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मौत में जीना, पर मौत नहीं जीना

– हरिवंश – नायक अमरत्व की तलाश में रहते हैं. उन्हें भीड़ से भिन्न होना ही पड़ता है. अपने कामकाजी जीवन में, सबसे बड़ा काम करना होता है. अंतत: वह काम, नायक के जीवन से भी अधिक महत्वपूर्ण बन जाता है. शायद मृत्यु के द्वार पर खड़े ऐसे विशिष्ट लोगों का यही मानस होता है. […]

– हरिवंश –
नायक अमरत्व की तलाश में रहते हैं. उन्हें भीड़ से भिन्न होना ही पड़ता है. अपने कामकाजी जीवन में, सबसे बड़ा काम करना होता है. अंतत: वह काम, नायक के जीवन से भी अधिक महत्वपूर्ण बन जाता है. शायद मृत्यु के द्वार पर खड़े ऐसे विशिष्ट लोगों का यही मानस होता है. ऐसे ही लोग समाज को दिशा देते हैं? सिगमंड फ्रायड मानते थे कि असंतुष्ट रहने वाले ही समाज को बदलते हैं.
यह सूचना, मन-विचार एवं चित्त में उतर गयी है. वह है क्या? सूचना क्रांति के नायकों में से एक बड़ा और अग्रणी नाम स्टीव जॉब्स, के जीवन के कुछ ही दिन शेष हैं. उन्हें लाइलाज कैंसर है.स्टीव वह इंसान हैं, जिन्होंने पूरी दुनिया में दूरसंचार उद्योग की तसवीर बदल दी. आइफोन ही नहीं, अनेक ऐसी चीजों के जनक स्टीव. जटिल तकनीक को आसान बनाने वाले उन सृजनात्मक दिमागों में से वह एक हैं, जिन्होंने 21वीं सदी का चेहरा बदला है. ग्लोबल विलेज की अवधारणा को साकार करने वाले कुछेक चेहरों में से एक. जब वह एप्पल में गये, तो उसका शेयर भाव 3 डॉलर से 350 डॉलर पहुंच गया. बताने की जरूरत नहीं कि वह जीनियस हैं. पर यह तथ्य भी मन में नहीं ठहरा.

