कन्हैया झा नयी दिल्ली)
-विश्व रेडियो दिवस आज-
1980 के दशक के आखिर तक ‘बुद्धू बक्से’ और 1990 के दशक के आखिर तक केबल टीवी के देशभर में छा जाने के बाद रेडियो के मृत होने की ‘भविष्यवाणी’ की जाने लगी थी, लेकिन एफएम समेत कई नवीन तकनीकों की वजह से इसे फिर से न केवल जीवनदान मिला, बल्कि हर व्यक्ति की जेब में इसने अपनी जगह बना ली. समय के साथ रेडियो प्रसारण के तरीकों में कितना बदलाव आया है, रेडियो दिवस (13 फरवरी) के बहाने इससे जुड़ी तमाम चीजों पर नजर डाल रहा है नॉलेज.
‘ये आकाशवाणी है. अब आप देवकी नंदन पांडेय से समाचार सुनिये..’ ‘नमस्ते बहनों भाइयों.. मैं.. आपका दोस्त.. अमिन सयानी.. सिलोन रेडियो से बिनाका गीतमाला प्रस्तुत करने एक बार फिर आ चुका हूं..’ ‘नमस्कार.. आप सुन रहे हैं विविध भारती का पंचरंगी कार्यक्रम.. और अब आप लोगों की फरमाइश पर ये मशहूर गीत आपको सुना रहे हैं..’ आप सोच रहे होंगे कि दशकों पुरानी ये लाइनें हम क्यों आपको पढ़ा रहे हैं. दरअसल, एक जमाने में रेडियो पर सुनी जानेवाली ये कुछ ऐसी सदाबहार आवाजें थीं, जिन्हें सुनते ही बरबस श्रोताओं के पैर थम जाते थे. 1990 के दशक के आखिरी समय में छोटे शहरों से लेकर देश के अनेक कस्बों और गांवों तक में भी केबल टीवी की पहुंच कायम होने से रेडियो की लोकप्रियता प्रभावित हुई थी. ऐसा लगने लगा कि रेडियो के दिन अब लद गये, लेकिन ‘एफएम’ के आने के बाद से इसमें क्रांतिकारी परिवर्तन हुआ. खास कर मोबाइल फोन में एफएम जुड़ जाने के बाद से तो देशभर में इसकी धूम मच गयी. महज कुछ वर्षो पूर्व जहां यह माना जा रहा था कि रेडियो मृत होता जा रहा है, वहीं अब तकरीबन प्रत्येक मोबाइल में इसकी सुविधा उपलब्ध है. खासकर निजी क्षेत्र में ‘एफएम रेडियो’ के संचालन का लाइसेंस जारी किये जाने के बाद से तो इसकी लोकप्रियता दिनोंदिन बढ़ती ही गयी है.
रेडियो दिवस की प्रासंगिकता
आपके जेहन में यह सवाल पैदा हो सकता है कि आखिरकार रेडियो दिवस की प्रासंगिकता क्या हो सकती है? दरअसल, यूनेस्को की जनरल कॉन्फ्रेंस में 36वें सत्र के दौरान 13 फरवरी को विश्व रेडियो दिवस के तौर पर घोषित किया गया है. इससे पूर्व यूनेस्को की कार्यकारी बोर्ड ने विश्व रेडियो दिवस के आयोजन की सिफारिश की थी. स्पेन की ओर से दिये गये एक प्रस्ताव पर अध्ययन करने के बाद यूनेस्को ने यह कदम उठाया था. यूनेस्को की ओर से कहा गया कि बतौर मास मीडिया रेडियो की पहुंच पूरी दुनिया में है. इसे संचार का एक सशक्त माध्यम माना जाता है और यह संचार का सस्ता साधन भी है. दूरदराज के इलाकों में रहनेवाले समुदायों और पिछड़ों समेत अनपढ़, शारीरिक अशक्त, महिलाओं, युवा और गरीबों के लिए तो यह सर्वाधिक उपयुक्त संचार माध्यम है. लोगों के शैक्षिक स्तर के मुताबिक रेडियो उन्हें सार्वजनिक परिचर्चाओं के लिए एक मंच मुहैया कराता है. आज भले ही संचार के अत्याधुनिक माध्यमों का इजाद हो चुका हो, लेकिन आपातकालीन परिस्थितियों में रेडियो का अहम योगदान है. खासकर आपदा के समय राहत मुहैया कराने में इसकी सर्वाधिक भूमिका को नकारा नहीं जा सकता. मौजूदा समय में मीडिया तकनीक के बदलते दौर में रेडियो सेवाओं का स्वरूप भी बदल रहा है. मोबाइल और टैबलेट जैसी तकनीक के नये प्रारूप इसे बदल रहे हैं और इसकी पहुंच बढ़ रही है. हालांकि इन सबके बावजूद दुनिया में करोड़ों लोगों के बीच आज तक रेडियो नहीं पहुंच पाया है.
