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एनआइसी : किसानों के लिए वरदान

।। विनय तिवारी ।। जमीन विवाद में आयी कमी, अधिकारियों की मनमानी भी रुकी भूमि विवादों की फेहरिस्त लंबी है. बात रिकार्ड हासिल करने की हो या विवादों के निबटारे की. लेकिन कर्नाटक सरकार की इस दिशा में की गयी पहल रंग ला रही है. यहां जमीन से जुड़े रिकार्ड के प्रबंधन और अन्य सुविधा […]

।। विनय तिवारी ।।

जमीन विवाद में आयी कमी, अधिकारियों की मनमानी भी रुकी

भूमि विवादों की फेहरिस्त लंबी है. बात रिकार्ड हासिल करने की हो या विवादों के निबटारे की. लेकिन कर्नाटक सरकार की इस दिशा में की गयी पहल रंग ला रही है. यहां जमीन से जुड़े रिकार्ड के प्रबंधन और अन्य सुविधा देने के लिए ऑनलाइन भूमि प्रोजेक्ट शुरू किया गया, जो किसानों के लिए वरदान साबित हुआ. ‘राहें और भी हैं ’की श्रृंखला में आज पेश में यानी नेशनल इनफॉरमेटिक्स सेंटर की यात्रा.

देश में भूमि विवादों का निबटारा होने में सालों लग जाते हैं. इतना ही नहीं जमीन से जुड़े रिकार्ड हासिल करने के लिए लोगों को बार-बार सरकारी दफ्तर के चक्कर लगाने पड़ते हैं. लोगों की इस समस्या को दूर करने और विभाग के कामकाज में पारदर्शिता लाने के लिए कर्नाटक सरकार ने जमीन से जुड़े रिकार्ड के प्रबंधन और लोगों को इससे जुड़ी सुविधा देने के लिए ऑनलाइन भूमि प्रोजेक्ट शुरू किया है. योजना के लागू होने के बाद जमीन से जुड़े दस्तावेजों के रखरखाव में पारदर्शिता आयी और नागरिकों को बेहतर सुविधा मिलने लगी. विभाग के अधिकारियों की मनमानी पर भी रोक लगाने में मदद मिली है. साथ ही सरकार के राजस्व में भी बढ़ोतरी हुई है. देश के कमोबेश सभी राज्य इस योजना को लागू करने के लिए कर्नाटक मॉडल की जानकारी ले अपने राज्य में लागू करने की योजना बना रहे हैं.

कर्नाटक सरकार जल्द ही शहरी क्षेत्रों में भी इसको लागू करने का मन बना रही है.

कैसे करता है कार्य : राजस्व विभाग ने नेशनल इनफॉरमेटिक्स सेंटर (एनआइसी)की तकनीकी सहायता से पूरे राज्य में भूमि प्रोजेक्ट शुरू किया. इसके तहत राज्य के 67 लाख किसानों के जमीन से जुड़े दो करोड़ रिकार्ड को कंप्यूटराइज्ड किया गया. भूमि योजना के तहत म्यूटेशन का आवेदन ऑनलाइन शुरू करने के कारण सरकारी अधिकारियों के विशेष अधिकारों में व्यापक पैमाने पर कमी आयी है. अब किसान डाटाबेस देख सकते हैं व आवेदन के बारे में जानकारी हासिल कर सकते हैं.

कोई भी किसान 177 तालुक ऑफिस में लगे कंप्यूटर पर अपना नाम या प्लॉट नंबर डाल कर महज 15 रुपये अदाकर आरटीसी की प्रिंटेड कॉपी हासिल कर सकता है. किसान अपने म्यूटेशन आवेदन की स्थिति का भी ऑनलाइन पता लगा सकता है. अगर राजस्व इंस्पेक्टर 45 दिनों के अंदर म्यूटेशन की प्रक्रिया को पूरा नहीं करता है तो उसकी शिकायत अधिकारी से की जा सकती है. यही नहीं अधिकारियों के विशेषाधिकार और खास लोगों को सहायता पहुंचाने की शिकायतों के बाद अब पहले आओ पहले पाओ के आधार पर म्यूटेशन आवेदन पर काम किया जा रहा है.

