"यूपी के लोग जुआ खेलते हैं, शराब पीते हैं और दूसरी-तीसरी शादी करने में जरा भी नहीं हिचकते. गार्जियन अपने देस, अपने क्षेत्र में देखकर शादी क्यों नहीं करता."
ये कहते हुए गुस्से से भरी राबिया का गला रुंध जाता है. जैसे अतीत में छुपा उसका कोई जख़्म ताजा हो गया हो. तीन बच्चों की मां राबिया की शादी किस साल हुई, उत्तर प्रदेश में कहां हुई, उसे नहीं मालूम. बस इतना मालूम है कि उसके पति का घर किसी जनाना अस्पताल के पास था. राबिया को उसकी मौसी ने शादी के नाम पर दलाल को बेच दिया था.
राबिया बताती हैं, "मेरी झूठ बोलकर शादी हुई थी. कहा कि लड़के का अपना घर है, पेपर में नौकरी करता है. लेकिन, वो झोपड़ी में रहता था और रिक्शा चलाता था. बहुत मार पीट करता था, खाने में मिट्टी डाल देता था, दूसरों के साथ सोने के लिए कहता और बच्चों को बीड़ी से दाग देता था. हम कटिहार भाग आए. यहां मां- बाप, भाभी का ताना सुनते हैं लेकिन जी तो रहे हैं."
कइयों के जीवन का दर्द
राबिया के घर से कुछ किलोमीटर दूर रहने वाली सोनम भी पति के यहां से भाग आई थी. गांव में एक छोटी सी किराने की दुकान उसका सहारा है. बिन मां बाप की इस बच्ची का सौदा पड़ोसियों ने किया था. प
हले ट्रेन और फिर बस से उसका दूल्हा उसे विदा कर यूपी ले गया था. इतना लंबा सफर उसने ज़िंदगी में पहली बार किया था और सुखी ज़िंदगी के ढेर सारे सपने भी उसकी आंखों में पहली बार बंद हुए थे.
लेकिन, जब असल ज़िंदगी से पाला पड़ा तो वो बिखर गई. सोनम बताती हैं, "पति कहता था कि दूसरे मर्द के साथ सोना है. नहीं जाने पर बहुत मारता था और कहता था तुम्हें बेच कर दूसरी शादी करेंगे."
सोनम के पास अपने बीत चुके जीवन की दो निशानियां है. पहला उसके बच्चे और दूसरा दाएं पांव में लगे चाकू के जख़्म के गहरे निशान.
दर्द की इसी कश्ती की सवार 26 साल की आरती भी है. मानसिक तौर पर बीमार इस लड़की के माथे पर जख्म के बहुत गहरे निशान है. उसकी शादी के लिए 3 दलाल आए थे. आरती की मां से कहा कि लड़का बहुत अच्छा है.
वो बताती हैं, "रात में शादी हो गई. कोई पंडित नहीं था, मंतर भी नहीं पढ़े गए और गांव का भी कोई आदमी नहीं था. पुराने कपड़ों में ही शादी कराकर ले गए. बाद में पता चला कि बेटी को बहुत मारता है तो हम ढूंढ़कर बेटी को वापस ले आए. अब ये बकरी चराती है."
राबिया, सोनम और आरती जैसी तमाम पीड़िताओं को नहीं मालूम कि यूपी में उनकी शादी हुई कहां थी.
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सीमांचल में ब्राइड ट्रैफिकिंग
बिहार में ब्राइड ट्रैफिकिंग यानि झूठी शादी करके मानव तस्करी के मामले आम हैं. खासतौर पर सीमांचल यानी पूर्णिया, कटिहार, किशनगंज, अररिया जिले के ग्रामीण हिस्सों में. जहां गरीबी, प्राकृतिक आपदा और लड़की की शादी से जुड़े खर्चों के चलते लड़कियों को शादी के नाम पर बेच दिया जाता है.
शिल्पी सिंह बीते 16 साल से इलाके में ट्रैफिकिंग पर काम कर रही हैं. उनकी संस्था ‘भूमिका विहार’ ने साल 2016-17 में कटिहार और अररिया के दस हजार परिवारों के बीच एक सर्वे किया था. जिसमें 142 मामले में दलाल के जरिए शादी की गई थी. सबसे ज़्यादा ऐसी शादियां उत्तर प्रदेश में होती हैं. उत्तर प्रदेश के अलावा हरियाणा, राजस्थान, दिल्ली और पंजाब भी ब्राइड ट्रैफिकिंग के केन्द्र हैं.
शिल्पी बताती हैं, "यहां दलाल स्लीपर सेल की तरह काम करते हैं और वो लगातार संभावित शिकार पर नज़र रखते हैं. जब उन्हें मालूम चलता है कि परिवार मुश्किल में है तो खुद या किसी रिश्तेदार को पैसे देकर झूठी शादी करा देते हैं. बाद में लड़की कहां गई, किसी को मालूम नहीं चलता."
