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इंटरनेट ऑफ थिंग्स और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के सहारे बदल सकती है ग्रामीण स्वास्थ्य की तसवीर

देश में स्वास्थ्य सेवाओं की दशा ज्यादा अच्छी नहीं है. खासकर ग्रामीण इलाकों में लोगों के लिए कम लागत में स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराना अब भी बड़ी चुनौती बनी हुई है. लेकिन, इंटरनेट ऑफ थिंग्स और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसी प्रभावी तकनीकों की मदद से इस क्षेत्र की दशा को सुधारा जा सकता है. कैसे मुमकिन […]

देश में स्वास्थ्य सेवाओं की दशा ज्यादा अच्छी नहीं है. खासकर ग्रामीण इलाकों में लोगों के लिए कम लागत में स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराना अब भी बड़ी चुनौती बनी हुई है. लेकिन, इंटरनेट ऑफ थिंग्स और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसी प्रभावी तकनीकों की मदद से इस क्षेत्र की दशा को सुधारा जा सकता है. कैसे मुमकिन हो सकता है यह सब और कितने सक्षम तरीके से बदलाव लाया जा सकता है देशभर में स्वास्थ्य सेवाओं में समेत इससे संबंधित विविध पहलुओं को रेखांकित कर रहा है आज का मेडिकल हेल्थ पेज …
भारत की आबादी 130 करोड़ से ज्यादा हो चुकी है. इतनी विशाल आबादी को स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया कराने के लिए देशभर में डॉक्टर्स की संख्या महज 10.12 लाख ही है. इसमें भी ज्यादातर डॉक्टर शहरी क्षेत्रों में रहते हैं. यानी ग्रामीण क्षेत्रों में इनकी संख्या बहुत ही कम है.
‘केपीएमजी’ की एक हालिया रिपोर्ट में यह बताया गया है कि भारत में 74 फीसदी डॉक्टर देश के एक-तिहाई शहरी आबादी को अपनी सेवाएं देते हैं, जबकि शेष केवल 2.63 लाख डॉक्टर देश के दो-तिहाई हिस्से यानी ग्रामीण आबादी को अपनी सेवाएं मुहैया कराते हैं.
डॉक्टरों की संख्या पर्याप्त नहीं होने के कारण लोगों को समुचित स्वास्थ्य देखभाल की सुविधा मुहैया न हो पाने के लिहाज से उपरोक्त तसवीर भले ही भयावह हो, लेकिन भारत में बढ़ते मोबाइल कनेक्शन, और खासकर स्मार्टफोन के इस्तेमाल ने इस दिशा में एक नयी राह दिखायी है. विविध अध्ययनों में यह दर्शाया गया है कि वर्ष 2008 तक इंटरनेट से जुड़े उपकरणों की संख्या इस धरती पर मौजूद इनसानों की संख्या से ज्यादा हो चुकी थी. वर्ष 2020 के बारे मेंयह अनुमान लगाया जा रहा है कि इंटरनेट से कनेक्टेड डिवाइस की संख्या का आंकड़ा 5,000 करोड़ को भी पार कर जायेगा.
हेल्थकेयर सेक्टर में डॉक्टर की कमी को पाटने के लिहाज से स्मार्टफोन की सबसे बड़ी भूमिका होगी. खासकर भारत में स्वास्थ्य क्षेत्र में बदलाव लाने में आइओटी यानी इंटरनेट ऑफ थिंग्स और एआइ यानी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का सबसे ज्यादा योगदान होगा. इसमें चुनौती यह है कि हेल्थकेयर सोलुशन की नयी पीढ़ी को इसके लिए प्राथमिक स्तर से ही रक्षात्मक उपायों पर जोर देना होगा.
ग्रामीण केंद्रों के लिए समाधान
इन समस्याओं का समाधान इनोवेटिव तरीकों से आसानी से किया जा सकता है. इसके लिए इन तरीकों को अपनाया जा सकता है :
कम लागत वाले क्लिनीक : ग्रामीण क्षेत्रों के लिए कम लागत वाले क्लिनीकल ग्रेड के डायग्नोस्टिक्स सेंटर की जरूरत है, ताकि इनका इस्तेमाल प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों के रूप में किया जा सके.
