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विकास कहां गायब हो गया, मालूम नहीं
गिरींद्र नाथ झा नावी बतकही के लिए हम पूर्णिया से पटना की ओर निकलते हैं. गाम-घर के अलावा सूबे की राजधानी को भी समझने बूझने की चाह थी, लेकिन पूर्णिया में प्रशासन ने हमारी बस को जब्त कर लिया. फिर क्या था, यात्रियों ने हो-हंगामा शुरू किया. देर रात दूसरी बस से पटना की तरफ […]
गिरींद्र नाथ झा
नावी बतकही के लिए हम पूर्णिया से पटना की ओर निकलते हैं. गाम-घर के अलावा सूबे की राजधानी को भी समझने बूझने की चाह थी, लेकिन पूर्णिया में प्रशासन ने हमारी बस को जब्त कर लिया. फिर क्या था, यात्रियों ने हो-हंगामा शुरू किया.
देर रात दूसरी बस से पटना की तरफ निकले. सुबह नींद खुलती है तो हम गांधी मैदान बस स्टैंड में थे. प्रवेश द्वार पर पीएम मोदी और भाजपा अध्यक्ष के बड़े पोस्टर-बैनर पर नजर टिक जाती है. दूसरी ओर एक गिरिजाघर था, जो शांत चित्त भाव से राजनीतिक उथल-पुथल के बीच पटना को पटना बनाये हुए था.
यहां टेंपो चालकों की भीड़ थी. चाय दुकान पर बतकही का दौर चल रहा था. लोगबाग चाय और अखबार का एक साथ आनंद ले रहे थे. एक ने कहा-पटना तो नीतीशे का रहेगा, निश्चिंत रहिए. चाय की चुस्की लेते हुए वहां बैठे एक युवा आनंद कुमार ने सभी को रोकते हुए कहा कि नीतीश कुमार अकेले थोड़े आयेंगे, साथ लाठीवाले लालू जी भी रहेंगे न हो! विकास के मुद्दे पर यहां बातचीत शुरू होती है.
वहीं खड़े टेंपो चालक अवधेश बताते हैं कि इस बार चुनाव में मुद्दा कहां है? शुरू में सब विकास की बातें कर रहे थे. अब विकास कहां गायब हो गया, किसी को मालूम नहीं.
वहां से हम पटेल नगर की ओर निकले. सुबह से ही पटना दिन की तैयारी में जुट चुका था. अभी तक हम शांत शहरों में लोगबाग से मिल रहे थे, लेकिन यहां सभी को जल्दी थी. पूरा पटना दुर्गा पूजा और चुनावी पोस्टर- बैनर के रंग में डूबा है. पश्चिमी पटेल नगर के गंगा पथ पर हमारी मुलाकात एक बुजुर्ग रविशंकर जी से होती है. उन्होंने बताया कि नीतीश के काम को लेकर कोई शिकायत नहीं कर रहा है. लेकिन मुद्दे पर भी बात होनी चाहिए.
उन्होंने भाजपा की नयी तसवीरों और पोस्टर पर अपनी बात रखी. पोस्टर बदलना मुद्दा नहीं है. मुद्दा होना चाहिए कि राज्य को नया क्या देंगे, यहां रोजगार के अवसर किस तरह बढ़ायें जाएं. लेकिन न महागंठबंधन और न ही राजग, इस पर कोई स्टैंड ले रहा है. हर कोई विवाद पैदा करना चाह रहा है.
यहीं हमारी भेंट पूजा के लिए फूल की खरीदारी कर रहे निर्मल मुखर्जी से होती है. उन्होंने बताया कि लोकसभा चुनाव की तरह मोदी की लहर नहीं है. चुनाव में वायदा करने के बाद हर दल के लोग भूल जाते हैं. यहां सड़क का हाल देखिए, हमारी मूल जरूरतों पर कोई बात नहीं कर रहा है. बात हो रही उन बातों की, जिससे केवल और केवल तनाव ही पैदा हो रहा है.
