, धनबाद

यह ट्यूमर मेरुदंड में होता है और यह रीढ़ की किसी हड्डी में या डिस्क में विकसित होता है. ऑस्टियोजेनिक सरकोमा हड्डी का ट्यूमर है, जो इस श्रेणी में आता है. आमतौर पर 21 से 50 आयुवर्ग के लोग चपेट में आते हैं. यह शरीर में एक जगह से दूसरी जगह फैलता है. असहनीय दर्द, बुखार, वजन तेजी से घटना आदि लक्षण हैं. यह स्थाई विकलांगता का कारण बन सकता है. महिलाओं में रीढ़ की हड्डी का ट्यूमर स्तनों या फेफड़ों से उत्पन्न होनेवाली कैंसर कोशिकाओं के जरिये फैलता है.

वहीं, पुरुषों में प्रोस्टेट या फेफड़ों से उत्पन्न ट्यूमर की कोशिकाओं से स्पाइनल ट्यूमर होने की आशंका रहती है. कई तरह की उपचार पद्धतियां हैं, लेकिन अब देश के कई प्रमुख अस्पतालों में पूर्ण रूप से शल्य क्रिया रहित उपचार की व्यवस्था है, जिसे साइबरनाइफ (रेडिएशन सर्जरी)कहते हैं. इसमें बेहोश करने की जरूरत नहीं होती व तेजी से लाभ होता है.

डॉ आदित्य गुप्ता

न्यूरो सर्जरी एक्सपर्ट, अग्रिम इंस्टीट्यूट फॉर न्यूरोसाइंसेंज, आर्टेमिस हॉस्पिटल, गुरुग्राम

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