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अदालत का आदेश: तृणमूल विधायक सोहराब अली को सजा

आसनसोल. रेलवे सुरक्षा बल के आसनसोल वेस्ट पोस्ट में दर्ज लोहा चोरी के मामले में मंगलवार को आसनसोल महकमा कोर्ट के सातवें न्यायिक दंडाधिकारी अनिन्दो दे ने रानीगंज से तृणमूल कांग्रेस के विधायक सोहराब अली समेत चार आरोपियों को दोषी ठहराया. सभी को दो साल के कारावास तथा पांच हजार रुपये का जुर्माना लगाया गया. […]

आसनसोल. रेलवे सुरक्षा बल के आसनसोल वेस्ट पोस्ट में दर्ज लोहा चोरी के मामले में मंगलवार को आसनसोल महकमा कोर्ट के सातवें न्यायिक दंडाधिकारी अनिन्दो दे ने रानीगंज से तृणमूल कांग्रेस के विधायक सोहराब अली समेत चार आरोपियों को दोषी ठहराया. सभी को दो साल के कारावास तथा पांच हजार रुपये का जुर्माना लगाया गया.

जुर्माना अदा न करने पर अतिरिक्त दो माह की सजा का प्रावधान किया गया. इनके अधिवक्ता जगनेंद्र गांगुली ने ऊपरी कोर्ट में अपील के लिए इनकी जमानत की अपील की. न्यायिक दंडाधिकारी ने सभी को तीन माह के लिए जमानत देते हुए प्रति व्यक्ति दस हजार रुपये का बांड भरने का आदेश दिया. जमानत की प्रक्रिया पूरी करने के बाद सभी आरोपी वापस लौट गये.

कैसे चली कोर्ट की प्रक्रिया: सातवें जीएम श्री सेन ने मामले की सुनवाई शुरू की. सबसे पहले उन्होंने सभी आरोपियों की रेगुलर जमानत रद्द कर दी तथा उन्हें न्यायिक हिरासत में ले लिया गया. इसी समय स्पष्ट हो गया कि इस मामले में आरोपियों को दोषी माना जायेगा. न्यायिक दंडाधिकारी अनिन्दो दे ने सभी को दोषी ठहराते हुए उनसे उनकी राय पूछी. सभी ने अपने को निर्दोष बताया. दूसरे सत्र में जज ने सभी आरोपियों को दो वर्ष की कारावास तथा पांच-पांच हजार रुपये का जुर्माना लगाया.

भुगतान नहीं होने पर अतिरिक्त दो माह की सजा का प्रावधान किया गया. इस बीच सप्तम न्यायिक दंडाधिकारी का कक्ष पूरी तरह से खचाखच भर गया था. कोर्ट परिसर में बड़ी संख्या में उनके समर्थक जमा हो गये थे. लेकिन सजा सुनते ही सभी समर्थक शांत हो गये. इसके बाद बचाव पक्ष के अधिवक्ता श्री गांगुली ने कहा कि इस निर्णय के खिलाफ ऊपरी कोर्ट में अपील की जायेगी. इसके लिए उन्हें जमानत दी जाये. इसके पहले भी सभी रेगुलर जमानत पर थे. ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट सेन ने सभी को दस-दस हजार रुपये के बांड पर तीन माह के लिए जमानत पर रिलीज करने का आदेश दिया. इसके बाद विधायक सोहराब अली व उनके सभी समर्थकों ने राहत की सांस ली. कोर्ट की जमानत की प्रक्रिया पूरी होने तक विधायक कोर्ट कैंपस में अपने समर्थकों से घिरे रहे.

