एलियंस से जुड़े किस्से-कहानियों और कल्पना के आधार पर गढ़ी गयी फिल्मों के दौर से आगे बढ़ते हुए वैज्ञानिकों ने अन्य ग्रहों पर इनके पाये जाने की पुष्टि की है और कहा है कि अगले दो-तीन दशकों में इन्हें खोज लिया जायेगा.
किन साक्ष्यों के आधार पर वैज्ञानिकों ने की है इस तथ्य की पुष्टि, अन्य ग्रहों से किस तरह के मिले हैं संकेत और किन-किन ग्रहों पर जीवन और जल की मौजूदगी के लिए जरूरी कारक पाये गये हैं आदि से जुड़े जरूरी पहलुओं को बता रहा है आज का नॉलेज.
दिल्ली : कहानियों और फिल्मों में आपने एलियन (पृथ्वी से इतर दूसरे ग्रहों के प्राणी) के बारे में पढ़ा या देखा होगा. कई बार आपने यह भी सुना या पढ़ा होगा कि किसी देश में उड़नतश्तरी को उतरते देखा गया, जिसके बारे में कहा जाता है कि वे दूसरे ग्रहों से आये होंगे. हालांकि, इस संबंध में अब तक किये गये तमाम दावों के बावजूद इसका सटीक वैज्ञानिक आधार न होने या फिर किसी एलियन से वैज्ञानिकों के फेस-टू-फेस न होने के कारण इसे एक कल्पना की तरह समझा जा रहा है.
परंतु, अब इस विचार को ज्यादा तवज्जो इसलिए दिया जा रहा है, क्योंकि अनेक देशों द्वारा अंतरिक्ष में भेजे गये सेटेलाइटों या स्पेसक्राफ्ट से मिले संकेत यह दर्शाते हैं कि इस ब्रह्मांड में पृथ्वी के अलावा भी अन्य ग्रह हैं, जहां प्राणियों के होने की प्रबल संभावना है.
आप भले इस तथ्य को मानें या नहीं, लेकिन अमेरिकी अंतरिक्ष संगठन ‘नासा’ के एक प्रमुख वैज्ञानिक ने हाल ही में यह स्वीकार किया है कि इस ब्रrांड में अकेले हम ही जीवित प्राणी नहीं हैं, बल्कि अन्य उपग्रहों पर भी प्राणियों का अस्तित्व है, जिन्हें आम तौर पर हम ‘एलियंस’ कहते हैं. यह संभावना इसलिए भी जतायी गयी है, क्योंकि ‘नासा’ के वैज्ञानिकों ने इस बात की पुष्टि की है कि हमारी गेलेक्सी में पृथ्वी की तरह के कम-से-कम 200 अरब ग्रह मौजूद हैं.
ऑर्गेनिक लाइफ
‘पॉपुलर साइंस’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, हाल ही में वाशिंगटन में आयोजित एक पब्लिक पैनल में नासा के वैज्ञानिकों ने इस संबंध में चर्चा की है. इस चर्चा में उन्होंने कहा कि हमारे सोलर सिस्टम में ऑर्गेनिक लाइफ की तलाश की गयी है. उनका यह मानना है कि खगोल विधा से यह बात स्पष्ट हो चुकी है कि निश्चित रूप से इनका अस्तित्व है, लेकिन अब तलाश इस बात को लेकर है कि वे हैं कहां और कब तक उन्हें ढूंढ़ लिया जायेगा?
‘नासा’ के वरिष्ठ वैज्ञानिक एलेन स्टोफन ने इस पैनल चर्चा के दौरान कहा, ‘मेरा मानना है कि धरती से इतर ग्रहों पर जीवन के ठोस संकेत मिले हैं और अगले कुछेक दशकों या फिर 10 से 20 सालों में ही हमें इसके पुख्ता साक्ष्य भी मिल जायेंगे.’
इस स्पेस एजेंसी का कहना है कि हमारे सोलर सिस्टम के दायरे में जिस प्रकार के जीवन की तलाश की जायेगी, वे सिंपल माइक्रोब्स होंगे. उल्लेखनीय है कि हमारे पड़ोसी ग्रहों पर पानी की उपलब्धता की हालिया खोजों के संदर्भ में यह सार्वजनिक परिचर्चा आयोजित की गयी थी. पिछले काफी वर्षो से यह माना जा रहा है कि जूपिटर के चंद्रमा ‘यूरोपा’ पर जीवन पाया जाता है, जिसकी पुष्टि करते हुए अंतरिक्षयात्रियों ने भी कहा है कि वहां पर बर्फ की चादरों के नीचे बहुत बड़ा समुद्र मौजूद है.
