दक्षा वैदकर
मुझे शॉपिंग करने की बहुत बुरी आदत थी. फेसबुक पर साइड में दिखनेवाले एड देख मैं आकर्षित हो जाती और तुरंत उस साइट पर चली जाती. ड्रेस, ज्वेलरी, बैग्स देख-देख कर इतनी खुश हो जाती कि तुरंत खरीद लेती.
वही हालत ग्रोसरी स्टोर में जाने पर होती. कभी शहद का बड़ा-सा डिब्बा खरीद लाती कि रोज सुबह पानी में डाल कर पीना शुरू करूंगी, तो कभी यह सोच कर परफ्यूम उठा लाती कि पुरानी स्मेल से बोरियत होने लगी है. कभी छोटे से काम के लिए पार्लर जाती और उनकी चिकनी-चुपड़ी बातों में आ कर फेशियल, हेयर स्पा और न जाने क्या-क्या करवा बैठती. कुछ दिनों बाद जब किसी दिन अकाउंट पर नजर डालती, तो रुपये देख कर चौंक जाती कि ये इतने कम कैसे हो गये?
कई बार तो मुङो याद आ जाता कि मैंने कहां-कहां खर्च किया, लेकिन कई बार दिमाग पर घंटों जोर देने के बाद भी याद नहीं आता कि इतने सारे रुपये कहां चले गये. जब यह समस्या मैंने अपने एक दोस्त को बतायी कि मेरे हाथ में रुपये टिकते ही नहीं, तो उसने मुङो प्लानिंग करना सिखाया. साथ ही हिदायत दी कि कुछ भी हो जाये, ऑनलाइन शॉपिंग साइट्स में अंदर मत घुसना. ग्रोसरी शॉप में भी सामान लेते वक्त कंट्रोल करो.
हजार बार सोचो कि यह सामान क्या मैं सच में इस्तेमाल करूंगी? क्या इसके बिना काम नहीं चलेगा? उसने मुङो कहा कि अब हर महीने जब भी सैलरी आयेगी एक टारगेट फिक्स करो. अपने मुख्य खर्चे और थोड़ा हाथ खर्च निकालने के बाद एक फिक्स अमाउंट सोच लो. कसम खा लो कि कुछ भी हो जाये, मेरे अकाउंट के पैसे इससे नीचे नहीं जाने चाहिए.
उदाहरण के लिए अगर सैलरी आने के बाद अकाउंट में 60 हजार रुपये हैं, तो महीने के खर्च के लिए 10 हजार मान लो और तय करो कि कुछ भी हो जाये, इस बार अकाउंट के पैसे 50 हजार से नीचे नहीं जायेंगे. इसके बाद जब भी कुछ जरूरी सामान खरीदने मार्केट जाओ और सुंदर-सुंदर ड्रेस, महंगे कॉस्मेटिक्स देख कर मन ललचाये, तो अपनी कसम याद करो कि पैसे बचाने हैं. टारगेट पूरा करना है. तुम खुद पर कंट्रोल कर लोगी.
बात पते की..
– शॉपिंग करने ऐसे लोगों के साथ न जाएं, जो बहुत खर्च करते हैं. थोड़े कंजूस व्यक्ति को साथ ले जाएं, जो आपको भी फिजूल खर्च करने से रोके.
– महीने की शुरुआत में ही डायरी में नोट करें कि कहां, कितना खर्च करना है. इस तरह आपको समझ आयेगा कि कितने रुपये अंत में बचेंगे.