–ब्रिटेन के विश्वविद्यालयों में अध्ययन के लिए परियोजना-
।। लंदन से अमरेश द्विवेदी।।
भारत में हो रहे आम चुनाव की चर्चा प्रसिद्ध ब्रिटिश विश्वविद्यालयों में भी हो रही है. बॉर्नमथ यूनिवर्सिटी और लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में तो बाकायदा इन चुनावों का विेषण भी हो रहा है. ब्रिटेन के विविध शिक्षण केंद्रों में पढ़ने वाले छात्र हों या पढ़ाने वाले शिक्षक, चुनाव में इनकी खासी दिलचस्पी है. इसमें ऑक्सफोर्ड, कैंब्रिज, किंग्स कॉलेज जैसे कई अन्य संस्थानों के भी छात्र और शिक्षक भी शामिल हैं.
ब्रिटेन की राजधानी लंदन से करीब 200 किलोमीटर दक्षिण-पश्चिमी तट पर बसा बॉर्नमथ शहर. अपने समुद्र तटों और सुरम्य वातावरण के लिए मशहूर. आबादी दो लाख के करीब. यहां की यूनिवर्सिटी में वैसे तो 18,000 छात्र-छात्रएं पढ़ते हैं, लेकिन इनमें से कुछ छात्र इन दिनों भारतीय चुनावों का गंभीरता से अध्ययन कर रहे हैं. यूनिवर्सिटी के मीडिया स्टडीज विभाग में बाकायदा एक परियोजना चलायी जा रही है, जिसका नाम है ‘प्रोजेक्ट इंडिया’. इस प्रोजेक्ट से करीब 40 छात्र-छात्रएं जुड़े हैं, जो बॉर्नमथ और भारत में जाकर लोकसभा के लिए जारी चुनाव पर बारीकी से काम कर रहे हैं. प्रोजेक्ट का नेतृत्व कर रहे चिंदू श्रीधरन कहते हैं, ‘हम भारतीय चुनावों में सोशल मीडिया के इस्तेमाल और अन्य कई विषयों का अध्ययन कर रहे हैं. इस शोध से मिली जानकारियों को हम एक किताब के रूप में सामने लायेंगे.’
चुनाव का अर्थशास्त्र : प्रोजेक्ट इंडिया से जुड़े छात्र चुनावों पर क्लास रूम चर्चा के साथ ही भारत में फील्ड में काम कर रहे छात्रों से स्काइप के जरिये बात करते हैं और जानते हैं कि असल में वहां क्या चल रहा है. बॉर्नमथ में बैठ कर उनकी दिलचस्पी ये जानने में है कि चुनाव में क्या मुद्दे हावी हैं, किसके प्रधानमंत्री बनने की संभावना है या फिर सोशल मीडिया क्या भूमिका अदा कर रही है. लेकिन इस सारी कवायद के बीच सबसे अहम है भारतीय चुनाव में इनकी दिलचस्पी. प्रोजेक्ट पर काम कर रही छात्र एलिना कोसिया कहती हैं, ‘भारतीय संस्कृति में मेरी काफी रु चि रही है, पर वहां की राजनीति के बारे में मुझे ज्यादा पता नहीं. इसीलिए मैं इस प्रोजेक्ट से जुड़ी.’
प्रोजेक्ट का मकसद : इसका मकसद चुनाव में हावी मुद्दों की जानकारी हासिल करने के अलावा ये जानना भी है कि सोशल मीडिया क्या भूमिका निभा रही है. उसकी पहुंच शहरी इलाकों और युवाओं तक ही सीमित है या ग्रामीण इलाकों में भी उसका प्रभाव है?
प्रोजेक्ट से जुड़े वरिष्ठ छात्र पैट्रिक वॉर्ड बताते हैं, ‘हम आंकड़ों का अध्ययन कर रहे हैं, मतदान को समझने की कोशिश कर रहे हैं. भारत में स्काइप या फिर तकनीक का इस्तेमाल करनेवालों पर जानकारी जुटा कर मल्टीमीडिया सामग्री तैयार कर रहे हैं.’ बॉर्नमथ यूनिवर्सिटी की तरह ही लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में भी भारतीय चुनाव आजकल चर्चा के केंद्र में हैं. यहां भारत पर काम कर रहे लोग सेमिनार और परिचर्चा के साथ-साथ ‘इंडिया एट एसएसइ’ नाम की वेबसाइट पर आर्टिकल लिख रहे हैं और दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में इस बार हावी मुद्दों का विश्लेषण कर रहे हैं. इन लेखों में चर्चा है कि भारत में लोग वोट देने क्यों जाते हैं या फिर चुनावों का पूरा अर्थशास्त्र क्या है.
गंभीर विश्लेषण भी : लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स (एलएसइ) में मानवशास्त्र विभाग में रीडर और चुनावों पर खास नजर रख रही मुकुलिका बनर्जी कहती हैं, ‘भारत सबसे बड़ा लोकतंत्र है. वहां 80 करोड़ से ज्यादा मतदाताओं को चुनाव प्रक्रि या से जोड़ना चुनाव आयोग की बहुत बड़ी कामयाबी है. इस सोशल मीडिया और आम आदमी पार्टी की वजह से चुनाव और दिलचस्प हो गया है. यहां एलएसइ में छात्रों के लिए ये सब जानना बहुत रोचक है, इसलिए वो बहुत दिलचस्पी दिखा रहे हैं.’ इनके अलावा ऑक्सफोर्ड, कैंब्रिज, किंग्स कॉलेज जैसे कई अन्य संस्थानों में भी छात्र और शिक्षक भारत के आम चुनाव पर नजर रख रहे हैं.
किंग्स कॉलेज में पिछले दिनों भारतीय संसदीय चुनाव पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया जिसमें भारत पर नजर रखने वाले कई विद्वानों ने हिस्सा लिया. कॉलेज में राजनीति शास्त्र के शिक्षक प्रोफेसर सुनील खिलनानी ने कहा, ‘ये चुनाव महत्वपूर्ण हैं. आर्थिक विकास यूपीए शासन के पहले पांच साल के मुकाबले काफी नीचे चला गया है, भ्रष्टाचार एक बड़ा मुद्दा है. पहली बार मतदाता ‘नोटा’ का इस्तेमाल कर रहे हैं. नतीजे देखना दिलचस्प होगा.’ वहीं डॉक्टर टिलिन लुइस कहती हैं, ‘मोदी शहरी मध्यवर्गीय आकांक्षाओं के लिए उम्मीद बन कर उभरे हैं, लेकिन उनके रिकॉर्ड को भी भुलाया नहीं जा सकता, जब वो गुजरात के मुख्यमंत्री थे और भयानक दंगे हुए थे.’
किंग्स कॉलेज में चुनाव के नतीजों के बाद एक बड़े सेमिनार की तैयारी है, जहां यूरोप के बाकी हिस्सों, भारत और अमेरिका से आये विशेषज्ञ हिस्सा लेंगे और नतीजों का विेषण करेंगे. सभी ये जानना चाहते हैं कि 80 करोड़ से ज्यादा वोटरों वाले इस लोकतांत्रिक महापर्व में वोट की ताकत, मुद्दों की अहमियत और नेता के भाषणों का आंतरिक ताना-बाना क्या है और सत्ता की चाबी का समीकरण आखिर कैसे बिठाया जा रहा है.
(साभार : बीबीसी हिंदी)