हाल ही में एक अध्ययन में अनुमान लगाया गया है कि शनि के चंद्रमा एनसेलाडस रेतीले हॉट स्प्रिंग्स के घर हैं. और महज कुछ सप्ताह पहले नासा ने यह घोषणा की है कि जूपिटस के सबसे बड़े चंद्रमा गिनीमिड पर नमकीन पानी वाले समुद्र की खोज की गयी है. हालांकि, इन्हें अब तक हिमशैल के रूप में ही समझा जा रहा है. इसके अलावा अन्य चंद्रमाओं और बौने ग्रहों पर जीवनदायी ए टू ओ यानी द्रवित अवस्था में जल की मौजूदगी के प्रमाण पाये गये हैं. ‘नासा’ ने एक इनफोग्राफिक के जरिये इसे समझाया है, जिसे आप ‘नासा’ की संबंधित लिंक पर जाकर देख सकते हैं.
यूरोपा पर पाया गया पानी
‘नासा’ के शोधकर्ताओं का यह कहना है कि हालिया खोज ने पहले से मौजूद विचारों को उलट दिया है कि तारों के ‘हेबिटेबल जोन’ में कोई ऐसा ग्रह नहीं है, जिस पर जीवन पाया जाता हो.
इस सिद्धांत के आधार पर यह दर्शाया गया था कि अंतरिक्ष चट्टानों में जीवन नहीं हो सकता, क्योंकि जीवन के लिए जिस तरह की दशाएं जरूरी हैं, वे उन स्थानों पर नहीं पायी जाती हैं, जैसा कि हमारी धरती पर है. जीवन की मौजूदगी के लिए वहां का तापमान ऐसा होना चाहिए, ताकि उन ग्रहों पर जल की मौजूदगी द्रवित अवस्था में हो सके.
लेकिन, जूपिटर के चंद्रमा यूरोपा पर द्रवित अवस्था में जल की मौजूदगी पायी गयी है, जो हमारे तारे से 400 मिलियन मील की दूरी पर स्थित है. गुरुत्वाकर्षण खिंचाव के कारण जूपिटर जर्क करता है, जिस कारण पर्याप्त मात्र में फ्रिक्शन और एनर्जी पैदा होती है, जो सतह के भीतर द्रव को गरम करने के लिए पर्याप्त हो सकती है. इस प्रकार जूपिटर के चंद्रमा का पानी भी द्रव का स्नेत हो सकता है.
एक वरिष्ठ वैज्ञानिक के हवाले से इस रिपोर्ट में बताया गया है कि हम इस बात को समझ पाये हैं कि हैबिटेबल जोन में केवल तारों के इर्द-गिर्द का इलाका ही नहीं है, बल्कि बड़े उपग्रहों के इलाके भी आते हैं.
दरअसल, हमारे सोलर सिस्टम में कई ऐसे इलाकों की खोज की गयी है, जो वास्तव में गीले इलाके हैं और यहां पर जीवन होने की पूरी उम्मीद जतायी गयी है. साथ ही यह उम्मीद भी जतायी गयी है कि जल्द ही इस पानी को तलाश लिया जायेगा और तब जाकर यह निर्धारित हो जायेगा कि कब तक हमारी मुलाकात एलियन माइक्रोब्स से होगी.
मंगल पर जगी उम्मीद
हाल ही में ‘नासा’ की ओर से यह घोषणा की गयी है कि मंगल पर पानी की खोज कर ली गयी है. नासा के प्लेनेटरी साइंस के डायरेक्टर जिम ग्रीन के हवाले से ‘डेली मेल’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, मंगल के वायुमंडल के हालिया अध्ययनों से यह पाया गया है कि इस ग्रह के उत्तरी गोलार्ध में 50 फीसदी हिस्से में पानी की मौजूदगी है.
इस अध्ययन में यह भी पाया गया है कि इस लाल ग्रह पर पिछले 1.2 अरब वर्षो से पानी मौजूद है. स्टोफन का कहना है कि हम यह सोचते हैं कि जीवन के लिए लंबे समय वाली अवधि का होना जरूरी है.
नासा में एसोसिएट एडमिनिस्ट्रेटर जॉन ग्रंसफेल्ड धरती से इतर जीवन होने की संभावनाओं को लेकर बेहद उत्साहित हैं. उन्हें उम्मीद है कि एक बार मंगल पर जीवन से संबंधित जो रहस्य है, उन्हें पूरी तरह उजागर होने पर ही हमें यह पता चल पायेगा कि वहां जीवन की कितनी संभावनाएं मौजूद हैं. हालांकि, उनका यह मानना है कि सोलर सिस्टम में हम एक पीढ़ी की दूरी पर हैं यानी अगली पीढ़ी में हम ऐसे ग्रहों को खोज लेंगे, जहां जीवन मुमकिन है.