रेडियो दिवस मनाने का फैसला
यूनेस्को ने जून, 2011 में व्यापक स्तर पर सलाह की प्रक्रिया शुरू की. इसमें इस सेवा के संचालन से जुड़े तमाम संगठनों मसलन- ब्रॉडकास्टिंग एसोसिएसंश, पब्लिक, स्टेट, प्राइवेट कम्युनिटी और अंतरराष्ट्रीय ब्रॉडकास्टरों, यूएन की विभिन्न एजेंसियों, फंड्स और प्रोग्राम्स, संबंधित गैर-सरकारी संगठनों, विभिन्न संबंधित अकादमियों, फाउंडेशंस और बाइलेटरल डेवलपमेंट एजेंसियों समेत यूनेस्को परमानेंट डेलीगेशन और नेशनल कमीशंस आदि से राय ली गयी. इनमें से 91 फीसदी से ज्यादा ने इसके पक्ष में अपनी राय दी. अरब स्टेट्स ब्रॉडकास्टिंग यूनियन (एएसबीयू), द एशिया-पेसिफिक ब्रॉडकास्टिंग यूनियन (एबीयू), द अफ्रीकन यूनियन ऑफ ब्रॉडकास्टिंग (एयूबी), द कैरीबियन ब्रॉडकास्टिंग यूनियन (सीबीयू), द यूरोपियन ब्रॉडकास्टिंग यूनियन (इबीयू), द इंटरनेशनल एसोसिएशन ऑफ ब्रॉडकास्टिंग (आइएबी), द नॉर्थ अमेरिकन ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन (एनएबीए), बीबीसी, यूआरटीआइ, वेटिकन रेडियो समेत रेडियो से जुड़े दुनियाभर में 46 अग्रणी संगठनों ने इसके पक्ष में सिफारिश की थी.
क्यों चुना गया 13 फरवरी को
दरअसल, 13 फरवरी वह दिन है, जब वर्ष 1946 में ‘यूनाइटेड नेशंस रेडियो’ की स्थापना की गयी थी. यूनेस्को के डाइरेक्टर-जनरल की ओर से इस तिथि को प्रस्तावित किया गया था. आम लोगों में मीडिया के प्रति व्यापक जागरूकता फैलाना और रेडियो के महत्व को रेखांकित करना ही इस दिवस का मुख्य मकसद तय किया गया है, ताकि रेडियो के माध्यम से जनता को ज्यादा से ज्यादा सूचना मुहैया करायी जा सके. साथ ही, ब्रॉडकास्टर्स को नेटवर्किग की सुविधा में इजाफा करते हुए उन्हें अंतरराष्ट्रीय सहयोग प्रदान किया जा सके.
