उत्तर प्रदेश के बदायूं ज़िले में दो युवतियों का पहले सामूहिक बलात्कार हुआ और उसके बाद उनकी हत्या कर दी गई.
ख़बरों में बताया गया है कि दोनों नाबालिग़ लड़कियां अपने घर से शौच के लिए निकलीं थीं और उसके बाद लापता हुईं.
यह वाक़्या बताता है कि भारत में शौचालय की कमी की सबसे बड़ी शिकार महिलाएं किस तरह होती हैं.
भारत के क़रीब आधे अरब लोगों यानी आबादी की 48 फ़ीसदी जनता को शौचालय के अभाव में गुज़र बसर करना पड़ता है. इन्हें खुले में शौच के लिए जाना होता है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन और यूनिसेफ़ के आंकड़ों के मुताबिक़ गांवों में स्थिति और भी ख़राब है. ग्रामीण इलाक़ों में 65 फ़ीसदी लोग खुले में शौच करते हैं. इनमें शामिल महिलाओं को हिंसा और उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है, क्योंकि वो शौच के लिए बेहद सुबह या फिर देर रात निकलती हैं. जब सन्नाटा होता है.
कई अध्ययन बताते हैं कि शौचालय के अभाव में खुले में शौच के लिए निकलने वाली महिलाएं यौन हिंसा की ज़्यादा शिकार बनती हैं.
यह एकदम स्पष्ट भी है. बिहार के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया कि पिछले साल 400 महिलाएं बलात्कार का शिकार होने से बच सकती थीं, अगर उनके घर में शौचालय होता.
ग़रीब लोगों की समस्या
राजधानी दिल्ली के भलस्वा और सुंदर नगरी की झुग्गी झोपड़ियों में रहने वाली महिलाओं ने वाटर एड और डीएफ़आईडी द्वारा अनुदानित 2011 में कराए गए एक सर्वेक्षण में कहा कि 10 साल से कम उम्र की लड़कियों को सार्वजनिक शौचालयों के इस्तेमाल के दौरान बलात्कार का सामना करना पड़ता है.
झुग्गी झोपड़ी में रहने वाली एक महिला ने बताया कि खुले में शौच के लिए जाने पर स्थानीय लड़के उन्हें घूरते है, पत्थर फेंकते हैं, अश्लील बातें करते हैं और कई बार बलात्कार करने की कोशिश करते हैं.
इस सर्वेक्षण के दौरान एक महिला ने बताया, "अपनी बेटी को बलात्कार से बचाने के लिए मुझे ऐसे लोगों से एक बार लड़ाई करनी पड़ी. वे लोग मेरी हत्या तक करने पर उतारू थे."
एक आकलन के मुताबिक़, भारत की क़रीब 30 करोड़ महिलाएं और लड़कियां खुले में शौच करने को मजबूर हैं. इनमें से ज़्यादातर ग़रीब परिवारों की महिलाएं होती हैं. कथित तौर पर बताया जा रहा है कि बदायूं में हिंसा की शिकार दोनों नाबालिग़ लड़कियां अति पिछड़े समुदाय की थीं.
वाटर एड की मुख्य कार्यकारी अधिकारी बारबारा फ्रॉस्ट ने इस मसले पर कहा, "यह ख़ौफ़नाक हादसा बताता है कि शौचालय के अभाव में महिलाओं और लड़कियों को कितने ख़तरों का सामना करना पड़ता है."
प्रधानमंत्री की प्राथमिकता?
फ्रॉस्ट आगे कहती हैं, "ग़रीब परिवार की महिलाओं और लड़कियों को शौचालय की सुविधा मुहैया की जानी चाहिए, वह भी प्राथमिकता के आधार पर."
ज़्यादातर विशेषज्ञों का मानना है कि महिलाओं को ध्यान में रखते हुए भारत में शौचालय की उपलब्धता को बढ़ाने की ज़रूरत है. ज़रूरत इस बात की है कि ज़मीन की उपलब्धता पर निजी शौचालय बनाए जाएं और अगर ज़मीन उपलब्ध नहीं तो शेयर्ड शौचालय बनाए जाएं.
कई जगहों पर सामुदायिक शौचालय कामयाब रहे तो कई जगहों पर नाकाम. उदाहरण के लिए भोपाल को ही लीजिए. भोपाल में सामुदायिक शौचालयों की घर से ज़्यादा दूरी होने की वजह से लोग उनका इस्तेमाल नहीं करते.
हालांकि यह केवल भारत की समस्या नहीं है. केन्या और युगांडा जैसे देशों में खुले में शौच के लिए जाने वाली महिलाओं या फिर सार्वजनिक शौचालयों का इस्तेमाल करने वाली महिलाओं के साथ यौन हिंसा होती है. लेकिन सुपरपावर बनने का दावा करने वाले देश में शौचालय की कमी तो शर्मनाक पहलू ही है.
भारत के नए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वादा किया था, "पहले शौचालय, फिर मंदिर." उन्हें महिलाओं की सुरक्षा के लिए इस दिशा में जल्द से जल्द क़दम उठाना होगा.
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