हाल ही में हब्बल दूरदर्शी यंत्र का इस्तेमाल करते हुए वैज्ञानिकों ने जूपिटर के अनेक उपग्रहों पर द्रव पदार्थो की मौजूदगी पायी है और उनमें से कुछ के समुद्र होने के साथ खनिज पदार्थो से युक्त चट्टानों के पाये जाने की उम्मीद जतायी है. ग्रीन का यह भी कहना है कि इस दिशा में वैज्ञानिक समुदाय ने उल्लेखनयी प्रगति की है और उन्होंने अपनी टीम से कहा है कि सोलर सिस्टम में जब वे जीवन की खोज कर लेंगे तो प्लेनेटरी साइंस को निर्देशित करेंगे.
पिछले वर्ष हुए एक इसी प्रकार के सम्मेलन में नासा एडमिनिस्ट्रेटर चाल्र्स बोल्डेन ने कहा था कि अगले 20 सालों में हम निश्चित तौर पर धरती से इतर जीवन की तलाश कर लेंगे और ज्यादा उम्मीद है कि यह हमारे सोलर सिस्टम के दायरे में ही होगा.
चट्टानों में जीवाश्म
इसी मकसद से नासा का मार्स रोवर वर्ष 2020 में लॉन्च किया जाना प्रस्तावित है. यह रोवर निर्दिष्ट ग्रहों पर भूतकाल में जीवन के संकेतों की तलाश करेगा और वहां से सैंपल एकत्रित करके धरती पर भेजेगा, ताकि उन ग्रहों पर संभावित जीवन का विश्लेषण किया जा सके. इसके अलावा, नासा को उम्मीद है कि वर्ष 2030 तक वह मंगल पर अपने अंतरिक्षयात्रियों को भेजने में सफल हो पायेगा और यह घटना वहां जीवन की तलाश करने में एक मील का पत्थर साबित हो सकती है.
स्टोफन एक फील्ड जियोलॉजिस्ट हैं और उनका कहना है कि यदि वे मंगल तक पहुंच पाये तो वहां की चट्टानों को तोड़ कर उसमें जीवाश्मों की तलाश करेंगे. स्टोफन इस संबंध में बेहद आशान्वित हैं और कहते हैं कि इंसान मंगल की सतह पर उतरने में एक दिन जरूर कामयाब होगा और वहां से जीवन की मौजूदगी के साक्ष्यों के साथ वापस धरती पर आयेगा. स्पेस एजेंसी मिशन यूरोपा की भी तैयारी कर रही है, जिसके 2022 में लॉन्च किये जाने की उम्मीद है.
अन्य ग्रहों पर वैज्ञानिकों की निगाहें
एलियन की खोज कर रहे वैज्ञानिकों ने अब तक वैसे ग्रहों पर अपना ध्यान केंद्रित किया है, जो पृथ्वी की तरह हैं. लेकिन एक्सोप्लैनेट्स (जिसके बारे में यह कहा जाता है कि इन ग्रहों पर पानी की मौजूदगी की संभावना है और इससे यहां जीवन के होने की उम्मीद जतायी जाती है) के बारे में यह मान्यता है कि ये एक ही दिशा में लॉक कर दिये गये होते हैं.
इस वजह से इसके एक तरफ का हिस्सा ही तारे की तरफ होता है. अब खगोलशास्त्रियों का यह मानना है कि इस तरह के एक्सोप्लैनेट्स वास्तव में अपने ग्रहों के आस-पास चक्कर लगाते हैं और उसी गति से नाचते हैं, जिससे पृथ्वी पर दिन-रात संभव हो पाता है. इससे एलियन के अस्तित्व की जानकारी के बारे में पता लगाने की संभावना बढ़ जाती है.
यूनिवर्सिटी ऑफ टोरंटो के अंतर्गत केनेडियन इंस्टिट्यूट फॉर थियोरेटिकल एस्ट्रोफिजिक्स में पोस्ट डॉक्टोरल फेलो के रूप में कार्यरत जेरेमी लेसोटे के हवाले से ‘डेली मेल’ की रिपोर्ट में बताया गया है कि ऐसे ग्रह जहां सागरों की उपस्थिति संभव है, वैसे ग्रहों पर वातावरण पृथ्वी की तरह हो सकते हैं.
उन्होंने आगे कहा कि अगर वैज्ञानिकों के अनुमान सही हुए तो एक्सोप्लैनेट्स पर जीवन का अस्तित्व मुमकिन हो सकता है. एक्सोप्लैनेट्स को लेकर जो नयी समझ विकसित हुई है, वह भी महज एक संभावना भर है. इसका जवाब हां या ना में हो सकता है.