कंप्यूटराइज्ड व्यवस्था को चलाने वालों को अपने फैसलों के प्रति जबावदेह बनाने के लिए बायो लागइन व्यवस्था है, जिसमें हर बार लागइन के लिए थंबप्रिंट देना आवश्यक बना दिया गया है. सभी लेन-देन कंप्यूटर में दर्ज हो जाते हैं. इस व्यवस्था के लागू होने के बाद जमीन से जुड़े दस्तावेजों के प्रबंधन में क्रांतिकारी बदलाव आया है. इससे न सिर्फ रिकार्ड रखने का प्रबंधन आसान हुआ है बल्कि राजस्व में भी बढ़ोतरी हुई है.

कैसे हुई शुरुआत : योजना के जनक आइआइटी, कानपुर से बीटेक और कर्नाटक कैडर के 45 वर्षीय आइएएस अधिकारी राजीव चावला हैं. भूमि योजना लागू करने के कारण इन्हें प्रशासन में बेहतरीन काम करने के लिए 2005-06 में प्रधानमंत्री द्वारा पुरस्कार भी मिल चुका है. उनके इस कार्य को विश्व में ई-गवर्नेस का तीसरा सबसे बेहतरीन प्रयोग माना गया है. राज्य में इसके लगभग एक हजार ऑफिस है जिसे इंटरनेट के जरिये जोड़ा गया है. योजना को लागू करने के समय कर्नाटक सरकार ने 17 करोड़ रुपये खर्च किये थे. इसके संचालन पर सालाना 3-4 करोड़ रुपये का खर्च आता है. बाद में इसमें निजी कंपनियों को भी शामिल किया गया. वर्ष 1999 में इसे लागू करने की योजना बनी और फरवरी 2001 में केवल एक ब्लॉक से इस योजना की शुरुआत की गयी थी. इसके बाद ग्रामीण क्षेत्र के पचास लोगों को फ्रेंचाइजी दी गयी.

बाद में आइटीसी के ई-चौपाल से प्रेरणा लेते हुए इसमें बदलाव किया गया. जब योजना बनायी जा रही थी तो ग्रामीण क्षेत्र के अधिकारियों में इसे लेकर शंकाएं थी. वे मानते थे कि इसे लागू करना असंभव है. शुरुआती दिक्कतों के बाद केंद्रीय सूचना और तकनीकी मंत्रलय ने इसे सभी राज्यों को अपनाने को कहा. वर्ष 2007 में इसके लिए 30 करोड़ का अतिरिक्त आवंटन भी कर दिया. मौजूदा समय में कर्नाटक में इस योजना के तहत ग्रामीण क्षेत्रों में सालाना 1.4 करोड़ जमीन के दस्तावेज और 16 लाख म्यूटेशन होता है.

क्या हुए फायदे : योजना के लागू होने के बाद करोड़ों किसानों को फायदा पहुंचा. पहले किसानों को जमीन से जुड़े दस्तावेज हासिल करने में महीनों लग जाते थे, लेकिन अब महज मिनटों में इसे हासिल कर सकते हैं. किसानों को जबरन उगाही से बचाने का उपाय भी इस योजना में शामिल है. यह व्यवस्था पूरी तरह सुरक्षित है. इसमें सबसे बेहतरीन तकनीक बायोमेट्रिक अथेंटिकेशन व्यवस्था का प्रयोग किया जाता है. पहले म्यूटेशन का दस्तावेज हासिल करने में 200 दिन लग जाते थे, जिसे अब 35 दिन कर दिया गया है.

योजना के लागू होने के बाद विभाग में पारदर्शिता आयी है. किसान अपने म्यूटेशन आवेदन की स्थिति को जान सकता है. तय सीमा में काम नहीं होने पर अधिकारियों से कारण पूछ सकता है. इसके अन्य व्यावसायिक फायदे भी हैं. विभिन्न बैंकों से जुड़े होने के कारण किसान अपना फार्म क्रेडिट पांच दिन में हासिल कर सकते हैं, जबकि पहले इस काम के लिए एक महीना लग जाता था. यही नहीं इस योजना के लागू होने के बाद जमीन से जुड़े विवाद और मुकदमे में भी कमी आयी है. अदालतें ऑनलाइन दस्तावेज के आधार पर काफी कम समय में अपना फैसला सुना देती है.

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