इस कार्यक्रम की रूपरेखा को तय करने में भागीदार संगठनों ने भी अपनी ओर से कई विचार प्रस्तावित किये हैं. इसमें सोशल मीडिया के व्यापक इस्तेमाल, हर साल एक थीम का होना, निर्धारित वेबसाइट, स्पेशल रेडियो कार्यक्रम, रेडियो कार्यक्रमों का आपसी लेन-देन, प्रमुख साङोदारों को शामिल करते हुए उत्सव आदि आयोजित किये जाने के सुझाव भी दिये गये.
14 जनवरी, 2013 को यूनाइटेड नेशंस जनरल एसेंबली ने औपचारिक तौर पर यूनेस्को के ‘विश्व रेडियो दिवस’ की घोषणा की. यूनाइटेड नेशंस के 67वें सत्र के दौरान यूनेस्को जनरल कांफ्रेंस के 36वें सत्र में अपनाये गये संकल्प का समर्थन किया गया और 13 फरवरी को ही ‘विश्व रेडियो दिवस’ के तौर पर घोषित किया गया, जिस दिन 1946 में यूनाइटेड नेशंस रेडियो की स्थापना की गयी थी.
यूनेस्को का विश्व रेडियो दिवस 2014
देशदुनिया के तमाम ब्रॉडकास्टर्स के बीच अंतरराष्ट्रीय सहयोग कायम करने के मकसद से रेडियो दिवस आयोजित किया जाता है 13 फरवरी को. साथ ही, इस दिवस के आयोजन का मकसद कम्युनिटी रेडियो के तौर पर सभी लोगों तक सूचना की पहुंच कायम करने, लोगों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और महिलाओं को मुख्यधारा में शामिल करने के लिए प्रोत्साहित करना है.
जैसे-जैसे रेडियो डिजिटल युग में प्रवेश करता जा रहा है, वैसे-वैसे दुनियाभर में श्रोताओं तक इसका विस्तार बढ़ता जा रहा है. महिलाओं को समान अधिकार दिलाने और उनके सशक्तीकरण को बढ़ावा देने के लिए यूनेस्को ने इस माध्यम को कारगर माना है और इसके प्रोत्साहन के लिए उसने खास तौर से अपनी प्रतिबद्धता जतायी है.
-विश्व रेडियो दिवस के आयोजन के माध्यम से यूनेस्को दुनियाभर में महिलाओं के लिए समान अधिकारों (जेंडर इक्वलिटी) को इस तरह से प्रोत्साहित करने का प्रयास करेगा :
-रेडियो के लिए महिलाओं से संबंधित नीतियों और रणनीतियों को विकसित करने के लिए रेडियो स्टेशन संचालकों, एग्जीक्यूटिव्स, पत्रकारों और सरकारों को संवेदनशील बनाना.
-रेडियो पर चली आ रही गैर-उपयोगी परंपराओं को खत्म करना और बहुआयामी चित्रण (मल्टीडाइमेंशनल पोरट्रेयल) को बढ़ावा देना.
-लड़कियों को समूचे कार्यक्रम निर्माण का दायित्व सौंपते हुए (प्रोड्यूसर, रिपोर्टर्स आदि बनाते हुए) युवाओं में रेडियो कार्यक्रम तैयार करने की कुशलता पैदा करना.
-महिला रेडियो पत्रकारों के लिए सुरक्षा मुहैया कराना.
13 फरवरी को इंटरनेशनल ब्रॉडकास्टर्स यूनेस्को के मुख्यालय से कार्यक्रम का सीधा प्रसारण करेंगे. नेशनल कमीशंस, क्षेत्रीय कार्यालयों और संगठन के अन्य साङोदारों के साथ मिलकर यूनेस्को दुनियाभर में विश्व रेडियो दिवस के आयोजन को निर्देशित करेगा. इस मौके पर यूनेस्को प्रसिद्ध नेताओं की विचारधारा के कापीराइट मुक्त लेखों, ऑडियो और वीडियो मैजेस भी मुहैया करायेगा. विश्व रेडियो दिवस आयोजन के मौके पर संचालित होनेवाली गतिविधियों में हिस्सा लेने के लिए क्षेत्रीय, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रसारकों, गैर-सरकारी संगठनों समेत मीडिया और आम जनता को आमंत्रित किया है. इस मौके पर स्थानीय समय 12 बजे पेरिस में यूनेस्को मुख्यालय समेत दुनियाभर में कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है, जिसे फ्रेंच और अंगरेजी भाषा में सुना जा सकता है.
