नयी रिपोर्ट में खुलासा
महिला उद्यम को आगे बढ़ाने के लिए एक ओर राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा व कोशिशें जारी हैं. एक नयी रिपोर्ट के अनुसार महिलाओं के स्वामित्व वाले सूक्ष्म छोटे और मंझोले दर्जे के मात्र 3.1 प्रतिशत उद्यमों की वित्तीय जरूरत औपचारिक स्नेतों से पूरी होती है. जबकि 92.1 प्रतिशत ऐसे उद्यमों की वित्तीय जरूरत को पूरा करने के लिए महिला को घर-परिवार, नाते-रिश्तेदार या फिर अनौपचारिक स्नेतों के आसरे रहना होता है. शेष 4.8 प्रतिशत ऐसे उद्यमों की वित्तीय जरूरत अर्ध-औपचारिक स्रोतों से पूरा होती है.
इम्प्रूविंग एक्सेस टू फाइनांस फॉर विमन ओंड बिजनेस इन इंडिया शीर्षक रिपोर्ट में कहा गया है कि कर्ज के भुगतान के मामले में महिलाएं पुरुषों की तुलना में आगे हैं.(महिलाओं के स्वामित्व में चलने वाले उद्यमों में नॉन-परफॉरमिंग लोंस 30 से 50 प्रतिशत कम हैं) तो भी अपना व्यवसाय चलाने के लिए उन्हें औपचारिक स्रोतों से धन हासिल करने में बाधाओं का सामना करना पड़ता है. रिपोर्ट के अनुसार महिलाओं के स्वामित्व में चलने वाले सूक्ष्म, छोटे और मंझोले दर्जे के व्यवसायों की वित्तीय जरूरत का मात्र 27 फीसदी हिस्सा कर्ज प्रदान करने वाली औपचारिक संस्थाओं के जरिए पूरा होता है.
रिपोर्ट के अनुसार, महिलाओं के स्वामित्व वाले सूक्ष्म, छोटे और मंझोले दर्जे के उद्यमों की कुल वित्तीय जरूरत साल 2012 में 8.68 ट्रिलियन डॉलर की थी, जबकि औपचारिक स्नेतों से उन्हें मात्र 2.31 ट्रिलियन डॉलर हासिल हुए. इसका अर्थ हुआ कि महिलाओं के स्वामित्व में चलने वाले सूक्ष्म. छोटे और मंझोले उद्यमों की वित्तीय जरूरत का 74 प्रतिशत हिस्सा औपचारिक स्नेतों से धन हासिल नहीं कर पाया.
महिलाओं के स्वामित्व वाले ज्यादातर उद्यम सेवा-क्षेत्र में हैं ना कि विनिर्माण के क्षेत्र में और ऐसे उद्यमों का तकरीबन 90 फीसदी हिस्सा अर्थव्यवस्था के अनौपचारिक क्षेत्र में चलता है. रिपोर्ट के तथ्यों से जाहिर होता है कि धन प्रदान करने वाली औपचारिक संस्थाएं महिला उद्यमियों की वित्तीय जरूरतों को पूरा करके उनके सशक्तीकरण की राह तैयार करने के मामले में अभी बहुत पीछे चल रही है.
रिपोर्ट के अनुसार, महिलाओं के स्वामित्व में चलने वाले उद्यमों को औपचारिक संस्थाओं से धन मिलने की राह में कई रुकावटें काम करती हैं. महिला के परिवार का कोई पुरुष सदस्य ना होने की स्थिति में मान लिया जाता है कि कर्ज देने में जोखिम ज्यादा है. दूसरे, महिला-उद्यमियों की जरूरतों के अनुकूल सेवा-सुविधा गढ़ने को लेकर भी कर्ज देने वाली संस्थाओं ने विशेष प्रयास नहीं किए हैं. तीसरे, यह धारणा भी प्रचिलत है कि महिला-ग्राहकों को लेकर बैंकिंग संस्थाएं विशेष उत्साह नहीं दिखातीं. इन बातों के साथ-साथ एक तथ्य यह भी है कि महिला उद्यमियों में वित्तीय जरूरतों के अनुकूल जागरूकता तथा वित्ताधान से जुड़ी सेवाओं की जानकारी अपेक्षाकृत कम है.