सुप्रीम कोर्ट की वकील ने जनप्रतिनिधित्व कानून को दी थी चुनौती
सलमान रावी
छह दशकों से वकालत कर रहीं 85 वर्षीय लिली थॉमस के चेहरे पर आज संतुष्टि साफतौर पर देखी जा सकती है. वह खुश हैं कि 2005 से चलायी गयी उनकी मुहिम आखिरकार रंग लायी जब भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने आपराधिक मामलों में दोषी पाये गये राजनेताओं को पद से हटने और चुनावों में भाग नहीं लेने का आदेश जारी किया. ऐसा समझा जा रहा है कि ये फैसला अब देश की राजनीतिक दिशा को बदलने में एक मील का पत्थर साबित होगा और लिली थॉमस इस बात पर बेहद खुश हैं.
फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए वह कहती हैं कि आखिर कब तक इस देश को भ्रष्ट या गुंडे तत्व वाले लोग चलाएं. मुङो जनप्रतिनिधित्व कानून के उस अंश पर आपत्ति थी जिसमें प्रावधान किया गया है कि दोषी करार दिये जाने के बाद भी जनप्रतिनिधि अपनी कुरसी पर बने रह सकते हैं अगर वो अदालत के फैसले को ऊपरी अदालत में चुनौती देते हैं.
आम आदमी के अधिकारों की लड़ाई
सर्वोच्च न्यायलय ने भी इस धारा को गैर संवैधानिक मानते हुए आदेश पारित किया कि किसी भी हाल में आपराधिक मामलों में दोषी पाये गये जनप्रतिनिधि को कुरसी पर बने रहने का कोई अधिकार नहीं है. अपनी जिंदगी में लिली थॉमस ने अदालत में न जाने कितने मामले दायर किये और कई मामले उन्होंने जीते भी हैं. मगर जनप्रतिनिधित्व कानून के प्रावधानों को चुनौती देकर उन्हें आज एक अलग सी जीत का इत्मीनान है. मूलत: केरल की रहने वाली लिली ने मद्रास उच्च न्यायलय से वकालत शुरू की और कुछ ही सालों में उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस करना शुरू कर दिया. मानवाधिकारों और आम आदमी के अधिकारों के सवाल को लेकर वो अकेले ही मोरचा संभालती रहीं.
वह बड़ी बेबाकी से कहती हैं संविधान हमें भयमुक्त जीवन जीने की गारंटी देता है. किसी को अधिकार नहीं है कि हमसे ये आजादी छीन ले. कानून में लचक की वजह से दागदार लोग चुनाव लड़ते आ रहे हैं और अहम पदों को संभाल आ रहे हैं. ये गलत है. मैं नहीं चाहती कि देश के भविष्य का फैसला उनके हाथों में हो जो आपराधिक पृष्ठभूमि से आते हैं या फिर जो भ्रष्ट हैं. इसलिए मैंने अदालत में ये लड़ाई लड़ी. अगर हम वकील होकर इसके लिए नहीं लडेंगे तो फिर कौन करेगा? ’
रुकेगा आपराधिक लोगों का प्रवेश
लिली थॉमस का मानना है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अब लोगों में जागरूकता आयेगी और अब वो इस मुद्दे पर और स्पष्टता के लिए अदालत से दिशा–निर्देश लेंगे. वह कहती हैं ‘संविधान का असली अभिभावक अदालत है और उसके लाभार्थी आम लोग हैं.
यह पूछे जाने पर कि क्या उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और दूसरे राज्यों में आपराधिक चरित्र के लोगों के चुनाव लड़ने पर इस फैसले से सही मायनों में रोक लग पायेगी तो उन्होंने कहा कि अगर ऐसी पृष्ठभूमि वाले लोग चुनाव लड़ते हैं तो अब लोगों के पास सुप्रीम कोर्ट के फैसले के रूप में एक बडा हथियार है. वो उन्हें अदालत में चुनौती दे सकते हैं. लिली को सुप्रीम कोर्ट के वकील भी सम्मान के साथ देखते हैं क्योंकि उनका पूरा जीवन लोगों के अधिकारों के लिए समर्पित रहा है. वह कहती हैं कि अगर सत्ता की बागडोर गलत लोगों के हाथों में रही तो सब कुछ गलत ही होता रहेगा और शासन के हर वर्ग पर इसका असर पड़ेगा.
प्रशासन आम आदमी के लिए
उन्होंने उद्धरण देते हुए कहा कि उनके पड़ोस में एक युवक शराब के नशे में सड़क पर जा रहा था. वो हंगामा नहीं कर रहा था. मगर फिर भी उसे पुलिस ने पकड़ लिया. पुलिसवाले से उसकी हलकी बक–झक भी हुई. आखिरकार हुआ यूं कि उस युवक के खिलाफ पुलिसवाले ने थाने में मामला दर्ज कर दिया और युवक को नौकरी से हाथ धोनी पड़ी. लिली बताती हैं कि युवक का मामला दो सालों तक अदालत में चलता रहा और आखिरकार उसे बाइज्जत बरी कर दिया गया. हम अच्छा प्रशासन तब तक नहीं दे सकते जब तक सरकार में अच्छे लोग न हों. अगर अच्छे लोग चुनकर आयेंगे तो लोगों का जीवन भी अच्छा होगा.
आजीवन अविवाहित ही रहीं
लिली थॉमस ने शादी नहीं की और उन्हें इसका कोई मलाल नहीं है. वह कहती हैं कि उन्हें कोई ऐसा नहीं मिल पाया जिसे वो अपना जीवन साथी बना पाएं . उन्हें लगता था कि एक ऐसा इनसान जिसमें महात्मा गांधी और अब्राहम लिंकन जैसे युगपुरुषों का व्यक्तित्व होगा वही उनका जीवन साथी बन पायेगा. शायद मैंने कुछ ज्यादा ही सपने बुन लिए थे.
खाली समय में पढ़ती हैं हाथ की रेखाएं
वैसे जब समय मिलता है तो लिली हाथ की रेखाएं देखने में दिलचस्पी रखती हैं. लोग उनसे कानूनी पेंचों के अलावा अपनी तकदीर के पेंचों को भी समझने और जानने आते हैं. अब उनका वक्त इसी में कट जाता है. वैसे हाल के एक किस्से को वह सुनाते हुए जोर–जोर से हंस पडीं. किसी महिला संगठन ने उन्हें एक समारोह में न्योता दिया. इस समारोह में उन्होंने महिलाओं से कहा कि अपने पति को गाली मत दिया करो बावजूद इसके कि उसकी कोई गर्लफ्रेंड भी हो क्योंकि अगर वो ऐसा करेंगी तो बच्चों पर बुरा असर पड़ेगा. उनका कहना था कि संगठन के लोगों ने नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि आपको क्या पता? आपने तो शादी नहीं की नहीं. अब संगठन ने उन्हें बुलाना भी बंद कर दिया. मगर इस बात का उन्हें कोई मलाल नहीं है क्योंकि वह मानती हैं कि सही बात बोलनी चाहिए जिससे घर टूटने से बच सकें.