।। दक्षा वैदकर।।
संस्कार बड़े होने पर नहीं बनते. यह तो मां के गर्भ से ही आने शुरू हो जाते हैं. गर्भ में पल रहे बच्चे तक आसपास के लोगों के सभी विचार पहुंचते हैं. अगर बाहर की दुनिया में कोई चाहता है कि वह जन्म न ले, तो बच्च इसी संस्कार के साथ जन्म लेता है कि वह अनचाही संतान है. यह बात उसके मन में इस कदर घर कर जाती है कि बड़े होने के बाद भी नहीं जाती. ऐसे व्यक्ति जो इसी संस्कार के साथ बड़े हुए है, उन्हें अगर किसी दफ्तर में बैठने की जगह न मिले, तो वे इस बात को भी अपने बचपन से जोड़ कर देखते हैं. उन्हें लगता है कि वे अनचाही संतान, अनवांटेड पर्सन हैं. दुनिया में किसी को उनकी जरूरत नहीं है. वे धरती पर बोझ हैं.
मेरे मित्र ने बताया कि उसका दोस्त पिछले कुछ दिनों से उसे फोन लगा रहा था और वह हर बार व्यस्त होने की वजह से कहता कि मैं फ्री हो कर बात करूंगा. एक दिन उसने बात की, तो दोस्त फूट-फूट कर रोने लगा. उसने लिस्ट सुनानी शुरू की. कहा,’कोई मेरी बात नहीं सुनता, कोई मुझसे प्यार नहीं करता. मैं एक अनवांटेड चाइल्ड हूं. माता-पिता भी मुङो नहीं चाहते, क्योंकि मैं काला हूं. बचपन में मेरे दोस्त मुङो खेलने को नहीं बुलाते थे. मेरी गर्लफ्रेंड मुङो छोड़ कर चली गयी. तुम भी मुझसे बात नहीं करते.’ दोस्त बहुत आश्चर्य में पड़ गया कि मैंने ऐसा कौन-सा गुनाह कर दिया, जो यह इतना रो रहा है.
इस घटना में गलती किसी की नहीं थी. दरअसल, सामनेवाले व्यक्ति ने बचपन में ही ‘अनचाही संतान’ नाम का चश्मा पहन लिया था. अब वह छोटी-छोटी घटनाएं भी उसी चश्मे से देखता था. हम सभी ने इस तरह के अलग-अलग चश्मे पहने हैं. किसी ने ‘विश्वास’ का चश्मा पहना है, तो वह हर इनसान पर तुरंत विश्वास कर लेता है. फिर भले ही लोग उसे समझाते फिरें कि हर किसी पर भरोसा मत किया करो. अगर किसी ने ‘शक’ का चश्मा पहन लिया, तो वह सभी पर शक करेगा. अगर महिला को किसी ने यह कह दिया कि आपके पति का दूसरी महिला से संबंध है, तो वह महिला इतनी शक्की हो जायेगी कि पति को ऑफिस से भी फोन आयेगा, तो वह सोचेगी गर्लफ्रेंड का फोन है
बात पते की..
बचपन में बनी इमेज को हमें ही दूर करना होगा. सेल्फ काउंसलिंग करें कि भले ही मेरे पैरेंट्स उस वक्त नहीं चाहते थे, अब तो वे मुझे चाहते हैं न.
घटनाओं को एक-दूसरे से न जोड़ें. हर चीज को एक चश्मे से न देखें. यदि कोई घटना होती है, तो उसका कारण पता लगाने की कोशिश करें.