25 जून 1846 को हुआ था बपतिस्मा रांची. झारखंड के सबसे पुराने कलीसिया जीइएल चर्च का इतिहास दो नवंबर 1845 से शुरू होता है, जब जर्मनी से चार मिशनरी रांची पहुंचे थे. उन्होंने बेथेसदा कंपाउंड में अपना डेरा डाला था. यहां की भाषाएं सीखी और सुसमाचार प्रचार, शिक्षा सहित अन्य क्षेत्रों में काम शुरू किया. जीइएल चर्च में पहला बपतिस्मा 25 जून 1846 को हुआ था. पहला बपतिस्मा लेनेवाली एक अनाथ बच्ची थी, जिसका नाम मार्था था. रांची आनेवाले जर्मन मिशनरियों में एक इमिल शत्स ने मार्था को बपतिस्मा दिया था. मार्था के बारे में कहा जाता है कि वह दानापुर की निवासी थी और बीमार थी. मिशनरियों ने उसकी देखभाल और सेवा की, लेकिन बपतिस्मा के बाद उसकी मौत हो गयी. उसका अंतिम संस्कार ईसाई रीति-रिवाज के साथ किया गया. आज भी मार्था की कब्र बेथेसदा कंपाउंड के पास स्थित जीइएल चर्च कब्रिस्तान में है. कब्र के ऊपर गड़े पत्थर पर मार्था का नाम और बपतिस्मा देनेवाले पादरी इमिल शत्स का नाम अंकित है. जीइएल चर्च में मार्था पहली सदस्य होने के नाते सदैव याद रखी जायेगी. बेथेसदा कंपाउंड में मार्था किंडरगार्टेन स्कूल चल रहा है. 25 जून को मार्था की कब्र पर विशेष आराधना की जायेगी. इसमें चर्च के मॉडरेटर बिशप जोहन डांग सहित अन्य बिशप, पादरी व आम विश्वासी शामिल होंगे.
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