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फफूंद : बुरी भी, अच्छी भी

पानी के रिसाव से सीलन के कारण लकड़ी पर या खराब हो रही सब्जियों और फलों पर हमें फफूंद नजर आ जाती हैं. आपने कभी सोचा कि ये सिर्फ सीलन भरी या पानी के रिसाववाली जगहों पर ही क्यों पैदा होती हैं? दरअसल जहां कहीं भी अक्सीजन और मीठे तत्व जैसे चीनी आदि एक-दूसरे के […]

पानी के रिसाव से सीलन के कारण लकड़ी पर या खराब हो रही सब्जियों और फलों पर हमें फफूंद नजर आ जाती हैं. आपने कभी सोचा कि ये सिर्फ सीलन भरी या पानी के रिसाववाली जगहों पर ही क्यों पैदा होती हैं? दरअसल जहां कहीं भी अक्सीजन और मीठे तत्व जैसे चीनी आदि एक-दूसरे के संपर्क में आते हैं, फफूंद वहीं पैदा होती हैं.

माइक्रोस्कोप से देखने पर पता चलता है कि ये बहुत सूक्ष्म रेशों से बढ़ती हैं. ये सूक्ष्म जाल की तरह फैलती हैं, जिसे मायसेलियम कहा जाता है. यह जाल ऑक्सीजन और मीठे तत्व की अभिक्रिया से पैदा होता है और सूक्ष्म रेशों को फैलाने का काम करता है. फफूंद जगह और मौसम के हिसाब से कई रंगों और गंधों की होती हैं.

हालांकि खाने-पीने की चीजों पर इसका पैदा होना सेहत के लिए खतरा माना जाता है, लेकिन बहुत सी ऐसी फफूंद हैं, जिनसे कोई नुकसान नहीं. इसी में से एक है सैप्रोफाइट्स नामक फफूंद, जो जैविक पदार्थो का क्षरण करती है. इस क्षरण से कुछ पौधों के लिए पोषक तत्व बनते हैं.

साथ ही कुछ खाने की चीजों को भी फफूंद से बनाया जाता है. इन्हें दवा बनाने के इस्तेमाल में भी लाया जाता है. जैसे पेनिसिलियम फंगस से एंटीबायोटिक पेनिसिलीन बनाया जाता है. फंगस या फफूंद से मायोटॉक्सिन गैसें पैदा होती हैं, जो बहुत खतरनाक होती हैं.

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