राज्य सरकार ने मनमाने तरीके से जमीन की म्यूटेशन फीस बढ़ा दी है.पंचायत, नगरपालिका व शहरी वर्ग बनाकर यह फीस ली जा रही है.पंचायत इलाकों में दस गुणा से अधिक, नगरपालिक इलाकों सौ गुणा और शहरी इलाकों में म्यूटेशन फीस को दो सौ गुणा तक बढ़ाया गया है. ग्राम पंचायत इलाकों में खेती की जमीन की म्यूटेशन फीस प्रति डिसमिल 1 रुपये थी जिसे बढ़ाकर सीधे 10 रुपये कर दिया गया है. 15 रुपये प्रति डिसमिल को बढ़ाकर 150 रुपये और 50 रुपये प्रति डिसमिल को बढ़ाकर पांच हजार रुपये कर दिया गया है. आवासीय व व्यवसायिक जमीन की म्यूटेशन फीस भी काफी बढ़ा दी गयी है.
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राज्य सरकार की नीतियों से किसान बेहाल
सिलीगुड़ी. राज्य सरकार की नीतियों से किसान सबसे अधिक परेशान हैं. यह आरोप लगाते हुए भारतीय जनता किसान मोरचा ने आंदोलन का ऐलान कर दिया है. इसके हतत 12 जुलाई को राज्य के सभी डीएलआरओ कार्यालय का घेराव कर विरोध प्रदर्शन किया जायेगा. सिलीगुड़ी जर्नलिस्ट क्लब में पत्रकारों को संबोधित करते हुए भारतीय जनता किसान […]
सिलीगुड़ी. राज्य सरकार की नीतियों से किसान सबसे अधिक परेशान हैं. यह आरोप लगाते हुए भारतीय जनता किसान मोरचा ने आंदोलन का ऐलान कर दिया है. इसके हतत 12 जुलाई को राज्य के सभी डीएलआरओ कार्यालय का घेराव कर विरोध प्रदर्शन किया जायेगा.
सिलीगुड़ी जर्नलिस्ट क्लब में पत्रकारों को संबोधित करते हुए भारतीय जनता किसान मोरचा के प्रदेश अध्यक्ष राम कृष्ण पाल ने बताया कि राज्य की तृणमूल सरकार अपनी गलतियां केंद्र सरकार पर थोपना चाहती है.
श्री पाल ने कहा कि किसान मोरचा म्यूटेशन फीस विरोधी नहीं है,लेकिन इतना अधिक बढ़ाने का विरोध कर रहे हैं. वर्ष 2005 के बाद वर्ष 2017 में म्यूटेशन फीस बढ़ायी गयी है.उन्होंने आगे कहा कि किसानों के हित में केंद्र सरकार किसान क्रेडिट कार्ड, फसल बीमा योजना, सॉइल हेल्थ कार्ड आदि विभिन्न प्रकार की योजनाएं चला रही है. पश्चिम बंगाल के अधिकांश इलाकों के किसानो को केंद्र की योजनाओं की जानकारी ही नहीं है. मिट्टी की जांच कर उसके अनुसार खेती करने पर केंद्र सरकार जोर दे रही है. बंगाल के कई इलाकों में केंद्र सरकार ने स्वयं पहल कर मिट्टी जांच केंद्र का निर्माण कराया है. दुखद यह है कि राज्य सरकार केंद्र की योजनाओं को बढ़ावा देने में सहयोग नहीं कर रही है.
उन्होंने आगे कहा कि सरकारी दर पर फसल की शुरू करने से किसान काफी खुश हुए थे. हालांकि उनकी खुशी ज्यादा दिन तक नहीं बनी रही. सरकार अनाज खरीद रही है लेकिन लाभांश किसानों तक नहीं पहुंच रहा है. वास्तविकता यह है कि उत्पादन के ठीक बाद सरकारी तौर पर अनाज या उत्पादित फसल नहीं खरीदा जा रहा है. खराब होने के डर से किसान इसको कम दाम में बेच देते हैं. किसानों के हाथ से फसल निकलने के बाद सरकारी खरीद व्यवस्था शुरू होती है. जिसकी वजह से लाभ बिचौलियों को मिल रहा रहा है. किसान उचित कीमत से भी वंचित हो रहे हैं. नोटबंदी के समय राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने स्वयं कहा था कि नोटबंदी से किसान खेती नहीं कर पा रहे हैं. उन्हें बीज, खाद व अन्य आवश्यक चीजें खरीदने में परेशानी हो रही है. जबकि वास्तविकता ऐसी नहीं थी. इस बार पूरे राज्य में आलू का काफी उत्पादन हुआ है. मुख्यमंत्री ने स्वयं यह स्वीकार किया है और सरकारी तौर पर सीधे किसानों से आलू खरीदने का ऐलान किया. अगर नोटबंदी से नुकसान होता तो इतनी खेती नहीं होती.
श्री पाल ने कहा कि तृणमूल सरकार के शासनकाल में किसानों की स्थिति बद से बदतर होती जा रही है. किसानो की बदहाली पर सरकार का कोई ध्यान नहीं है. किसानों के हित में भारतीय जनता किसान मोरचा ने पूरे राज्य में आंदोलन की मुहिम तेज करने का निर्णय लिया है. अगले 12 जुलाई को सिलीगुड़ी सहित राज्य के सभी डीएलआरओ कार्यालय का घेराव कर ज्ञापन सौंपा जायेगा. केंद्र सरकार की लाभकारी योजनाओं से अवगत कराने के लिये किसान मोरचा राज्य में अभियान चला रही है. आज के पत्रकार सम्मेलन में प्रदेश किसान मोरचा के कोषाध्यक्ष इश्वर सरकार, महासचिव निपूल व्यापारी, प्रदेश सचिव अरुण मंडल सहित अन्य सदस्य उपस्थित थे.
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