झारखंड के 25 साल पर पूर्व मुख्य सचिव डॉ डीके तिवारी ने अर्थव्यवस्था का किया गहन विश्लेषण, कही ये बात
Jharkhand Foundation Day 2025: यदि झारखंड की तुलना हम अन्य राज्यों से करें, तो पायेंगे कि राज्य के गठन के समय वर्ष 2000-01 में 28 राज्यों में झारखंड का स्थान प्रति व्यक्ति आय के संदर्भ में 26वां था. सिर्फ दो राज्य हमसे पीछे थे उत्तर प्रदेश और बिहार. इन 25 वर्षों में आज भी झारखंड उसी स्थान पर है नीचे से तीसरे पायदान पर.
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Jharkhand Foundation Day 2025: किसी भी व्यक्ति के जीवन की तरह, किसी राज्य की स्थापना के 25वें वर्ष में कई प्रकार के द्वंद्व उठने स्वाभाविक हैं. क्या झारखंड राज्य के प्रारंभिक 25 वर्ष सामाजिक और आर्थिक विकास के दृष्टिकोण से अच्छे रहे? क्या इस राज्य की दशा और दिशा सही है? क्या हमारा भविष्य और भी अधिक सुनहरा और सुखद है अथवा संकटों से परिपूर्ण? आज पिछले 25 वर्ष, वर्तमान समय तथा भविष्य की संभावनाओं के बारे में एक समग्र विश्लेषण और विवेचना करना जरूरी है.
एडीजीपी 1360 करोड़ से बढ़कर 1,50,918 करोड़ हो गया
झारखंड का सकल घरेलू उत्पाद (एसजीडीपी) इसके जन्म के समय (2000-2001) मात्र 1360 करोड़ रुपये था. जो वर्ष 2011-2012 में बढ़कर ₹1,50,918 करोड़ हुआ और वर्ष 2023-2024 में यह ₹4,61,010 करोड़ हुआ. बिहार राज्य के अंतर्गत इस क्षेत्र के सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर वर्ष 1993-2003 के दशक में मात्र 4.8 प्रतिशत थी, जबकि इसी अवधि में देश के जीडीपी की वृद्धि दर 6.0 प्रतिशत थी. अलग राज्य बनने के पश्चात हम अपनी वृद्धि दर बढ़ाते रहे और देश की वृद्धि दर से आगे निकल गये.
तीन साल से झारखंड की जीएसडीपी 7.7 प्रतिशत पर स्थिर
वित्तीय वर्ष 2021-2022 से 2023-2024 के मध्य तीन वर्षों में झारखंड की जीएसडीपी वर्ष 2011-2012 के स्थिर मूल्य पर 7.7 प्रतिशत वार्षिक वृद्धि दर से बढ़ी, जो वर्तमान मूल्य पर 10.7 प्रतिशत आंकलित की गयी है. आनेवाले वर्षों में यह वृद्धि दर देश की वृद्धि दर से आगे रहने की संभावना है और 2025-2026 में 7.5 प्रतिशत वृद्धि दर का अनुमान है. हम पूरी तरह से आशान्वित हैं, कि हमारा झारखंड वर्ष 2029-2030 तक ₹10 ट्रिलियन (₹10 लाख करोड़) की अर्थ व्यवस्था की उपलब्धि प्राप्त कर लेगा.
प्रति व्यक्ति वार्षिक औसत आय दूसरा सबसे महत्वपूर्ण सूचकांक
राज्य का दूसरा महत्वपूर्ण सूचकांक होता है प्रति व्यक्ति की वार्षिक औसत आय, जो राज्य के गठन के समय मात्र ₹14,392 थी. प्रति व्यक्ति आय वर्ष 2010-2011 में ₹38,350, वर्ष 2021-2022 में ₹57,172 और वर्ष 2023-2024 में बढ़ कर ₹65,062 हो गयी. इसी अवधि में वर्तमान मूल्य पर यह क्रमशः ₹88,500 तथा ₹1,05,274 रही. इस प्रकार प्रति व्यक्ति आय की वृद्धि दर स्थिर मूल्य पर 6.7% वार्षिक तथा वर्तमान मूल्य पर 9.1% रही.
