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पुलिसिया लापरवाही ने अपराधियों को अमरप्रीत की हत्या का दिया मौका

शर्मनाक : अमरप्रीत, पूरा समाज शर्मिंदा है कि किसी की लापरवाही ने दूर कर दिया तुम्हें हमारे प्यार से पहली शिकायत के समय से ही पुलिस अधिकारियों का रवैया था पूरी तरह से लापरवाह इसमें सभ्य समाज में रहने का दावा करनेवाले सुरक्षा की जिम्मेवारी कैसे सौंप सकते हैं ऐसे शख्स को हर कदम पर […]

शर्मनाक : अमरप्रीत, पूरा समाज शर्मिंदा है कि किसी की लापरवाही ने दूर कर दिया तुम्हें हमारे प्यार से

पहली शिकायत के समय से ही पुलिस अधिकारियों का रवैया था पूरी तरह से लापरवाह इसमें
सभ्य समाज में रहने का दावा करनेवाले सुरक्षा की जिम्मेवारी कैसे सौंप सकते हैं ऐसे शख्स को
हर कदम पर जांच अधिकारी से होती रही गलती, वरीय अधिकारियों ने भी नहीं की मॉनीटरिंग
आसनसोल : आसनसोल दक्षिण थाना अंतर्गत धेमोमेन न्यू कॉलानी निवासी सह इसीएल कर्मी बलकार सिंह की इकलौती बेटी अमरप्रीत कौर के हत्याकांड में आधा दर्जन अपराधियों की गिरफ्तारी कर भले ही पुलिस अपनी पीठ थपथपा रही है कि उसने कम से कम समय में हत्याकांड का खुलासा कर लिया है.
लेकिन पुलिस के तथ्य ही इसकी पुष्टि कर रहे हैं कि पुलिस अधिकारियों की लापरवाही के कारण ही अपराधियों को हत्याकांड को अंजाम देने का मौका मिल गया. यदि किसी अनुभवी और दक्ष पुलिस अधिकारी को इसका जांच दायित्व मिला होता तो मात्र 16 साल की अमरप्रीत इस कदर न हमारे बीच से चली गई होती, बल्कि हमारे बीच होती, क्योंकि उसे भी इस दुनिया में रहने और अपनी पूरी उम्र जीने का पूरा-पूरा हक था.
जिस समय अमरप्रीत का अपहरण किया गया, उस समय उसके परिजनों को इसकी जानकारी नहीं थी. उन्हें लगा कि उनकी बेटी के साथ कुछ भी अनहोनी हो सकती है. उसकी मां शिकायत लेकर आसनसोल साउथ थाना पीपी कार्यालय पहुंची. उसने पुलिस अधिकारी से आग्रह किया कि उसकी बेटी की तलाश की जाये. उसकी मां का आरोप है कि उस समय मौजूद पुलिस अधिकारी ने उससे कहा कि उसकी बेटी तो बालिग है, किसी के साथ प्रेम प्रसंग में भाग भी तो सकती है.
बजाय मामले को गंभीरता से लेने के, इस तरह की टिप्पणी करने का अधिकार किसी पुलिस अधिकारी को कैसे मिल सकता है? क्या किसी सभ्य समाज में इस तरह का व्यवहार कोई जिम्मेवार पुलिस अधिकारी कर सकता है? यदि इस तरह की घटना किसी पुलिस अधिकारी के साथ होती तो क्या उक्त पुलिस अधिकारी का जबाब वहीं होता? इस जबाव से ही यह भी स्पष्ट होता है कि पुलिस इस मामले की कितनी गंभीरता से ले रही थी.
इसके बाद हत्यारों ने उसके पिता के मोबाइल फोन पर मैसेज कर 15 लाख रूपये की फिरौती की मांग की. यह सूचना लेकर जब परिजन पीपी कार्यालय पहुंचे तो फिर उस समय भी उनके साथ सही व्यवहार नहीं किया गया. ड्यूटी पर तैनात पुलिस अधिकारी ने कहा कि जो अधिकारी इस मामले की जांच कर रहे हैं, वे छुट्टी पर हैं, उनके वापस आने के बाद ही इस मामले में आगे कार्रवाई की जायेगी.