यहां से हम एसके पुरी की ओर निकलते हैं. यहां कोचिंग जा रहे युवाओं ने संभलकर प्रतिक्रि या दी. विज्ञान की छात्र स्नेहा ने हमें बताया कि सोशल नेटवर्कएक बड़ा माध्यम है. हम लोग इसी प्लेटफार्म के जरिये पॉलिटिकल डेवलपमेंट के बारे में समझते हैं. उन्होंने बताया कि प्रचार में सोशल मीडिया का जमकर प्रयोग हो रहा है, क्योंकि राजनितिक दलों को पता है युवा वर्ग हवा का रुख बदल सकता है.
पटना में पढ़ाई कर रहे अमरेश बताते हैं कि ज्यादातर नौजवानों को राजनीतिक पार्टियों के वादे से कुछ लेना-देना नहीं है. उन्हें चुनावी स्कूटर या साइकिल नहीं लुभाते. वे कहते हैं कि ये चीजें हम सब खुद खरीद लेंगे. सरकार कोई भी हो, शिक्षा का स्तर और बिहार को बेहतर बनाने की जरूरत है. रोजगार के मौके मिलने चाहिए. ज्यादातर नौजवानों की शिकायत है कि पढ़ाई के लिए उन्हें लोन बहुत महंगा मिलता है. उसकी दर कम करने की जरूरत है.
पटना में फास्ट फूड का चलन काफी बढ़ गया है. बोरिंग रोड से सहारा टावर की तरफ जाते हुए ढेर सारे लोग मिले. यहां फास्ट फूड सेंटर की लाइन लगी थी. जहां नौकरीपेशा युवा और स्टूडेन्ट्स बैठे मिले. गाहे बगाहे बातचीत में राजनीतिक बतकही आ रही थी. नीतीश और मोदी केंद्र में थे. दूसरे चरण की 32 सीटों के लिए हुए मतदान पर लोगबाग बात कर रहे थे. यहीं हमारी मुलाकात एक बैंककर्मी आशीष से होती है. आशीष ने कहा, पटना राज्य की राजधानी है, यहां की स्थानीय समस्या है, लेकिन स्थानीय मुद्दे को कहां कोई उठा रहा है.
पटना के आसपास के ग्रामीण इलाकों की बात करते हुए नेता सब क्यों ङिाझक रहे हैं. स्टेशन के आसपास सफाई की बात क्यों नहीं ही रही है? आशीष ने कहा कि जाति का कार्ड फेंक कर इस बार हर दल के नेता चुनाव लड़ रहे हैं. बेली रोड की तरफ जब निकल रहे थे तो टेम्पू की शोर में दलों का प्रचार सड़कों पर दिखा. भाजपा के कार्यकर्ता जुलूस में दिखे, तो जगदेव पथ पर महागंठबंधन की सभा होती दिखी.
शाम हो चुकी थी. हम मीठापुर बस स्टैंड की ओर निकले. ट्रैफिक जाम से जूझते हम मीठापुर स्टैंड पहुंचे, लेकिन वहां गंदगी और अव्यवस्था ने मन खट्टा कर दिया. बस स्टैंड पर इस्माइल भाई ने बताया कि सरकार को सफाई से कोई मतलब नहीं है. बस स्टैंड के बाहर एक युवा रजनीश से बात हो रही थी.
छुट्टी में घर आये रजनीश बता रहे थे कि शिक्षा चिकित्सा या कुपोषण जैसे मसलों पर कोई बात नहीं कर रहा है. पूर्णिया निकलने का मेरा वक्त हो चुका था. हमारी बस पूर्णिया की तरफ बढ़ गयी, लेकिन बगल में बैठे सहयात्री भी चुनाव पर ही बतकही करने लगे, क्या करियेगा है तो चुनाव का ही वक्त! बाद बाकी जो है सो तो हइये है.
(श्री झा पत्रकारिता की पढ़ाई के बाद पैतृक गांव में खेती में जुटे हैं)
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