प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने पहली बार भारतीय मीडिया को इंटरव्यू दिया. सोशल मीडिया पर ये इंटरव्यू चर्चा का विषय बना रहा.
कई लोगों ने मोदी की तारीफ़ की, तो कुछ ने ‘मुश्किल सवाल’ नहीं पूछने के लिए निजी चैनल टाइम्स नाऊ के अर्नब गोस्वामी की आलोचना भी की है.
इंटरव्यू के दौरान टाइम्स नाऊ के एडिटर इन चीफ़ अर्नब गोस्वामी ने वैसे सवाल नहीं पूछे, जैसे कि एक ‘निष्पक्ष’ पत्रकार को पूछने चाहिए थे.
इस इंटरव्यू का मक़सद ये रहा कि मोदी सरकारी मशीनरी से बाहर जाकर लोगों तक ये संदेश और इंप्रेशन देना चाहते हैं कि उन्होंने पत्रकारों के सवालों का जवाब दिया है और सरकार की जो भी कामयाबियां रही हैं वो बताई हैं. लेकिन मुझे लगता है कि मोटे तौर पर दूरदर्शन (सरकारी मीडिया) और इस इंटरव्यू में कोई ख़ास फ़र्क़ नहीं था.
ये इंटरव्यू एकदम प्रीस्क्रिप्टेड (पहले से तैयार किया हुआ) लग रहा था. यहाँ तक कि सवालों के स्वाभाविक फॉलोअप भी नहीं पूछे गए.
मसलन, रिज़र्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन के बारे में सवाल पूछा गया तो मोदी ने कहा कि रघुराम राजन किसी से भी कम राष्ट्रभक्त नहीं हैं और उन्होंने बहुत अच्छा काम किया है.
तो मोदी से ये सवाल स्वाभाविक था कि फिर उन्हें दूसरा कार्यकाल क्यों नहीं दिया गया? लेकिन ये सवाल नहीं पूछा गया.
मोदी ने कहा कि जो सांप्रदायिक बयानबाज़ी करते हैं उन पर कोई ध्यान नहीं देना चाहिए. लेकिन उन पर ध्यान कैसे नहीं जाएगा, जब वो आपकी ही कैबिनेट में हैं. इस बाबत कोई सवाल नहीं पूछा गया.
अब पाकिस्तान पर ही लीजिए, मोदी जब विपक्ष में थे तब और अब जब वो सत्ता में हैं, उनके रवैये में क्या बदलाव आया है. इस बारे में कोई सवाल नहीं पूछा गया.
जबकि हाल ही भारत प्रशासित जम्मू कश्मीर में भारतीय रिज़र्व पुलिस बल को चरमपंथियों ने निशाना भी बनाया है.
सुब्रमण्यम स्वामी को लेकर मोदी ने कहा कि उन्हें ऐसा नहीं कहना चाहिए, लेकिन स्वामी को राज्यसभा सांसद भी तो मोदी ने ही बनाया है.
एनएसजी पर मोदी को ये स्पष्ट करना चाहिए कि एनएसजी इतना क्यों ज़रूरी था कि उन्हें चीन के सामने गिड़गिड़ाना पड़ा. इंटरव्यू में इस पर भी कोई सवाल नहीं था.
जहाँ तक इस इंटरव्यू के मक़सद की बात है तो मोदी ने अपने प्रधानमंत्री के कार्यकाल में अभी तक कोई प्रेस कॉन्फ्रेंस नहीं की है.
हाँ, अब वो ये कह सकते हैं कि वो तो मीडिया के सामने आते हैं और कि वो तो पत्रकार के सामने आए थे और पत्रकार उनसे कोई भी सवाल पूछ सकता था.
इस तरह का इंटरव्यू प्रोपेगेंडा मशीनरी का हिस्सा लगता है.
इंटरव्यू देखकर लग रहा है कि मोदी अगर प्रेस कॉन्फ्रेंस करते तो कहीं अधिक मुश्किल सवाल पूछे जाते.
मोदी के इस इंटरव्यू की तुलना जरा अर्नब के राहुल गांधी के साथ इंटरव्यू से कीजिए, फ़र्क़ साफ़ पता चल जाएगा. यहाँ याद रखना होगा राहुल का वो इंटरव्यू भी तब लिया गया था, जब कांग्रेस सत्ता में थी.
कहा जा सकता है कि ये इंटरव्यू ‘मन की बात’ का ही विस्तार था. प्रधानमंत्री जो कहना चाह रहे थे, कह रहे थे और पत्रकार उनसे वैसा कोई सवाल नहीं पूछ रहा था जो कि पूछा जाना चाहिए था.
(बीबीसी संवाददाता अशोक कुमार के साथ बातचीत पर आधारित)(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए यहां क्लिक करें. आप हमें फ़ेसबुक और ट्विटर पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)