पर कैपिटा इनकम मामले में 25 साल बाद भी झारखंड 26वें स्थान पर
यदि झारखंड की तुलना हम अन्य राज्यों से करें, तो पायेंगे कि राज्य के गठन के समय वर्ष 2000-01 में 28 राज्यों में झारखंड का स्थान प्रति व्यक्ति आय के संदर्भ में 26वां था. सिर्फ दो राज्य हमसे पीछे थे उत्तर प्रदेश और बिहार. इन 25 वर्षों में आज भी झारखंड उसी स्थान पर है नीचे से तीसरे पायदान पर. यह एक त्रासदी है. हम यह कह कर संतोष कर सकते हैं कि बिहार की तुलना में हमने बेहतर किया. जब अलग हुए तो झारखंड की प्रति व्यक्ति औसत आय बिहार की तुलना में लगभग 34% अधिक थी, अब यह 44.6% अधिक है.
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राजकोषीय स्वास्थ्य सूचकांक में झारखंड चौथे नंबर पर
नीति आयोग द्वारा देश के राज्यों की वित्तीय स्थिति का मूल्यांकन करने के लिए राजकोषीय स्वास्थ्य सूचकांक, 2025 रिपोर्ट प्रकाशित की गयी है. देश भर में झारखंड को चौथा स्थान मिला है और हमारे राज्य को सबसे ऊपर की श्रेणी अचीवर में रखा गया है. इससे सिद्ध होता है कि हमारा वित्तीय प्रबंधन उत्तम है, किन्तु इसका गहराई से विश्लेषण करने पर स्थिति थोड़ी चिंताजनक लगती है.
2018-19 से ही झारखंड का बजट सरप्लस
मात्र 2020-21 को छोड़कर झारखंड का बजट वर्ष 2018-19 से ही सरप्लस रहा है. राज्य का बजट घाटे का नहीं रहा, जिसे नीति आयोग ने अच्छे वित्तीय प्रबंधन का खिताब देकर उसकी सराहना की है. 2022-23 में रेवेन्यू सरप्लस ₹13563 करोड़ था, वर्ष 2023-24 में ₹11252 करोड़ और वर्ष 2024-25 में यह अधिशेष (सरप्लस) ₹18968 करोड़ अनुमानित है. विचार करने वाली बात यह है कि राज्य का अच्छा राजकोषीय प्रबंधन और रेवेन्यू सरप्लस क्या सचमुच राज्य की अच्छी दशा और स्थिति का परिचायक है?
Jharkhand Foundation Day 2025: व्यय करने की क्षमता ही तो कमजोर नहीं?
कहीं ऐसा तो नहीं कि राज्य की व्यय करने की क्षमता (कैपेसिटी) ही कमजोर है और हम योजनाओं की परिकल्पना तथा सूत्रण तक ही सीमित रह जाते हैं? संभवतः यहीं पर राज्य के सिस्टम की कमजोरी है. जब हम योजनाबद्ध ढंग से पूरा व्यय करने में सक्षम नहीं होंगे, तो यह स्वाभाविक है कि राज्य का बजट रेवेन्यू सरप्लस बजट होकर रह जायेगा. राज्य के सभी विभागों, जो समाज कल्याण/सामाजिक क्षेत्र तथा आधारभूत संरचनाओं के विकास से संबंधित हैं, को सुदृढ़ करते हुए अधिक प्रभावी बनाने की आवश्यकता है.
पूंजीगत व्यय अधिक होगा, तभी होगा अपेक्षित विकास
राज्य का पूंजीगत व्यय अधिक होगा, तभी अपेक्षित विकास होगा तथा आर्थिक विकास दर उच्च स्तर पर बनी रहेगी और तभी यहां आम आदमी के जीवन स्तर में सारभूत बदलाव आयेगा. झारखंड के विकास पथ पर महत्वपूर्ण चुनौतियां अभी भी हैं. अतः उनकी चर्चा करते हुए उनसे कैसे निपटा जाय इस पर चलिए विचार करें.
