कोलकाता: भारत-बांग्लादेश सीमा पर तस्करों के हाथों बीएसएफ जवानों के घायल होने की घटनाएं आम बात हो गयी है. अपने मंसूबे को अंजाम देने के दौरान तस्कर कई बार तो जवान की जान लेने से भी नहीं चूकते. अगर ताजा घटनाओं पर नजर डाला जाय तो हाल ही में 21 मई को तड़के तीन बजे के करीब दक्षिण दिनाजपुर जिले के भारत-बांग्लादेश सीमांत के हिली थाना के गयेशपुर बीओपी के निकट बीएसएफ जवान महेश्वर भगत तस्करों के हाथों गंभीर रूप से घायल हो गया. 20 से 25 तस्करों ने एक साथ उन पर हमला कर दिया. सवाल उठता है कि सीमा पर तस्करी व तस्करों के खूंखार होने की घटनाएं क्यों बढ़ रही हैं ?
बीएसएफ में पुलिस के प्रति नाराजगी
इसके लिए सीमा पर तस्करी रोकने में असफलता के लिए सिर्फ बीएसएफ को दोषी ठहराने से कई अधिकारी दबे शब्दों में नाराजगी प्रकट कर रहे हैं. उनकी माने तो जब विभिन्न सड़क मार्ग से तस्करी के लिए गाय को बार्डर के निकट लाया जाता है तो यहां पहुंचने के पहले ही पुलिस चाहे तो उसे रोक सकती है. लेकिन अधिकतर मामलों में वे ऐसा नहीं करते. जिसके कारण बार्डर में इस तरह की घटनाएं लगातार बढ़ रही है.
गायों को इंजेक्शन लगा हो रही तस्करी
अधिकारियों का कहना है कि सीमा पार आने के पहले तस्कर गायों को अतिरिक्त ताकत का इंजेक्शन देते हैं. गायों को सीमा पार कराने के पहले उन्हें पीछे से सुई चुभोया जाता है, जिससे वे अत्यंत ही तेजी से दौड़ने लगती है. इस तरह के गाय को रोक पाना जवानों के लिए नामुमकिन होता है. कई बार तो रोकने के दौरान उनके जवान गंभीर रूप से जख्मी भी हो जाते हैं. इसके बावजूद सौ में से पांच सात गाय को ही रोक पाने में वे सक्षम होते हैं.
तस्करी की लाखों गाय रोकते हैं जवान
बीएसएफ के वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार हर साल बीएसएफ के जवान अपनी जान पर खेल कर व जख्मी होकर लाखों गायों को तस्करों के चंगुल से छुड़ाते हैं. 2011 में भारत-बांग्लादेश की पूर्वी सीमा पर एक लाख, 37 हजार 256 गायों को तस्करी करने से बचाया गया. 2012 में इनकी संख्या एक लाख 21 हजार 910 रही, जबकि इस वर्ष 31 मार्च तक 31 हजार 997 गायों को बीएसएफ ने तस्करी से बचाया है.
फेंसिंग है एक बड़ी समस्या
भारत-बांग्लादेश के बीच लगभग 4096 किलोमीटर लंबी सीमा है. इसमें से बड़े हिस्से में तार की फेंसिंग नहीं लग पायी है, जिसका फायदा तस्कर उठाते हैं. बिना फेंसिंग वाले इलाके से गायों की तस्करी की जाती है. इसके अतिरिक्त भारत सरकार की ओर से सीमा पर ड्यूटी करनेवाले बीएसएफ के जवानों को पंप एक्शन गन दी जाती है. इससे निकलनेवाली गोलियां तस्करों को सिर्फ मामूली जख्म देती है.
30 जवान बन चुके शिकार
जनवरी से लेकर अब तक 50 से ज्यादा बार जवानों व तस्करों के बीच मुठभेड़ की घटनाएं घट चुकी है. इसमें तीस जवान जख्मी हो चुके हैं. तस्करों के पास धारदार हथियार रहते हैं, लेनिक जवानों के पास अत्याधुनिक हथियार नहीं रहता. समूह में हमला करने के कारण जवान घिर जाते हैं.