आकाशवाणी एफएम रेनबो
ऑल इंडियो रेडियो के एफएम रेनबो चैनल को दरअसल उस समय लॉन्च किया गया, जब बड़े शहरों में रेडियो सुननेवालों की संख्या कम होती जा रही थी. तकनीकी विकास के चलते युवा संगीत प्रेमियों को गीत-संगीत सुनने के लिए अन्य कई विकल्प बाजार में आ चुके थे. डिजिटल इलेक्ट्रॉनिक वाद्य-यंत्रों के माध्यम से हाइ-फाइ, स्टीरियो साउंड फैशन बन गया और लोगों के बीच इसकी पैठ बढ़ती गयी. इसीलिए श्रोताओं को किसी तरह के शोरगुल से मुक्त उच्च गुणवत्ता की ध्वनि के साथ रेडियो सेवा मुहैया कराने के लिए एफएम ट्रांसमिशन को प्रभावी बनाया गया. अपने श्रोताओं के लिए देश में एफएम की शुरुआत करने का श्रेय ऑल इंडिया रेडियो को ही है. वर्ष 1977 में चेन्नई में पहले एफएम चैनल को प्रायोगिक तौर पर शुरू किया गया. ऑल इंडिया रेडियो के स्थानीय रेडियो स्टेशंस, जो 1984 में आरंभ किये गये थे, इन सभी को एफएम तकनीक पर आधारित निर्मित किया गया था. एफएम ट्रांसमीटर्स का इस्तेमाल करते हुए कम्युनिटी रेडियो के सिद्धांत की शुरुआत की गयी और स्थानीय आबादी से जुड़ी समस्याओं पर फोकस करते हुए इसे प्रभावी बनाने का प्रयास किया गया. इस तरह से ऑल इंडियो रेडियो के श्रोताओं को पहली बार उच्च गुणवत्तायुक्त आवाज सुनने का मौका मिला. एफएम की लोकप्रियता इतनी बढ़ी कि धीरे-धीरे इसे निजी क्षेत्र को भी स्थापित करने की मंजूरी दी गयी. ऑल इंडिया रेडियो ने एक फरवरी, 1993 को ‘एफएम रेनबो’ चैनल की शुरुआत की. इसे मुख्य रूप से युवाओं के लिए ही शुरू किया गया था. इसमें कई बदलाव देखे गये. एनाउन्सर (उद्घोषक) की जगह रेडियो जॉकी (आरजे) ने ले ली. श्रोताओं के बदलते मूड को भांपते हुए कार्यक्रमों के प्रस्तुतिकरण का तरीका तेज कर दिया गया और उसे ज्यादा से ज्यादा सूचनात्मक बनाया गया. तकरीबन चौबीसों घंटे प्रसारण की सुविधा मुहैया कराते हुए इस चैनल ने रेडियो श्रोताओं को मनोरंजन का एक नया प्रारूप मुहैया कराया, जिसमें विविध प्रकार की चीजों को शामिल किया गया था. ऑल इंडिया रेडियो की आधिकारिक वेबसाइट के मुताबिक, देशभर में इसके 206 एफएम ट्रांसमीटर्स हैं, जिनकी पहुंच देश के तकरीबन 25 फीसदी भौगोलिक इलाकों और 36.81 फीसदी आबादी तक है. देश के चार महानगरों समेत 15 केंद्रों से एफएम रेनबो का संचालन किया जाता है.
