कोलकाता: महानगर में बड़ी संख्या में फरजी कंपनियों की मौजूदगी के कारण यह शहर देश में टैक्स बचाने के गढ़ के रूप में उभरा है. आय कर विभाग शहर की फरजी कंपनियों पर कार्रवाई की योजना बना रहा है. केंद्र सरकार ने काले धन पर लगाम कसने के लिए हाल ही में फरजी कंपनियों पर कड़ी कार्रवाई करने का फैसला किया है. विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि करीब 90 फीसदी फरजी कंपनियां कोलकाता में हैं. इसकी वजह यह है कि यहां ऐसी कंपनी बनाने के लिए पेशेवर आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं. इन पेशेवरों के पास अपना स्थापित नेटवर्क होता है.
अधिकारी ने कहा कि कोलकाता में आप किसी एंट्री ऑपरेटर को 50 से 70 हजार रुपये देकर फरजी कंपनी बना सकते हैं और कर बचा सकते हैं. इनके काम करने का तरीका कुछ इस तरह है कि अगर किसी को एक करोड़ रुपये की काली कमाई को सफेद बनाना है तो इस पैसे का मालिक एंट्री ऑपरेटर को एक लाख रुपये देगा. वह इस राशि को दस रुपये प्रति शेयर के हिसाब से 10000 शेयरों में बांट देगा. इसके बाद हर शेयर को 1000 रुपये के मूल्य पर फरजी कंपनी के निदेशकों को बेचा जायेगा.
इससे तुरंत कंपनी का मूल्यांकन एक लाख रुपये से एक करोड़ रुपये हो जायेगा. फर्जी कंपनियों के नेटवर्क से यह राशि कंपनी के असली मालिक तक पहुंच जायेगी. अक्सर इन कंपनियों के निदेशक चाय बेचने वाले या सिक्योरिटी गार्ड होते हैं. पूंजी जितनी ज्यादा होगी, कंपनी के पंजीकरण की लागत उतनी ही ज्यादा होगी. आय कर विभाग के अधिकारी ने कहा कि कोलकाता में चार्टर्ड अकाउंटेंट अच्छी तादाद में हैं. निदेशक ढूंढना आसान हैं जो पांच हजार रुपये लेकर कहीं भी हस्ताक्षर कर देंगे. दलाल और एंट्री ऑपरेटर भी उपलब्ध हैं जो एक ही जगह और एक ही लैपटॉप से कई कंपनियां चलाते हैं. सूत्रों के मुताबिक आय कर विभाग ने कोलकाता में डेढ़ लाख से अधिक फरजी कंपनियों और करीब 6000 चार्टर्ड अकाउंटेंट की पहचान की है. कोलकाता में विभाग के मुख्य आयुक्त सुब्रत कुमार दास ने इस मुद्दे पर टिप्पणी करने से इनकार किया.
इन कंपनियों में आमदनी नहीं खर्च दिखाया जाता है : पंकज
वित्तीय गड़बड़ी के मामलों के विशेषज्ञ व परामर्शदाता पंकज सराफ के अनुसार सब कच्चे को पक्का एवं पक्के को कच्चा बनाने का खेल है. इनकप टैक्स के कोप से बचने के लिए लोग ऐसी फरजी कंपनियां बनाते हैं, जहां आमदनी नहीं केवल खर्च दिखाया जाता है. साल में कंपनी को 50 हजार से एक लाख रुपये तक नुकसान में दिखाया जाता है. नुकसान की यह सीमा आने वाले वर्षों में बढ़ती ही जाती है. इस गोरखधंधे का सबसे मजेदार पहलू यह है कि घाटे में चल रही इन कंपनियों की खरीद-बिक्री भी होती है. ऐसी कंपनियों की बिक्री के मामले में कोलकाता सबसे आगे है, इसलिए यहां फरजी कंपनियां बड़ी संख्या में फल-फूल रही हैं. इस प्रकार की कंपनी खोलने के लिए एक ट्रेड लायसेंस की जरूरत होती है आैर हमारे यहां कोलकाता नगर निगम तो एक टेबल स्पेस पर भी ट्रेड लायसेंस जारी कर देता है. उसके बाद किसी ड्राइवर, पान वाले, चाय वाले इत्यादि को कंपनी का डायरेक्टर बना कर कंपनी खड़ी कर दी जाती है. कोई भी कागजों की जांच करने की कोशिश तक नहीं कर पाता है. कई बार तो चोरी के कागजात पर ट्रेड लायसेंस हासिल कर लोग कंपनी खड़ी कर लेते हैं.
जालसाजी का यह आलम है कि इस प्रकार की कंपनियों के रजिस्टर्ड ऑफिस तक नहीं मिलते हैं. दिल्ली की भारत शिपिंग लिमिटेड नामक कंपनी के पास हमारे एक क्लायंट का दस लाख रुपये का एक चेक बाउंस हो गया था. इस संबंध में हम लोगों ने कंपनी आैर उसके तीन डायरेक्टरों पर मामला दायर किया था. उस वक्त हम लोग हैरत में रह गये, जब हमारे द्वारा किये गये एक आरटीआइ के जवाब में पुलिस ने बताया कि उस कंपनी का रजिस्टर्ड ऑफिस पिछले तीन वर्ष से खुला तक नहीं है आैर न ही उसके निदेशकों का कोई अता-पता है. हालांकि श्री सराफ ने बताया कि अब थोड़ी स्थिति बदल रही है. थोड़ी सख्ती देखने को मिल रही है. पर अभी भी सिस्टम में काफी कमी है. जिसका लोग फायदा उठा कर अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं.