दुर्गापुर : केंद्र की मोदी सरकार ने तीन साल पहले 8 नवंबर 2016 को नोटबंदी की घोषणा की थी, जिसके तहत 500 और एक हजार के नोटों को बंद करने का ऐलान किया था.
आज नोटबंदी को तीन साल पूरे हो चुके हैं ऐसे में एक बार फिर लोगों की कड़वी यादें ताजा हो चुकी हैं. केंद्र सरकार ने नोटबंदी करने को लेकर भ्रष्टाचार आतंकवाद जैसे चीजों को बंद करने का हवाला दिया था. नोटबंदी करना भारत के लिए कितना सफल रहा इस पर राजनीति वाद विवाद जारी है. एक ओर भाजपा द्वारा केंद्र सरकार की इस फैसले को पूरी तरह से सफल बताया जा रहा है. वहीं, दूसरी ओर विपक्ष इसे पूरी तरह से असफल बता रही है.
इतना ही नहीं देश का विपक्ष इस फैसले को देश मे छाई आर्थिक मंदी के लिए ज़िम्मेवार बता रहा है. भाजपा नेता मनोहर कोनार का दावा है कि सरकार का यह कदम उसने काला धन, जाली नोट, आतंकी फंडिंग और मनी लॉन्ड्रिंग को रोकने के लिए उठाया था, जिसमें उसे पूर्ण सफलता मिली. इससे इकॉनमी ट्रांजैक्शन पारदर्शी हो गये. सीटू नेता सौरभ दत्ता का कहना है कि तीन साल पूरे होने के बाद भी देश इससे उबर नहीं पाया है. नोटबंदी का सबसे ज्यादा असर संगठित और असंगठित क्षेत्रों के कारोबार पर पड़ा था.
क्योंकि नोटबंदी को लेकर सरकार की कोई तैयारी नहीं थी. नोटबंदी के बाद हर रोज नियम बदले जा रहे थे. लोगों को कैश निकालने में भी किल्लत का सामना करना पड़ा था. कांग्रेस नेता देवेश चक्रवर्ती का कहना है कि नोटबंदी से छोटे और मझोले कारोबारियों का धंधा चौपट हो गया और वे बेरोजगार हो गए. इस तरह एक बड़े तबके की क्रय शक्ति घटने से अर्थव्यवस्था में मांग गिरने का जो सिलसिला शुरू हुआ, वह आज तक जारी है.
आरबीआई के आंकड़ों के अनुसार, नोटबंदी के दौरान बंद हुए 99.30 फीसदी 500 और 1000 के पुराने नोट बैंक में वापस आ गए. जब सारा पैसा वापस बैंकों में लौट गया, तो ऐसे में अभी तक यह साफ नहीं हुआ है कि सरकार ने भ्रष्टाचार को कब खत्म किया. आज नोटबंदी के तीन साल पूरे होने के बाद भी सरकर अपने वादे पर खड़े नहीं उतरी है. इसके उलट देश की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से चौपट हो गयी है.