मानव तस्करी का स्रोत है बिहार
स्टेट बैंक आफ इंडिया के इकोरैप नाम के पब्लिकेशन में मार्च 2019 में छपी रिपोर्ट के मुताबिक बिहार मानव विकास सूचकांकों में सबसे नीचे है. 1990 से 2017 तक के आंकड़े दिखाते हैं कि मानव विकास सूचकांक में बेहतरी के लिए काम करने में भी बिहार भारतीय राज्यों में सबसे बेहाल है.
बिहार से सस्ते श्रम, देह व्यापार, मानव अंग और झूठी शादी के लिए मानव तस्करी होती है. बीते एक दशक में मानव तस्करी के कुछ 753 मामले पुलिस ने दर्ज किए. 2274 मानव तस्करों की गिरफ्तारी हुई. 1049 महिला और 2314 पुरुषों को मानव तस्करों के चंगुल से मुक्त कराया गया.
अपराध अनुसंधान विभाग के अपर पुलिस महानिदेशक विनय कुमार कहते हैं, "जहां कहीं भी लिंगानुपात कम है, वहां शादी के नाम पर लड़कियों की तस्करी के लिए गैंग ऑपरेट करते हैं. ये गैंग मां-बाप को लालच देते हैं और वो पैसे के लिए ऐसी शादियों के लिए सहमत हो जाते हैं. बाद में कई लड़कियों की री -ट्रैफिकिंग भी हो जाती है. ये पूरी प्रक्रिया मांग और आपूर्ति की है."
बिहार का लिंगानुपात 918 है जबकि सीमांचल का 927. यही वजह है कि जिन राज्यों में लिंगानुपात कम है, उनके लिए सीमांचल की लड़कियां आसान शिकार हैं.
यही वजह थी कि साल 2014 में बीजेपी नेता ओ पी धनकड़ ने एक सभा में कहा था, "हरियाणा में बीजेपी सरकार आती है तो राज्य के नौजवानों की शादी के लिए बिहार से लड़कियां लाई जाएंगी."
बार-बार बिकती हैं लड़कियां
खैनी मजदूर घोली देवी की ननद भी री-ट्रैफिकिंग की शिकार हुई हैं.
घोली देवी बताती हैं, " ननद ‘साफ’ रंग की थी. एक दिन सुंदर से दुल्हे के साथ दलाल आया और ननद को ब्याह ले गया. बाद में मेरी सास ने 6000 रूपये खर्च करके दो बार ननद का पता ढूंढ़ा लेकिन पता चला कि ननद बिक गयी थी. मेरी सास इस दुख में पागल होकर मर गई."
घोली देवी जैसे कई परिवार सालों से अपनी बेटी की ख़बर का इंतज़ार कर रहे हैं.
नेता से ‘ट्रैफिकिंग’ कहते, ते वो ‘ट्रैफिक व्यवस्था’ समझते
बीजेपी नेता किरन घई बिहार विधान परिषद बाल विकास महिला सशक्तीकऱण समिति की अध्यक्ष रही हैं. वो मानती है कि ट्रैफिकिंग का मुद्दा राजनीतिक दलों के लिए अहमियत नहीं रखता.
वो कहती हैं, "समिति के अध्यक्ष रहते हुए मेरा अनुभव है कि नेता ‘ट्रैफिकिंग’ को ‘ट्रैफिक व्यवस्था’ से जोड़ देते थे. ये सामाजिक मुद्दे पॉलिटिकल एजेंडा में तब्दील हो, इसके लिए बहुत संवेदनशीलता की जरूरत है, जो फिलहाल नहीं दिखती."
उम्मीद भी है……
कटिहार के ही एक गांव में एक चबूतरे पर 15 लड़कियां जुटी हैं. वो मिलकर गीत गा रही हैं…..
दूल्हा बनके गांव में घुसे, जाने सबके भेदवा
दारू भी पिलावे, सबके ताड़ी भी पिलावे
आपन गांव के बेटी बिके बनके दुल्हनियां
12 से 18 साल की लड़कियों के इस किशोरी समूह में रीता भी है. आठवीं में पढ़ने वाली रीता 15 साल की थी जब गइसा देवी नाम की दलाल ने अपने साथियों के साथ मिलकर जबरन उसकी शादी करवा दी थी. रीता तीन महीने बीतते-बीतते भाग आई और फिर से पढ़ाई शुरू कर दी.
रीता कहती हैं, "पढ़ते-लिखते हैं और अपनी सहेलियों को बताते हैं कि दलाल के चक्कर में शादी मत करना."
सीमांचल के इलाके में रीता जैसी कई लड़कियों ने इस बार इंटरमीडिएट की परीक्षा फर्स्ट डिवीजन से पास की है.
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