सूचना का आदान-प्रदान : इस तथ्य का उल्लेख पहले ही किया जा चुका है कि ग्रामीण स्वास्थ्य केंद्रों में करीब 80 फीसदी तक स्वास्थ्य कर्मियों और विशेषज्ञों की कमी है, लिहाजा नेटवर्क-कनेक्टेड हेल्थ सेंसर्स के जरिये शहरों में स्थित मेडिकल विशेषज्ञों तक मरीजों के आंकड़े भेजे जा सकते हैं. आइओटी से यह कार्य आसानी से संभव हो सकता है.
पोर्टेबिलिटी : ग्रामीण क्षेत्रों के लिए कम वजन वाले इलाज के उपकरणों को प्रभावी तरीके से इस्तेमाल में लाया जा सकता हे. ये डिवाइस ऐसे होने चाहिए, जिन्हें डॉक्टर और स्वास्थ्यकर्मी आसानी से अपने साथ ले जा सकें.
मरम्मत की कम जरूरत : ऐसे चिकित्सा उपकरणों का होना जरूरी है, जिन्हें मरम्मत की जरूरत बहुत कम हो.अर्ध-कुशल कर्मियों से संचालन : चूंकि ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य केंद्रों पर स्वास्थ्यकर्मी ज्यादा कुशल नहीं होते हैं और साथ ही इन्हें नयी तकनीक आने की दशा में समुचित प्रशिक्षण नहीं मुहैया कराया जाता है, लिहाजा यहां के लिए ऐसे उपकरणों को विकसित करना जरूरी है, जिन्हें अर्ध-कुशल कर्मियों के जरिये संचालित किया जा सके.
ग्रामीण इलाकों में तकनीक के सहारे ही पार होगी सेहत की नैया
मौजूदा समय में भारतीय स्वास्थ्य क्षेत्र में दो तरीके से हो रहे बदलावों से ही उल्लेखनीय उपलब्धि हासिल की जा सकती है. पहला, क्लिनीकल प्रैक्टिस में तकनीक का इस्तेमाल बढ़ाने से और दूसरा गंभीर बीमारियों की रोकथाम के लिए नियमित रूप से प्रयास जारी रखने से. एक समग्र हेल्थकेयर परिदृश्य ऐसी दशा को कहा जा सकता है, जहां स्वास्थ्य संबंधी व्यवहार में लाये जाने वाले आंकड़ों और मरीज के पूर्व के स्वास्थ्य आंकड़ों को सही तरीके से रिकॉर्ड में रखने के साथ ही उसका समुचित तरीके से प्रबंधन किया जाता है.
इसके अलावा, जरूरत की दशा में मरीज द्वारा इन आंकड़ों को आसानी से स्वास्थ्य पेशेवरों के साथ साझा किया जा सकता है. हालांकि, भारत में ये दोनों ही प्रयास अभी आरंभिक अवस्था में हैं. तकनीक का इस्तेमाल शुरू हो चुका है, लेकिन फिलहाल यह डॉक्टर से मिलने वाले एपॉइंटमेंट, शिड्यूलिंग और बिलिंग जैसे कार्यों के लिए ज्यादा हो रहा है. स्वास्थ्य जांच के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में इसका इस्तेमाल अभी बहुत कम हो रहा है. वैसे लोगों में स्वास्थ्य के प्रति जागरुकता बढ़ी है और वे नियमित चेकअप की ओर प्रेरित हो रहे हैं. दूसरी ओर, भारत को गंभीर बीमारियों की शरणस्थली कहा जाता है. इसलिए इनकी रोकथाम करना सबसे जरूरी है.
तकनीक ने प्रत्येक व्यक्ति के लिए स्वास्थ्य सेवाओं के दायरे में क्रांतिकारी बदलावों को अंजाम दिया है और मेडिकल सुविधाओं समेत वर्चुअल कंसल्टेशन तक बेहतर सुविधाएं मुहैया करायी है. तकनीक ने हेल्थकेयर प्रेक्टिशनर के लिए भी कार्यों को आसान बना दिया है. खासकर आरंभिक अवस्था में बीमारियों की पहचान करने या किसी संभावित महामारी का अनुमान लगाने में मदद मिल रही है. मोबाइल-आधारित ऑनलाइन एप्लीकेशंस के जरिये मरीजों को कम लागत में प्रभावी तरीके से इलाज मुहैया कराया जा रहा है.
