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रोहिंग्या संकट पर विश्वव्यापी निंदा को सू की ने किया खारिज, कहा-अंतरराष्ट्रीय जांच से नहीं डरती

नेपीताव : आंग सान सूकी ने मंगलवारको कहा कि वह रोहिंग्या संकट की अंतरराष्ट्रीय जांच से नहीं डरतीं और मानवाधिकारों का उल्लंघन करनेवालों को इंसाफ के कठघरे में लाने का प्रण किया. उन्होंने म्यांमार से चार लाख से अधिक मुस्लिम शरणार्थियों को पलायन के लिए बाध्य करनेवाली हिंसा पर सेना को दोषी ठहराने से इनकार […]

नेपीताव : आंग सान सूकी ने मंगलवारको कहा कि वह रोहिंग्या संकट की अंतरराष्ट्रीय जांच से नहीं डरतीं और मानवाधिकारों का उल्लंघन करनेवालों को इंसाफ के कठघरे में लाने का प्रण किया. उन्होंने म्यांमार से चार लाख से अधिक मुस्लिम शरणार्थियों को पलायन के लिए बाध्य करनेवाली हिंसा पर सेना को दोषी ठहराने से इनकार कर दिया. सूकी ने अपने संबोधन में सब्र रखने और अपने कमजोर लोकतंत्र में उभरते संकट को समझने का आह्वान किया.

उनका यह संबोधन पूरी तरह अंग्रेजी में था और अंतरराष्ट्रीय समुदाय को पूरी तरह ध्यान में रख कर दिया गया था. संबोधन का समय ऐसा था जिससे साफ हो रहा था कि वह संयुक्त राष्ट्र महासभा में म्यांमार की संभावित निंदा-भर्त्सना से बचाने की कोशिश कर रही हैं. उन्होंने कुछ शरणार्थियों को दुबारा बसाने का संकल्प लिया, लेकिन उन्होंने रखाइन प्रांत में हिंसा रोकने के लिए कोई समाधान पेश नहीं किया. रखाइन प्रांत की स्थितियों को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र ने हिंसा की इन घटनाओं को नस्ली सफाया करार दिया है. इस प्रांत में सैनिकों पर अल्पसंख्यक मुस्लिम रोहिंग्याओं के घर और गांव जलाने के आरोप हैं.

अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संस्था एमनेस्टी इंटरनेशनल ने सूकी की आलोचना करते हुए कहा है कि सेना के जोर-जुल्म की दस्तावेजित घटनाओं और बलात्कार, हत्या एवं ढेर सारे गांवों को योजनाबद्ध तरीके से खत्म करने के दावों के बावजूद वह किसी शुतुरमुर्ग की तरह रेत में सिर छिपाये बैठी हैं. सूकी के समर्थकों और पर्यवेक्षकों का कहना है कि 72 साल की नेता में 50 साल से देश पर काबिज रही सेना पर अंकुश लगाने का प्राधिकार नहीं है.

मानवाधिकार संगठन ह्यूमन राइट्स वाच के फिल राबर्टसन का मानना है, वह अंतरराष्ट्रीय समुदाय के बीच अपनी साख कुछ लौटाने की कोशिश कर रही हैं. वह ज्यादा नहीं बोल रही हैं क्योंकि उससे वह सेना और बर्मी जनता में दिक्कत में फंस जाएंगी जो रोहिंग्याओं को पसंद नहीं करतीं. सू की ने अपने 30 मिनट के संबोधन में आलोचकों से संवाद करने की कोशिश की जिन्होंने देशविहीन रोहिंग्याओं के पक्ष में आवाज उठाने में उनकी नाकामी की आलोचना की है.

उन्होंने कहा कि रोहिंग्याओं के सत्यापन की प्रक्रिया पर 1990 दशक के आरंभ में बांग्लादेश के साथ बनी सहमति के अनुरूप उनका देश रोहिंग्या शरणार्थियों के पुनर्वास के लिए तैयार है. उन्होंने कहा, जिन लोगों को इस देश से शरणार्थी के रूप में सत्यापित किया जा चुका है, उन्हें किसी दिक्कत के बगैर स्वीकार किया जायेगा. एक माह से भी कम वक्त में रोहिंग्याओं की रखाइन की 10 लाख आबादी में से आधे के करीब लोग पलायन कर बांग्लादेश पहुंच गये जहां उन्हें बहुत खराब हालात में शरणार्थी शिविरों में रहना पड़ रहा है.

इस बीच म्यांमार आधारित एक स्वतंत्र विश्लेषक रिचर्ड होसेका मानना है कि रोहिंग्याओं की वापसी के सूकी का संकल्प नया और अहम है क्योंकि यह सैद्धांतिक रूप से उन रोहिंग्याओं की वापसी की इजाजत देता है जो नागरिकता के बजाय म्यांमार में अपना निवास साबित कर सकते हों. उधर, म्यांमा से किसी तरह बच-बचा कर भागे और बारिश के बीच तंग झुग्गियों में रह रहे शरणार्थियों में क्षोभ है कि कैसे वे इन शर्तों को पूरा कर सकेंगे. 55 साल के अब्दुर रज्जाक ने कहा, हमारे पास कोई दस्तावेज नहीं हैं. सूकी ने जोर दिया कि सेना का सफाई अभियान पांच सितंबर को पूरा हो चुका है. सूची ने किसी एक समूह को दोषी ठहराये बगैर वादा किया कि धर्म, जाति या राजनीतिक संबद्धता से इतर दोषी पाए गए लोगों को सजा दी जायेगी.

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