जिस व्यक्ति के जीने के दिन गिने-चुने हों, वह अब भी अपने काम में डूबा है. अमेरिका के राष्ट्रपति उन्हें मिलने के लिए बुलाते हैं. बिजनेस टॉक (कामकाज की बातें) के लिए. वह जाते हैं. फिर आइपैड 2 लांच करते हैं. मौत को साथ लेकर जीते व्यक्ति का अपने काम और पैशन से यह जुड़ाव?
बार-बार मन में सवाल उठता है. दुनिया के बड़े डॉक्टर बता दें कि आपकी उम्र के ये बचे दिन ही शेष हैं. तब व्यक्ति का मानस कैसा होगा? स्टीव जॉब्स इसी कसौटी पर दिमाग में उभरते हैं.
उनकी खबर पढ़ी, तो सबसे पहले यक्ष-युधिष्ठिर संवाद याद आया. यक्ष पूछते हैं. दुनिया का सबसे बड़ा आश्चर्य क्या है? युधिष्ठिर उत्तर देते हैं- हम कंधे पर रोज शव लेकर श्मशान जाते हैं. पर नहीं मानते कि हमारी भी यही गति है. जब जान जायें, तब मन-स्मृति में क्या चीजें आती हैं?
यह प्रसंग सोचते ही कई दशकों पहले देखी गयी कुछेक हिंदी फिल्में याद आयीं. मिली, सफर, आनंद, सत्यकाम वगैरह. फिर ऐसे इंसानों की पढ़ी स्मृतियां उभरीं, जिन्होंने स्टीव की तरह जान लिया कि अब विदाई की बेला है. संसार से सब कुछ समेटने का पल. ट्यूजडेज विथ मौरी(लेखक-मिच एलबाम) याद आयी. जिसके हर पन्ने ने मन को पग-पग पर रोका, रुलाया और जीवन का मर्म बताया.
फिर याद आयी कार्नेगी मेलन के मशहूर प्रोफेसर रैंडी पॉश की पुस्तक द लास्ट लेक्‍चर (मौत की देहरी पर जीवन का संगीत). फिर यूजीन ओ केली की पुस्तक चेंजिग डेलाइट (हाउ माई फॉर्थकमिंग डेथ ट्रांसफॉर्म्ड माई लाइफ). ऐसी अन्य पुस्तकें भी होगीं. पर ये पुस्तकें या स्टीव जैसे लोगों का जीवन मानव समाज की अद्भुत थाती हैं. मौत के साये में जीना.
पर मौत का खौफ या भय चेहरे पर न आने देना. अपने काम में डूबे रहना. मौत में जीना, पर मौत को नहीं जीना. काम और दिनचर्या में मृत्यु के शोक गीत नहीं. न कोई शिकवा, न गिला, न आत्मरुदन, न आत्म करुणा, न दया, न याचना. कृष्ण की गीता को जीना न दैन्यं, न पलायनं अर्नेस्ट बेकर की लिखी पुस्तक याद आयी. द डिनाइअल ऑफ डेथ (मौत को अस्वीकार करना). बेकर ने लिखा कि नायक अमरत्व की तलाश में रहते हैं. उन्हें भीड़ से भिन्न होना ही पड़ता है. नायक बनना होता है. अपने कामकाजी जीवन में, सबसे बड़ा काम करना होता है.
अंतत: वह काम, नायक के जीवन से भी अधिक महत्वपूर्ण बन जाता है. शायद मृत्यु के द्वार पर खड़े ऐसे विशिष्ट लोगों का यही मानस होता है. ऐसे ही लोग समाज को दिशा देते हैं? सिगमंड फ्रॉयड मानते थे कि असंतुष्ट रहने वाले ही समाज को बदलते हैं. वे मूर्त्तिभंजक नयी राह दिखाते हैं. जो यथास्थिति को चुनौती देते हैं और सुपरह्यूमन सैक्रफाइस (बेमिसाल उत्सर्ग) करते हैं.
नाजियों के मौत चंगुल से निकले विख्यात मनोवैज्ञानिक विक्टर फ्रैंकल ने कहा था- मनुष्य अपनी पीड़ा, दुख से ही जीवन का मर्म पाता है. अज्ञेय ने भी भोक्ता की पीड़ा और द्रष्टा के पीड़ा की बात की थी. हालांकि फ्रॉयड ने कहा कि मनुष्य सिर्फ आनंद के लिए जीता है, पर फ्रैंकल ने कहा नहीं. मनुष्य से सब कुछ ले लिया जाये, पर एक चीज कोई नहीं ले सकता. हर मुसीबत या परेशानी में रह कर भी हम स्वतंत्र हैं कि हमारा नजरिया (एटिट्यूड) कैसा हो? अपना दृष्टिकोण चुनने को मनुष्य स्वतंत्र है.
एडलर ने कहा, मनुष्य जीता है, सत्ता और श्रेष्ठता पाने के लिए. पर फ्रैंकल ने कहा नहीं, वह जीवन का अर्थ जानना चाहता है. एक करोड़ से अधिक बिकने वाली ट्यूजडेज विथ मौरी के संवाद, दरअसल जीवन के मूल सवालों से दरस-परस है. यह संसार क्या है? दुख कुछ है? पश्चाताप, मृत्यु, परिवार, भावनाएं, बूढ़े होने का भय, धन-संपदा, प्रेम, विवाह, अपनी संस्कृति, क्षमा, जीवन के श्रेष्ठ दिन, ऐसे विषयों पर दुनिया से विदा हो रहे व्यक्ति की बातें. यह पुस्तक पढ़ते हुए नचिकेता-यम संवाद भी याद आया. इसी तरह प्रोफेसर रैंडी पॉश की पुस्तक है द लास्ट लेक्‍चर. 1960 में जन्मे इस जीनियस को भी भनक नहीं थी कि मौत घर में है. जब पता चला तो डॉक्टरों ने उसे छह महीने का समय दिया. 46 वर्ष की उम्र में मौत से उधार मिले कुछ महीनों में प्रोफेसर पॉश ने बीमार और भावनात्मक तूफान की जिंदगी के मंच से अंतिम बार व्याख्यान दिया- रियली एचीविंग योर चाइल्डहुड ड्रीम (बचपन के सपने को साकार करते). यह लेक्‍चर जीवन संगीत है. साहस गाथा है.
यह अंतिम व्याख्यान उसी मशहूर विश्वविद्यालय कार्नेगी मेलन में हुआ, जहां वे प्रोफेसर थे. वे भाषण, परिवेश, उसके वृतांत जब भी याद आते हैं, मनुष्य की ऊंचाई, गरिमा एवं साहस का एहसास कराते हैं.
यूजीन केली भी अमेरिका की सबसे बड़ी अकाउंटिंग फर्म्स में से एक केपीएमजी के चेयरमैन थे. वह उपलब्धियों का एक नया अध्याय लिखने के सपनों से भरे थे. भरपूर ऊर्जा और संकल्प के साथ.
उसी क्षण पता चला कि जीवन के चार महीने ही बचे हैं. फिर केली ने यह किताब लिखी. ईमानदार बयान, मर्मर्स्पशी और प्रेरक. मरने के कुछेक दिन पहले तक की बातें. मृत्युशय्या पर पड़े भीष्म के महान उपदेश (जिसे लोग भूल गये हैं) भी याद आते हैं. मौत के द्वार पर खड़े लोगों से जीवन की बातें सुनना एक अनकहा-अव्यक्त अनुभव है.
दिनांक : 06.03.2011

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