तकनीक से मुमकिन बदलाव
आज स्मार्ट घड़ियों के जरिये रक्त में ग्लूकोज के स्तर की निगरानी करने के अलावा डॉक्टर्स को स्वास्थ्य संबंधी अन्य आंकड़े रीयल-टाइम में मुहैया कराने में मदद मिल रही है. सुपरकंप्यूटर्स के माध्यम से कैंसर के बारे में जानकारी मिल रही है. हालांकि, भारत में अभी इस दिशा में कई चुनौतियां हैं. लेकिन, आज जिस 4जी नेटवर्क के सहारे तकनीक के क्षेत्र में हम नये बदलाव लाने में सक्षम हुए हैं, ठीक उसी तरह से इंटरनेट ऑफ थिंग्स और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की मदद से स्वास्थ्य क्षेत्र में भी नये बदलाव लाये जा सकते हैं.
मरीज के रीयल-टाइम आंकड़ों को हासिल करते हुए और संबंधित तरीकों से मदद मुहैया कराते हुए अभी इस क्षेत्र में विकास के बेहतरीन मौके हमारे सामने हैं.
दुर्भाग्यवश, अब तक ज्यादातर इनोवेटिव और तकनीकी रूप से उन्नत स्वास्थ्य सेवाएं शहरों तक ही मुहैया हो पाती हैं और ग्रामीण आबादी को इससे वंचित रहना पड़ता है. इसके लिए भले ही बुनियादी ढांचे और प्रशिक्षित मेडिकल कर्मियों की कमी और मुश्किल पहुंच का होना कारण बताया जाये, लेकिन वास्तविकता यही है कि ग्रामीण इलाकों में समुचित स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया कराना अब भी देश के सामने एक बड़ी चुनौती बना हुआ है.
हेल्थकेयर एआइ का बाजार
स्वास्थ्य उद्योग की विविध रिपोर्ट्स के हवाले से ‘टेक इकोनोमिक टाइम्स डॉट इंडिया टाइम्स डॉट कॉम’ के एक लेख में बताया गया है कि वर्ष 2016 में हेल्थकेयर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का बाजार 667 मिलियन डॉलर रहा था.
उम्मीद जतायी जा रही है कि वर्ष 2022 तक इसका बाजार आठ अरब डॉलर तक पहुंच जायेगा. वहीं दूसरी ओर, वर्ष 2016 में हेल्थकेयर आइओटी यानी इंटरनेट ऑफ थिंग्स का बाजार 22.5 अरब डॉलर था, जो वर्ष 2021 तक बढ़ कर 72 अरब डॉलर तक पहुंच जायेगा.
स्वाभाविक तौर पर, इन वर्षों के दौरान बड़ी तकनीकी कंपनियाें समेत अनेक इनावेटिव स्टार्टअप्स इनकी जरूरतों को समझेंगे और आइओटी व एआइ हेल्थकेयर गैप को पाटने का प्रयास करेंगे.
डॉक्टर का विकल्प नहीं बन सकती है तकनीक
तकनीक भले ही कितनी विकसित क्यों न हो जाये, यह डॉक्टर का विकल्प नहीं बन सकती. हालांकि, तकनीक के जरिये मेडिकल प्रोफेशनल्स को अविकसित इलाकों में माैजूद मरीजों तक इलाज की सुविधाएं मुहैया कराना आसान जरूर हो सकता है, जहां अब तक गुणवत्तायुक्त स्वास्थ्य सुविधाएं पहुंचाना एक बड़ी चुनौती रही है. इंटरनेट ऑफ थिंग्स और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की मदद से रिमोट क्लिनीकल मॉनिटरिंग, क्रोनिक डिजीज मैनेजमेंट और प्रिवेंटिव केयर को अमल में लाते हुए ग्रामीण इलाकों में पहले के मुकाबले ज्यादा आसानी से इलाज मुहैया कराया जा सकता है.
इलेक्ट्रॉनिक हेल्थ रिकॉर्ड्स
आधुनिक तकनीकों के लिए आंकड़ा ही ज्ञान है. इलेक्ट्रॉनिक हेल्थ रिकॉर्ड्स को अपनाने से मरीज के आंकड़ों पर ज्यादा सटीक तरीके से निगरानी रखी जा सकती है. जैसे-जैसे ज्यादा-से-ज्यादा डिजिटल रिकॉर्ड एकत्रित होते जायेंगे, स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया कराने वालों को ज्यादा क्षमता हासिल होगी. इससे देश में स्वास्थ्य सेवाओं की दशा को बदला जा सकता है.

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