गिनीमेड पर सागर के संकेत
नासा के वैज्ञानिकों ने हाल ही में यह कहा है कि हब्बल स्पेस टेलिस्कोप से प्राप्त दृश्यों के मुताबिक जूपिटर के सबसे बड़े उपग्रह गिनीमेड पर खारे पानी के सागर की मौजूदगी मुमकिन है. ‘पॉपुलसर साइंस’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, वैज्ञानिक इस बात को लेकर लंबे समय से यह उम्मीद जता रहे थे कि इसके बर्फीले सतह के नीचे द्रव पदार्थ हो सकता है.
यही नहीं भूवैज्ञानिकों ने गिनीमेड के चट्टानी इलाकों का मानचित्र भी तैयार किया था, जिससे इस संबंध में बेहतर अंदाजा लगाया जा सके. लेकिन अब तक वे इस बात को लेकर पूरी तरह आश्वस्त नहीं थे. इस अभियान का नेतृत्व कर रहे वैज्ञानिक जोचिम सौर ने प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि अगर कोई गिनीमेड को देखता है तो उसे उषाकाल में जिस तरह से पृथ्वी दिखाई देती है, उस प्रकार लाल रंग का यह दिखाई देता है.
जोचिम सौर को यह विश्वास है कि खारे पानी का सागर गिनीमेड की सतह से 200 मील के भीतर ही है और जब यह जूपिटर के चुंबकीय क्षेत्र के दायरे से बाहर है यानी यह एक इलेक्ट्रोमैग्नेट की तरह काम करता है. इससे एक दूसरा मैग्नेटिक फील्ड पैदा होता है, जो जूपिटर के प्रभाव का प्रतिरोध करता है.
रोबोट सेना ढूंढ़ेगी एलियंस
दूसरों ग्रहों पर एलियंस का पता लगाने के लिए नासा रोबोट्स की सेना तैयार कर रहा है. ये रोबोट वेबकैम और जीपीएस से लैस होंगे. ‘स्पेस डॉट कॉम’ के मुताबिक, इन रोबोट्स को ‘स्वारमीज’ नाम दिया गया है. ये नासा के दूसरे रोबोट्स की तुलना में छोटे होंगे. सेना के हर रोबोट के पास एक वेबकैम एंटीना और रास्तों की तलाश के लिए जीपीएस (ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम) होगा. स्वारमीज उसी तरह काम करेंगे, जैसे अपने समुदाय में चींटियां करती हैं. स्वारमीज के टेस्ट अभी शुरुआती चरण में हैं. अगले कुछ महीनों में इसमें रेसॉर टेस्ट भी जुड़ जायेगा. इसी टेस्ट में रोबोट के एलियंस और दूसरों ग्रहों पर उपयोगी तत्वों को ढूंढ़ने के उनके गुणों का परीक्षण होगा.
‘ट्रांजिटिंग एक्सोप्लैनेट सव्रे सेटेलाइट’ लॉन्च करेंगे
आधुनिक इतिहास में अब तक इस तरह का कोई पुख्ता सबूत नहीं मिल पाया है, जिसके आधार पर यह माना जाये कि ग्रहों की उपस्थिति सौरमंडल से इतर भी थी, लेकिन तकनीकी विकास के साथ हमने यह सीखा है कि बड़ी संख्या में ग्रहों की उपस्थिति सौरमंडल के बाहर भी है.
‘वॉक्स डॉट कॉम’ के मुताबिक, ऐसे 1800 दूरवर्ती ग्रहों (एक्सोप्लैनेट्स) का पता मिल्की-वे के आस-पास लगाया गया है. रिपोर्ट के मुताबिक, इस तरह के साक्ष्यों को प्राप्त करने के बाद जरूरत होगी कि आनेवाले समय में इस बात का पता लगाया जाये कि किन ग्रहों पर जीवन की संभावना है. इसके लिए विश्लेषण करना होगा कि उस वातावरण या बॉयोसिग्नेचर में डाइमिथाइल सल्फाइड जैसी गैसें मौजूद है या नहीं.
यह ग्रह पर जीवों की उपस्थिति को लेकर बेहद अहम है. हालांकि, वैज्ञानिकों ने अब तक जिन ग्रहों का पता लगाया है वे बहुत बड़े हैं, इस पर गैसों की मौजूदगी ज्यादा है और वे ग्रह बहुत गरम हैं. इस वजह से उन ग्रहों पर जीवन की संभावना फिलहाल कम ही दिखती है. वैज्ञानिक अब छोटे और वैसे ग्रहों की खोज में जुटे हैं, जो पृथ्वी की तरह पथरीले हों. इसके लिए वैज्ञानिक वर्ष 2017-18 में ‘ट्रांजिटिंग एक्सोप्लैनेट सव्रे सेटेलाइट’ लॉन्च करेंगे, जो इस मायने में बेहद उपयोगी साबित हो सकता है.