एफएम गोल्ड
ऑल इंडिया रेडियो के ‘एफएम गोल्ड’ चैनल की शुरुआत एक सितंबर, 2001 को की गयी थी. यह एक प्रकार का ‘इंफोटेनमेंट’ चैनल है, जिसके माध्यम से 30 फीसदी समाचार और करेंट अफेयर्स से जुड़े कार्यक्रम और 70 फीसदी मनोरंजन कार्यक्रमों का प्रसारण किया जाता है. फिलहाल इसकी सुविधा देश के चारों महानगरों (दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और चेन्नई) तक ही है.
भारत में रेडियो का विकास
भारत में रेडियो प्रसारण की शुरुआत 23 जुलाई, 1927 को हुई थी. 1950 के दशक के उत्तरार्ध में आकाशवाणी के प्राइमरी-चैनल देश के सभी प्रमुख शहरों में सूचना और मनोरंजन की जरूरतें पूरी कर रहे थे. बताया जाता है कि किसी कारणवश आकाशवाणी से फिल्मी गीतों के प्रसारण पर रोक लगा दी गयी थी. यह फिल्म-संगीत का सुनहरा दौर था. फिल्म जगत के तमाम कालजयी संगीतकार एक से बढ़कर एक गीत तैयार कर रहे थे. उन दिनों श्रीलंका ब्रोडकास्टिंग कॉरपोरेशन की विदेश सेवा, जिसे ‘रेडियो सिलोन’ के नाम से भी जाना जाता है, हिंदी फिल्मों के गीत बजाती थी. इसके प्रायोजित कार्यक्रमों ने श्रोताओं के बीच बेहद लोकप्रियता हासिल की.
विविध भारती
आकाशवाणी के तत्कालीन महानिदेशक और उनके अन्य सहयोगियों ने एक अखिल भारतीय मनोरंजन सेवा की परिकल्पना की, जिसे ‘विविध भारती सेवा आकाशवाणी का पंचरंगी कार्यक्रम’ नाम दिया गया. यहां पंचरंगी का मतलब इस सेवा में पांचों ललित कलाओं के समावेश से था. तमाम तैयारियों के साथ 3 अक्तूबर, 1957 को विविध भारती सेवा मुंबई में शुरू की गयी. विविध भारती पर बजा पहला गीत पंडित नरेंद्र शर्मा ने लिखा था और संगीतकार अनिल विश्वास. इसे प्रसार गीत कहा गया और इसके बोल थे नाच मयूरा नाच. इसे मशहूर गायक मन्ना डे ने स्वर दिया था. आज भी यह गीत विविध भारती के संग्रहालय में मौजूद है. अखिल भारतीय मनोरंजन सेवा विविध भारती की पहली उद्घोषणा शील कुमार ने की थी. आगे चलकर इसमें जो अविस्मरणीय नाम जुड़ा वह था अमीन सयानी का. यह देश के हिंदी भाषी श्रोताओं के बीच कई वर्षो तक सर्वाधिक लोकप्रिय चैनल रहा है. दूरदर्शन का प्रसारण शुरु होने और आम घरों तक टीवी की पहुंच कायम होने के बाद भी इसकी लोकप्रियता बरकरार थी.
403रेडियो स्टेशन हैं देशभर में सरकारी प्रसारणकर्ता ऑल इंडिया रेडियो के
(16 जुलाई, 2007 तक) .
574हैं ट्रांसमीटर्स की कुल संख्या.
144मीडियम वेव ट्रांसमीटर्स हैं.
382एफएम ट्रांसमीटर्स हैं.
48शॉर्ट वेव ट्रांसमीटर्स हैं.
91.90फीसदी इलाके में राष्ट्रीय स्तर पर कवरेज है (मीडियम वेव और एमएफ की).
99.20फीसदी आबादी तक पहुंच है देश में आकाशवाणी की.
31फीसदी इलाकों तक पहुंच है देशभर में एफएम नेशनल की.
43फीसदी आबादी सुन सकती है देशभर में एफएम नेशनल को.