खरसावां : कुचाई की तसर सिल्क उद्योग की सफलता से लबरेज राज्य सरकार अब कुचाई के गांवों में मलवाड़ी सिल्क की खेती को बढ़ावा देने जा रही है. इस बावत कुचाई के पगारडीह, सांकोडीह, बाईडीह व तिलोपदा में करीब 50 एकड़ जमीन पर शहतूत का पौधारोपण किया गया है. अगले साल तक इन पौधों पर कीट पालन हो सकेगा.
कीट पालन के साथ ही मलवाड़ी सिल्क की खेती भी शुरू हो जायेगी. चालू वित्तीय वर्ष में भी खरसावां कुचाई के कुछ ओर हिस्सों में शहतूत का पौधारोपण करने की योजना है. खरसावां अग्र परियोजना पदाधिकारी सुशील कुमार ने बताया कि सिल्क के चार किस्मों में मलवाड़ी सिल्क सबसे उन्नत व विश्व में सर्वाधिक पसंद किये जाने वाला सिल्क कपड़ा है. झारखंड में इसकी खेती काफी कम होती है. मलवाड़ी सिल्क मुख्य रुप से कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु व पश्चिम बंगाल के कुछ क्षेत्रों में होता है.
प्रयोग के तौर पर अब कुचाई में भी इसे शुरू किया जा रहे है. सफलता मिलने की स्थिति में आगे 360 एकड़ जमीन पर मलवाड़ी सिल्क की खेती कराने की योजना है. इसके लिये किसान समूहों का भी गठन किया जा रहा है. मलवाड़ी की खेती शहतूत के पेड़ों पर होती है. फिलहाल कुचाई में बड़े पैमाने पर तसर सिल्क की खेती होती है. मलवाड़ी सिल्क की खेती से किसानों को तसर सिल्क के मुकाबले रोजगार अधिक होने की संभावना व्यक्त की जा रही है. तसर सिल्क के उन्नत किसान मरांगहातु, कुचाई के जोगेन हेंब्रम बताते है कि पहले कुचाई क्षेत्र में भी मलवाड़ी सिल्क की खेती होती थी. परंतु अब शहतूत के पेड़ बिरले ही देखने को मिलते है, इस कारण इसकी खेती न के बराबर हो रही है. कुचाई का माहौल मलवाड़ी सिल्क की खेती के लिये काफी अनुकूल है.
सूख रहे हैं पौधे, सिंचाई की आवश्यकता
कुचाई के पगारडीह, सांकोडीह, बाईडीह व तिलोपदा में करीब 50 एकड़ जमीन पर पौधारोपण किये गये शहतूत के पौधे सुख रहे है. बारिश नहीं होने व सिंचाई की कमी के कारण कई पौधे मरने की कगार पर पहुंच गये है. गांव के लोगों ने बताया कि एक एनजीओ के माध्यम से पौधारोपण कराया गया था. पौधारोपण के बाद कभी भी एनजीओ की ओर से लगाये गये पौधों में पानी नहीं डाला गया. ग्रामीण बताते है, कि 15 जून से पूर्व कम से कम दो बार पौधों में पानी नहीं डाला गया, तो बड़ी संख्या में पौधे मर जायेंगे. ग्रामीणों ने पौधों की सिंचाई की व्यवस्था करने की मांग की है.