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नवजात बच्चों के पालन-पोषण के लिए पत्नी के पैतृक घर से मांगी गयी रकम दहेज नहीं

हाइकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला देते हुए कहा है कि यदि पति अपने नवजात बच्चे के पालन-पोषण के लिए पत्नी के पैतृक घर से धन की मांग करता है, तो ऐसी मांग दहेज की परिभाषा में नहीं आती है.

हाइकोर्ट ने रद्द किया निचली अदालत का फैसला

विधि, संवाददाता

हाइकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला देते हुए कहा है कि यदि पति अपने नवजात बच्चे के पालन-पोषण के लिए पत्नी के पैतृक घर से धन की मांग करता है, तो ऐसी मांग दहेज की परिभाषा में नहीं आती है. न्यायाधीश बिबेक चौधरी की एकलपीठ ने नरेश पंडित द्वारा दायर आपराधिक पुनरीक्षण याचिका को स्वीकृति देते हुए यह फैसला सुनाया. याचिकाकर्ता ने आइपीसी की धारा 498ए और दहेज निषेध अधिनियम 1961 की धारा 4 के तहत दी गयी अपनी सजा को हाइकोर्ट में चुनौती दी थी . कोर्ट को बताया गया था कि याचिकाकर्ता नरेश का विवाह सृजन देवी के साथ वर्ष 1994 में हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार हुआ था. इस दौरान उन्हें तीन बच्चे हुए- दो लड़के और एक लड़की. पत्नी ने आरोप लगाया कि उनकी बेटी के जन्म के तीन साल बाद याचिकाकर्ता ने लड़की की देखभाल और भरण-पोषण के लिए उसके पिता से 10,000 रुपये की मांग की . यह भी आरोप लगाया गया कि मांग पूरी न होने पर पत्नी को प्रताड़ित किया गया. मामले का अवलोकन कर न्यायालय ने पाया कि 10 हजार रुपये की मांग शिकायतकर्ता और याचिकाकर्ता के बीच विवाह के विचार के रूप में नहीं की गयी थी, इसलिए, आइपीसी की धारा 498ए के तहत यह ””दहेज”” की परिभाषा के दायरे में नहीं आता है. हाइकोर्ट ने सभी पक्षों को सुनने के बाद निचली अदालत द्वारा पारित दोषसिद्धि और सजा के फैसले और आदेश को रद्द कर दिया.

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