विधायकी को लेकर उठने लगे सवाल: इस निर्णय के आते ही कोर्ट परिसर से लेकर आसनसोल व रानीगंज में यह सवाल प्रमुखता से उठने लगा कि इस निर्णय के बाद क्या श्री अली की विधायकी बचेगी? आसनसोल नगर निगम के चुनाव में उनका टिकट मिलना तय था. इस घटना के बाद क्या पार्टी नेतृत्व इस चुनाव में उन्हें प्रत्याशी बनायेगा. इस मामले में हर प्रशासनिक अधिकारी ने टिप्पणी करने से इनकार कर दिया. उन्होंने कहा कि विधानसभा की सदस्यता के मामले में विधानसभा अध्यक्ष का निर्णय प्रभावी होगा. जहां तक नगर निगम चुनाव की बात है तो उनके नामांकन करने के बाद वरीय अधिकारियों के निर्देश के आलोक में कार्रवाई की जायेगी.
क्या है मामला
28 अगस्त, 1995 को आरपीएफ वेस्ट पोस्ट अंतर्गत हीरापुर थाने के आनंद नगर रेल साइडिंग से 25 हजार रुपये मूल्य की रेल संपत्ति चोरी हुई थी. तत्कालीन पोस्ट प्रभारी अजय कुमार शर्मा ने एक सौ से अधिक पिग आयरन के नग, 69 फिश प्लेट व अन्य सामग्री जब्त की थी. इस संबंध में उन्होंने सोहराब अली (रहमतनगर, हीरापुर), विपिन सिंह (न्यू टाउन, हीरापुर), पप्पू सिंह (आठ नंबर बस्ती, हीरापुर), नवल किशोर साह (आठ नंबर बस्ती, हीरापुर) तथा हरेन दे (तेलीपाड़ा, आससोल) के खिलाफ कांड (संख्या 12/ 1995) में रेलवे संपत्ति चोरी अधिनियम थ्री (ए) के तहत प्राथमिकी दर्ज की. जांच के बाद सभी आरोपियों के खिलाफ आरोप पत्र कोर्ट में समर्पित किया गया. इस मामले की सुनवाई सातवें न्यायिक दंडाधिकारी के कोर्ट में शुरू हुई. इसी बीच एक आरोपी विपिन की मौत वर्ष 1998 में हो गयी. चार आरोपी रेगुलर जमानत पर रहे. सुनवाई के दौरान नौ गवाहों ने गवाही दी. अभियोजन के पक्ष में रेलवे के अधिवक्ता संतोष कुमार सिंह ने तथा बचाव पक्ष से अधिवक्ता जगनेंद्र गांगुली, संजीव चट्टोपाध्याय सहित तीन वकीलों ने बहस की. मंगलवार को इस मामले में निर्णय सुनाया गया.
सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के आलोक में विधायकी जाना तय
रानीगंज से तृणमूल कांग्रेस के विधायक सोहराब अली के रेलवे संपत्ति चोरी में दो वर्ष की सजा होने के बाद विधानसभा में उनकी सदस्यता को लेकर विवाद शुरू हो गया है. पश्चिम बंगाल राज्य विधानसभा के अध्यक्ष विमान बनर्जी ने कहा कि उन्हें इस संबंध में मिले आदेश की प्रति नहीं मिली है. आगामी दो दिनों में आदेश की प्रति मिलने की संभावना है. आदेश की प्रति मिलने के बाद ही कानूनी राय लेकर इस मामले में कोई निर्णय लिया जायेगा. हालांकि उनके कार्यालय के सूत्रों का कहना है कि इस आदेश के बाद उसी कोर्ट ने स्वयं इस आदेश पर रोक लगाते हुए तीन माह के लिए जमानत दे दी है ताकि वे ऊपरी न्यायालय में अपील कर सकें. इस कारण इस सजा को लेकर सवाल उठेंगे. आदेश की प्रति मिलने के बाद ही कोई निर्णय लिया जा सकेगा. विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष हासिम अब्दुल हलीम ने कहा कि इस मामले में वर्ष 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट राय दी है. उसके अनुसार किसी भी विधायक के खिलाफ सजा घोषित होते ही विधानसभा से उसकी सदस्यता स्वत: समाप्त हो जायेगी. सोहराब के मामले में भी ऐसा होना चाहिए. उन्होंने कहा कि तमिलनाडू की मुख्यमंत्री जयललिता के मामले में भी ऐसा हुआ था तथा उन्हें विधायक व मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था. लोकसभा के पूर्व अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी ने कहा कि बंगाल के लोकतंत्र के लिए यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है. जनप्रतिनिधि लोहा चोरी जैसे अपराध में सजा पा रहे हैं. जनता व विभिन्न राजनीतिक पार्टियों को इस मामले में निर्णय लेना होगा. उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के अनुसार विधानसभा से उनकी सदस्यता समाप्त होनी चाहिए. इसके बाद चुनाव आयोग उस क्षेत्र से उपचुनाव कराने की प्रक्रिया शुरू करेगा.

चुनाव आयोग निर्णय करेगा कि सजायाफ्ता सोहराब चुनाव लड़ पायेंगे या नहीं. वरीय अधिवक्ता विकास रंजन भट्टाचार्या ने कहा कि यह मामला कानूनी होने से ज्यादा नैतिकता से जुड़ा है. चोरी में सजायाफ्ता विधायक पार्टी का प्रतिनिधित्व करेगा कि नहीं, यह निर्णय पार्टी सुप्रीमो व मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को लेना चाहिए. भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष राहुल सिन्हा ने कहा कि सत्तासीन तृणमूल के विधायक जनता की राशि की लूट, सरकारी संपत्ति की लूट मामले में गिरफ्तार हो रहे हैं. इस स्थिति में इस पार्टी व सरकार को सत्ता में रहने का कोई अधिकार नहीं है.

क्या कहता है सुप्रीम कोर्ट का आदेश
आसनसोल कोर्ट के वरीय अधिवक्ताओं व प्रशासनिक अधिकारियों ने कहा कि इस संबंध में सर्वोच्च न्यायालय में लोकहित याचिका दायर की गयी थी. इस पर सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय की खंडपीठ ने 10 जुलाई, 2013 को अपने आदेश में स्पष्ट कहा था कि यदि किसी भी आपराधिक मामले में जनप्रतिनिधि के खिलाफ लोअर कोर्ट सजा की घोषणा करता है, उसी दिन से संसद या राज्य विधानसभा से उसकी सदस्यता जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा आठ की उपधारा चार के तहत स्वत: समाप्त हो जायेगी. उन्हें ऊपरी अदालत में अपील के लिए तीन माह का मिलनेवाले समय में उनकी सदस्यता बरकरार रखना असंवैधानिक है.

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