इस दौर में जब युवतियों व महिलाओं की सुरक्षा को लेकर पूरा देश चिंतित है, कोई पुलिस अधिकारी इतना संवेदनशून्य कैसे हो सकता है? क्या पुलिस अधिकारियों ने मान लिया था कि सिवाय उसके घर से भागने के, उसके साथ कोई हादसा नहीं हो सकता है? कोई पुलिस अधिकारी इस मानसिकता के साथ पब्लिक सर्विस में कैसे रह सकता है?
अमरदीप 10 अगस्त को अपहृत हुई और 12 अगस्त की रात में उसकी हत्या की गई. इन दो दिनों में पुलिस अधिकारी ने उसके मोबाइल फोन के टावर लोकेशन को तलाशने की कोशिश नहीं की. उसके अपहरण में बिहार, झारखंड या उत्तर प्रदेश के अपराधी तो शामिल थे नहीं. जितनी जल्दी फिरौती की मांग की गई थी, साधारण अनुभव का पुलिस अधिकारी भी कह सकता है कि अपराधियों को अपहरण का कोई अनुभव नहीं है तथा यह उनका पहला अपराध है. इसके बाद तो पुलिस जांच अमरप्रीत के करीबी रहे लोगों के बीच केंद्रित करनी चाहिए थी.
पुलिस के तथ्यों के अनुसार ही पुलिस अधिकारियों ने अमरप्रीत के मित्र रहे विजय प्रसाद तथा आकाश शाह को हिरासत में लिया. उन दोनों से पूछताछ की गई. लेकिन अपहरण में उनकी मुख्य भूमिका रहने के बाद भी पुलिस अधिकारी उनसे सच नहीं उगलवा सके.
हालांकि वे पेशेवर अपराधी तो थे नहीं कि उन्हें तोड़ा नहीं जा सकता था, लापरवाही की हद तो यह रही कि पुलिस अधिकारियों ने आकाश से पूछताछ तो की, लेकिन उसके घर की तलाशी लेने या अन्य परिजनों से पूछताछ करने की जरूरत ही महसूस नहीं की. यदि आकाश के घर की तलाशी ली गई होती तो शायद अमरप्रीत की बरामदगी हो जाती. आकाश का पूरा परिवार संदिग्ध गतिविधियों में शामिल रहा था. इसकी जानकारी हुचुकपाड़ा के अधिकांश निवासियों को थी. लेकिन पुलिस की सूचना तंत्र इतना कमजोर क्यों था कि उसे इसकी जानकारी ही नहीं मिली कि उस घर में एक युवती को दो दिनों तक बंधक बना कर रखा गया है.
सबसे बड़ी लापरवाही पुलिस अधिकारियों ने यह की कि विजय और आकाश को पूछताछ के बाद पीआर बांड पर छोड़ दिया. लेकिन उन दोनों पर कोई नजर नहीं रखी गई. जब उन्हें छोड़ दिया गया तो इस हत्याकांड की मुख्य भूमिका निभा रही आकाश की मां दीपिका शाह को लग गया कि पुलिस कभी भी पूरे गिरोह को दबोच सकती है. इसके बाद ही अमरप्रीत की हत्या का निर्णय लिया गया. यदि पुलिस अधिकारी ने जांच का दायरा कस रखा होता तो अपराधियों को हत्या करने का मौका ही नहीं मिलता.
सबसे बड़ा सवाल यह है कि पुलिस को पहले शव मिला या जांच अधिकारी ने आकाश तथा विजय को दोबारा पूछताछ के लिए हिरासत में लिया. पुलिस का कहना है कि दोबारा पूछताछ में उन्होंने अपना अपराध स्वीकार कर लिया और स्वीकार किया किया कि अमरप्रीत की हत्या की जा चुकी है और उसका शव ईस्ट अपकार गार्डेन इलाके में उनके सहयोगी सुप्रियो बक्सी के घर के सामने कूड़ेदान में बोरे में बंद कर रखा गया है.
इसके बाद पुलिस ने शव बरामद किया. उन दोनों के बारे में पुलिस अधिकारियों को क्या सूचना मिली कि पुन: पूछताछ कर हत्या का खुलासा कर लिया गया.

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