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Bakrid 2022: 10 जुलाई को मनेगी बकरीद, जानें क्यों दी जाती है कुर्बानी और किन चीजों का रखना होता है ख्याल

Bareilly News: दरगाह आला हजरत के मरकजी दारुल इफ्ता ने रविवार को बकरीद (ईद-उल-अजहा) का ऐलान कर दिया है. देश भर में 10 जुलाई यानी रविवार को ईद-उल-अजहा होगी. ईद का ऐलान होने के बाद ईदगाह और मस्जिद के इमाम ने नमाज की तैयारियां शुरू कर दी हैं.

Bareilly News: दरगाह आला हजरत के मरकजी दारुल इफ्ता ने रविवार को बकरीद (ईद-उल-अजहा) का ऐलान कर दिया है. देश भर में 10 जुलाई यानी रविवार को ईद-उल-अजहा होगी. ईद का ऐलान होने के बाद ईदगाह और मस्जिद के इमाम ने नमाज की तैयारियां शुरू कर दी हैं. ईदगाह में साफ-सफाई के साथ रंग- रोगन का कार्य शुरू हो गया है. जल्द ही ईदगाह और मस्जिदों में नमाज का वक्त तय कर घोषणा की जाएगी.

बकरीद की घोषणा के बाद कुर्बानी के लिए बकरों की खरीद फरोख्त शुरू हो गई है.बाजारों में बकरों की खरीद के लिए भीड़ लगने लगीं है.इसके साथ ही बकरीद को लेकर बकरों के दाम में भी इजाफा हुआ है.05 से 06 हजार के दाम में बिकने वाले बकरे 8 से 10 हजार तक के बिक रहे हैं, जबकि बाजार में एक से दो लाख तक के बकरे बिकने के लिए आ चुके हैं.

ईद से दो महीने बाद बकरीद

इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार, बकरीद जिलहिज्ज के महीने में मनाई जाती है.यह ईद-उल-फित्र यानी मीठी ईद के करीब 02 महीने बाद बकरीद आती हैं.इस दिन मुस्लिम बड़ी संख्या में बकरे, भैंस की कुर्बानी देते हैं. मगर, इनको पहले घर में पालना जरूरी होता है.इनकी सेवा करने के बाद कुर्बानी करने वालों को मुहबब्त हो जाती है.इसके साथ ही अन्य जानवरों की भी कुर्बानी कर सकते हैं. कुर्बानी के बाद उसके गोश्त को तीन हिस्सों में बांटा जाता है.शरीयत के अनुसार गोश्त का एक हिस्सा गरीबों में बांटा जाता है. दूसरा हिस्सा रिश्तेदारों के लिए और तीसरा हिस्सा अपने घर के लिए रखने का हुक्म है.

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इसलिए होती है कुर्बानी

हजरत इब्राहिम अलैहिस्लाम अल्लाह के पैगंबर हैं. हजरत इब्राहिम अलैहिस्लाम ने जिंदगी भर (ताउम्र) दुनिया की भलाई की. उनका जीवन जनसेवा और समाजसेवा में ही बीता था, लेकिन करीब 90 वर्ष की उम्र तक उनके कोई संतान नहीं हुई,तब उन्होंने अल्लाह की इबादत की. इसके बाद चांद से बेटे हजरत इस्माइल अलैहिस्सलाम की पैदाइश (जन्म) हुआ. हजरत इब्राहिम अलैहिस्लाम को सपने में फरमान (आदेश) हुआ कि अल्लाह की राह में कुर्बानी दो. अपने पहले ऊंट की कुर्बानी दी. आपको फिर से सपना आया कि अपनी सबसे प्यारी चीज कुर्बान कर दो. इस पर हजरत इब्राहिम अलैहिस्लाम ने अपने सभी जानवर कुर्बान कर दिए, लेकिन आपको फिर वही सपना आया. फिर सबसे प्यारी चीज कुर्बान करने का आदेश हुआ.

अपने सभी प्रिय जानवर कुर्बान करने के बाद अल्लाह पर भरोसा रखते हुए हजरत इब्राहिम ने अपने बेटे हजरत इस्माइल को कुर्बान करने का निर्णय लिया. अपनी पत्नी से बेटे को नहलाकर तैयार करने के लिए कहा. आपकी पत्नी ने ऐसा ही किया और इसके बाद फिर हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम अपने बेटे को लेकर कुर्बानी देने के लिए चल दिए. अल्लाह ने हजरत इब्राहिम की मुहब्बत (निष्ठा) को देखा, तो उनके बेटे की कुर्बानी को बकरे की कुर्बानी में बदल दिया. दरअसल, जब हजरत इब्राहिम ने अपने बेटे की कुर्बानी दी तो आपने अपनी आंखों पर काली पट्टी बांध ली. कुर्बानी देने के बाद जब उन्होंने आंखों से पट्टी खोली तो हजरत इस्माइल को खेलते हुए देखा और इस्माइल की जगह पर एक बकरे की कुर्बानी हो चुकी थी. इस्लामिक इतिहास की इस घटना के बाद से ही कुर्बानी की शुरुआत हुई थी.

रिपोर्ट : मुहम्मद साजिद

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