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जानिए, असम के मदरसों में क्या होता है

"यह बात सच नहीं है कि मदरसे में पढ़ने वाले बच्चे सिर्फ़ मौलाना बनते हैं. कोई मौलाना बनेगा, कारी बनेगा, मौलवी बनेगा, मुफ्ती बनेगा. फिर भी मज़हबी तालीम लेने के बाद बहुत सारे बच्चे स्कूली पढ़ाई करते हैं. आगे जाकर कई सारी डिग्रियां हासिल करते हैं और डिग्री हासिल करने के बाद कोई डॉक्टर बनता […]

"यह बात सच नहीं है कि मदरसे में पढ़ने वाले बच्चे सिर्फ़ मौलाना बनते हैं. कोई मौलाना बनेगा, कारी बनेगा, मौलवी बनेगा, मुफ्ती बनेगा. फिर भी मज़हबी तालीम लेने के बाद बहुत सारे बच्चे स्कूली पढ़ाई करते हैं. आगे जाकर कई सारी डिग्रियां हासिल करते हैं और डिग्री हासिल करने के बाद कोई डॉक्टर बनता है तो कोई इंजीनियर. हमारी ख़्वाहिश है कि हम इंशाअल्लाह मौलवी बनने के बाद अल्लाह अगर हमको मौका दे तो कंप्यूटर समेत दूसरी चीजें सीखने की कोशिश करेंगे."

यह कहना है 18 साल के रिज़ाउल हक़ का जो इस समय असम के गुवाहाटी शहर के इस्लामपुर स्थित असम मरकज़ुल उलूम मदरसे में हाफ़िज़ा (बिना देखे क़ुरान याद होना) दोहरा रहे हैं.

दरअसल असम की सतारूढ़ बीजेपी सरकार ने मदरसों के आधुनिकीकरण को ध्यान में रखते हुए करीब 83 साल पुराने राज्य मदरसा शिक्षा बोर्ड को भंग करने का ऐलान कर दिया है.

सरकार का तर्क है कि प्रदेश में कई ऐसे निजी मदरसे चल रहे हैं जहां केवल मज़हबी शिक्षा दी जाती है.

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‘धर्मनिरपेक्ष’ विषयों का पाठ्यक्रम

सरकार के अनुसार, जो छात्र इस तरह की मज़हबी शिक्षा को लेकर भविष्य में ‘मुल्ला-मौलवी’ नहीं बनना चाहते उनका ध्यान रखते हुए इन मदरसों में सामान्य ज्ञान और अंग्रेज़ी जैसे ‘धर्मनिरपेक्ष’ विषयों को पाठ्यक्रम में शामिल करने की बात सोची जा रही है.

असम में दो तरह के मदरसे हैं. एक प्रोविंसिलाइज़्ड जो पूरी तरह सरकारी अनुदान से चलते हैं और दूसरा खेराजी जिसे निजी संगठन चलाते हैं. राज्य के मदरसा शिक्षा बोर्ड के अंतर्गत 700 से ज़्यादा मदरसे हैं जबकि सरकार के पास खेराजी मदरसों की संख्या का सटीक आंकड़ा नहीं है. ऐसे में असम सरकार ने निजी संगठनों की ओर से चलाए जा रहे खेराजी मदरसों के लिए पंजीकरण अनिवार्य करने की योजना तैयार की है.

हालांकि, मदरसों को लेकर सरकार के इस क़दम को हस्तक्षेप की तरह देखा जा रहा है और मुस्लिम समुदाय के लोग इससे नाराज़ हैं. मदरसों में आधुनिक शिक्षा के नाम पर बीजेपी सरकार के इन ‘नेक’ इरादों को मुस्लिम समुदाय के लोग विश्वास की नज़र से नहीं देख पा रहे हैं.

जहां तक मदरसों में इस्लाम की तालीम ले रहे बच्चों की बात है तो उनसे मिलने के बाद ऐसा नहीं लगता कि वे आम स्कूलों में पढ़ रहे अन्य बच्चों से कुछ अलग सोच रखते हैं. क्योंकि अकसर ऐसी बातें सामने आती रही हैं कि धार्मिक शिक्षा लेने के कारण ये बच्चे समाज की मुख्यधारा से कट जाते हैं.

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छात्रों के भी हैं सपने

14 साल के इमरान ने बीबीसी से बात करते हुए कहा, "मुझे क़ुरान पढ़ना अच्छा लगता है लेकिन मैं हाफ़िज़ा करने के साथ स्कूली पढ़ाई भी कर रहा हूं. मुझे क्रिकेट खेलना बेहद पसंद है. मैं आगे चलकर एक पुलिस अधिकारी बनना चाहता हूं."

मोरीगांव से दो साल पहले इस मदरसे में हाफ़िज़ा करने आए सादिक़ अली अहमद को गाने सुनने और गाने का बेहद शौक है. सादिक अकसर अपने दोस्तों को ‘ये मोह मोह के धागे, तेरी उंगलियों से जा उलझे..’ सुनाते हैं. मदरसे में पढ़ाई के अलावा सादिक गुवाहाटी की कामरूप अकादमी स्कूल में दसवीं के छात्र भी हैं.

मदरसे में आधुनिक शिक्षा के सवाल पर सादिक़ कहते हैं, "हमारे मदरसे में मज़हबी विषयों के अलावा कंप्यूटर की शिक्षा भी दी जाती है. उस्ताद हमें अंग्रेज़ी सिखाते हैं. जबकि कई लड़कों (18 वर्ष से अधिक उम्र वालों) को मदरसे की तरफ से कार चलाना सिखाया जा रहा है."

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मदरसों में कट्टरपंथी?

निजी संगठन की ओर से साल 1990 से चलाए जा रहे असम मरकज़ुल उलूम मदरसे के प्रिंसिपल मोहम्मद हिलालुद्दीन क़ासिमी ने बीबीसी से कहा, "सवाल उठते हैं कि मदरसों में चरमपंथी हैं. मदरसों में कट्टरपंथी बनाए जाते हैं, यह बिल्कुल ग़लत है और इसका कोई सबूत नहीं है. दूसरी ओर असम सरकार ने जो मदरसा बोर्ड को तोड़ने का फैसला लिया है, उस पर हमें कुछ नहीं कहना है. अगर सरकार मदरसों में दी जाने वाली मज़हबी तालीम में कुछ बदलती है तो यह पूरी तरह ग़लत होगा."

असम मरकज़ुल उलूम मदरसा पहली बार उस समय चर्चा में आया था जब इसके छात्रों ने राष्ट्रीय दिवस पर तिरंगा फहराकर राष्ट्रगान गाया था.

दरअसल, मदरसा शिक्षा आधुनिकीकरण से जुड़ा विवाद हाल ही में प्रदेश के शिक्षा मंत्री हिमंता बिस्वा शर्मा के एक ट्वीट से शुरू हुआ. शिक्षा मंत्री ने अपने ट्वीट में कहा कि मदरसों में शिक्षा को ‘मुख्यधारा’ से जोड़ने के लिए मदरसा एजुकेशन बोर्ड को भंग कर दिया जाएगा. मदरसा बोर्ड भंग करने के बाद मदरसा शिक्षा को राज्य माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सेबा) के अधीन मिला दिया जाएगा.

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इससे पहले शिक्षा मंत्री ने मदरसों से जुम्मे के दिन यानी शुक्रवार की छुट्टी रद्द करने को कहा था. मंत्री ने मदरसों को दूसरे शिक्षा संस्थानों की तरह साप्ताहिक छुट्टी का दिन रविवार रखने को कहा था. लिहाज़ा बीजेपी सरकार के एक के बाद एक ऐसे कदम से विवाद बढ़ता चला गया.

ऑल असम अल्पसंख्यक छात्र संघ (आम्सू) का कहना है कि बीजेपी सरकार मुसलमानों पर बिलकुल भरोसा नहीं करती और शिक्षा मंत्री आरएसएस को खुश करने के लिए इस तरह की योजनाएं मुस्लिम समुदाय पर थोप रहे हैं.

आम्सू के अध्यक्ष अज़ीज़ुर रहमान ने कहा, "राज्य सरकार ने मदरसा बोर्ड को भंग करने का जो फैसला लिया है ये मदरसा शिक्षा को खत्म करने की एक साज़िश है. ऐसे कार्यों के जरिए मुसलमानों को खत्म करने का षड्यंत्र रचा जा रहा है."

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हिंदू-मुसलमानों के बीच गलतफ़हमी?

गुवाहाटी हाईकोर्ट के वकील हाफ़िज़ रशीद अहमद चौधरी ने कहा, "हम पहले सोचते थे कि मुसलमानों को लेकर बीजेपी का छिपा हुआ एजेंडा है लेकिन आजकल तो यह खुला एजेंडा हो गया है. पहले शुक्रवार (जुमे) की छुट्टी रद्द करने को लेकर इन लोगों ने मुद्दा बनाया. अब 1934 से चल रहे मदरसा शिक्षा बोर्ड को भंग किया जा रहा है. ये सब कुछ हिंदू-मुसलमानों के बीच गलतफ़हमी के लिए शुरू हुआ है. मदरसा बोर्ड को भंग कर सेबा के अधीन लाया जा रहा है जिस पर पहले से ही काफ़ी बोझ है. मदरसा शिक्षा को लेकर अगर बीजेपी सरकार की नीयत में कोई खोट नहीं है तो उनको मुस्लिम बुद्धिजीवियों से सलाह मशविरा करना चाहिए."

इसी 15 सितंबर को संपन्न हुए असम विधानसभा सत्र में जब यह विषय उठा तो सरकार की तरफ से कहा गया कि प्रदेश के मदरसों में दी जाने वाली शिक्षा के पाठ्यक्रम के आधुनिकीकरण के इरादे से ये कदम उठाए जा रहे हैं.

शिक्षा मंत्री ने मदरसा बोर्ड को भंग करने के अपने निर्णय पर कहा कि इस विषय पर वे पहले मुस्लिम समुदाय के लोगों से बात करेंगे.

ऐसे आरोप सामने आते रहे हैं कि राज्य के कुछ खेराजी मदरसों में कट्टरपंथी इस्लाम की पढ़ाई कराई जा रही है. ख़ास तौर से, उन दूर-दराज़ के इलाकों वाले मदरसों में, जहां कोई स्कूल नहीं है.

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