सस्ता, सुन्दर, टिकाऊ.. 2015 में अगर स्मार्टफ़ोन की दुनिया में तीन शब्दों का बोलबाला रहा, तो वो यही थे.
10 हज़ार रुपए से कम क़ीमत में बिकने वाले स्मार्टफ़ोन ने एक ऐसा बाज़ार खोल दिया जिससे लोगों को अपने स्मार्टफ़ोन के ज़रिए पहली बार इंटरनेट का मज़ा लेने का मौक़ा मिला. इससे कनेक्टेड दुनिया में मानो एक भूचाल सा आ गया जो पहले कभी नहीं देखा गया था.
क़रीब साल भर पहले तक 30,000 से 40,000 हज़ार रुपए में स्मार्टफ़ोन ख़रीदना आम बात थी. ऐसे प्रॉडक्ट भी नए थे और लोग अपने स्मार्टफ़ोन को दूसरों से अलग दिखाने के लिए पैसे खर्च करने को तैयार थे.
कई बार कंपनियां ऐसे स्मार्टफ़ोन लॉन्च करती थीं, जिनके फ़ीचर में दूसरों के मुक़ाबले बस थोड़ा सा बदलाव होता था.
जैसे जैसे बड़े शहरों में स्मार्टफ़ोन का चलन बढ़ा, कंपनियों के सामने नई समस्या पैदा हो गई. नए स्मार्टफ़ोन खरीदने वाले ग्राहक घटने लगे जबकि स्मार्टफ़ोन बनाने वाली कंपनियां बढ़ने लगीं.
2007 में लॉन्च किए गए आईफ़ोन से जो ट्रेंड शुरू हुआ वो 2010-11 के आते आते कई और लोगों तक पहुंचने लगा था. एंड्राइड ऑपरेटिंग सिस्टम भी तेज़ी से फैलने लगा था और ब्लैकबेरी और नोकिया के दिन गिनती के लग रहे थे.
2015 में 4जी सेवा अब काफ़ी लोगों तक पहुँचने लगी है और 3जी ग्राहकों की संख्या अब करोड़ों में है.
कंपनियां अपने 4जी ग्राहकों की संख्या अलग से नहीं बतातीं, लेकिन यह साफ़ है कि ज़्यादा रफ़्तार वाले इंटरनेट स्पीड की भूख अब सभी को लगी है.
एयरटेल पूरे साल अपनी 4जी सेवा को देश के अलग-अलग हिस्से में पहुँचाने में जुटी रही और वोडाफ़ोन ने केरल से अपनी सेवा की शुरुआत की और धीरे-धीरे देश के अलग-अलग शहरों में जाने की तैयारी कर ली.
रिलाइंस जिओ के आने का सभी को इंतज़ार है और उन्होंने साल ख़त्म होते-होते अपनी सेवा का सॉफ़्ट लॉन्च कर ही दिया.
चूंकि इन कंपनियों को ग्राहक नए और छोटे शहरों में ही मिलने की उम्मीद है, इसलिए 4जी स्मार्टफ़ोन बनाने वाली कंपनियों ने अपने प्रॉडक्ट को सस्ते से सस्ता बनाने की पहल की.
ऐसी ख़बरें हैं कि रिलाइंस जिओ जब लॉन्च हो जाएगा तो उसका सस्ते से सस्ता स्मार्टफ़ोन क़रीब 2000 रुपए का होगा. यानी रिलाइंस चाहती है कि उसकी सर्विस सभी की जेब पर भारी न पड़े और शुरुआती झटके में ही उसे बाज़ार का बड़ा हिस्सा मिल जाए.
जैसे-जैसे कंपनियों ने स्मार्टफ़ोन सस्ता किया, एक नया बाज़ार उनके लिए खुलता गया. ये वो कंपनियां थीं, जो महंगे स्मार्टफ़ोन बनाकर एपल, गूगल और सैमसंग को टक्कर नहीं दे सकती थीं.
इसलिए, इनके प्रॉडक्ट आपको बड़े शहरों में उतने नहीं दिखे, जितने छोटे शहरों में. अब उम्मीद है कि 2016 में बिकने वाले आधे स्मार्टफ़ोनों को 4जी के लिए इस्तेमाल किया जा सकेगा.
आईटी प्रॉडक्ट के बारे में रिसर्च करने वाली कंपनी आईडीसी का कहना है कि 2015 में बिके हर चार स्मार्टफ़ोन में से एक 4जी स्मार्टफ़ोन था.
4जी स्मार्टफ़ोन इस्तेमाल करने पर मोबाइल डेटा की रफ़्तार, 3जी के मुकाबले, पांच से 10 गुना ज़्यादा होती है. इसीलिए इससे वीडियो और मोबाइल टीवी जैसे सर्विस में उछाल की उम्मीद है.
यानी क़रीब एक दशक पहले जो मोबाइल पर कॉल में बढ़ोत्तरी हुई थी, अब वैसी ही वद्धि डेटा सेवा में होने की उम्मीद की जा सकती है.
जैसे-जैसे मोबाइल वीडियो की मांग बढ़ेगी, आप उम्मीद कर सकते हैं कि लोगों की उसे शेयर करने की आदत भी बढ़ेगी. रिलाइंस जिओ के सस्ते हैंडसेट लॉन्च होने के कारण 4जी स्मार्टफ़ोन के बाज़ार में 2016 में ज़बर्दस्त तेज़ी की उम्मीद की जा सकती है.
अंतरराष्ट्रीय बाज़ारों में जो जाने-माने ब्रांड हैं, उन्हें क़ीमतें कम करके 4जी स्मार्टफ़ोन बेचने में काफ़ी तकलीफ़ होती रही. इसलिए सैमसंग और एपल ने इन सस्ते ब्रांड्स से टक्कर लेने के बजाय अपने बाज़ार पर ध्यान दिया.
एपल के 6एस प्लस की क़ीमत 90,000 रुपए से ज़्यादा रखी गई. उतने में अगर कोई चाहे तो सस्ते ब्रांड के 10 स्मार्टफ़ोन खरीद सकता है.
शिओमी रेडमी प्राइम क़रीब 7,000 रुपए में, लेनोवो ए6000 प्लस क़रीब 7,500 रुपए में, क़रीब 7,000 रुपए का मेइजु एम2, माइक्रोमैक्स का यू यूरेका प्लस क़रीब 9,000 रुपए में और मोटोरोला के मोटो ई क़रीब 6,500 रुपए का मिल सकता है.
यूरेका के यू ब्रांड का सबसे सस्ता 4जी स्मार्टफ़ोन क़रीब 5,000 रुपए का है. इतने सस्ते बिक रहे हैंडसेट के कारण सैमसंग जैसी कंपनी को गैलेक्सीऑन5 को क़रीब 9,000 रुपए में बाज़ार में लाना पड़ा.
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