प्रमुख बाधाएं व चुनौतियां
कार्य-संस्कृति का अभाव : राज्य सरकार में लगभग सभी स्तरों पर वर्क कल्चर ठीक नहीं है. कार्यालयों में कर्मचारियों की अनुपस्थिति अथवा लेटलतीफी आम बात है. दूरस्थ क्षेत्रों में डॉक्टर स्वास्थ्य केंद्रों पर और शिक्षकगण विद्यालयों में उपलब्ध नहीं रहते हैं. संचिकाओं में जो निर्णय एक दिन में होने चाहिए उनमें एक सप्ताह लगना और कई निर्णयों में कई महीने बीत जाना आम बात है.
शक्तियों का केंद्रीकरण : विकसित देशों अथवा अपने ही देश के अधिक विकसित राज्यों में अधिकतर निर्णय क्षेत्रीय स्तर पर अथवा विभागीय सचिव के स्तर पर हो जाते हैं. झारखंड में मुख्य सचिव को भी किसी निम्न श्रेणी के पदाधिकारी के स्थानांतरण अथवा पदस्थापन का अधिकार नहीं है.
उत्तरदायित्व का निर्धारण न होना : राज्य सरकार में कभी-कभी इस बारे में किसी कर्मी को दंडित होना पड़ सकता है कि उसने किसी कार्य को करने में गलती क्यों कर दी. लेकिन इस बात पर शायद ही कोई दंडित हुआ हो कि उसने कार्य समय पर संपादित क्यों नहीं किया.
साप्ताहिक, मासिक व वार्षिक कार्य योजना का न होना : यद्यपि राज्य सरकार में प्रत्येक विभाग में वार्षिक बजट बनता है. लेकिन किसी को यह स्पष्ट नहीं है कि उसे इस सप्ताहांत अथवा मासांत तक क्या करना है. राज्य सरकार में कार्यालय आने पर पता चलता है कि आज क्या किया जाना है. ऐसा लगता है कि कार्यों की सूची व शैली एडहॉक रूप से तय हो जाती है. रोज जैसे कोई क्राइसिस मैनेजमेंट हो रहा हो.
अब तो उच्च न्यायालय सहित अन्य अर्द्धन्यायिक अथवा वैधानिक संस्थाओं के आदेशों में कई विभाग और पदाधिकारी अपना अधिकतर समय दे रहे हैं, जो उनके नियत उत्तरदायित्वों के निर्धारण में उत्तरोत्तर विलंब का और कार्यों के टालने का कारण बनता है.
सीमित तकनीकी तथा प्रशासनिक क्षमता
कई विभागों में महत्वपूर्ण पद या तो रिक्त पड़े रहते हैं अथवा उन पर कार्यरत पदाधिकारी/कर्मचारी तकनीकी व प्रशासनिक रूप से दक्ष नहीं हो पाते हैं. इन कर्मियों में स्तरीय प्रशिक्षण तथा बाह्य अनुभव (एक्सपोजर) का अभाव है.
भ्रष्टाचार तथा अदक्ष बर्बादी
संभवतः देश में शायद ही कोई शासन व्यवस्था है, जो पूरी तरह से निष्ठावान, पारदर्शी तथा ईमानदार हो. झारखंड में भ्रष्ट आचरण से कहीं अधिक नुकसान अदक्ष बर्बादी और अनियोजित योजनाओं से हो रहा है. इसका सबसे बड़ा उदाहरण है विकास के नाम पर भवनों का निर्माण जो वर्षों तक खाली रहकर बर्बाद हो जाते हैं. यह वैसा ही है कि हम कंप्यूटर का हार्डवेयर खरीद लें और सॉफ्वेयर के बारे में सोचें तक नहीं.
भू-अर्जन तथा वन-भूमि
झारखंड के भू-अभिलेख अभी तक पूरी तरह अद्यतन नहीं है. इससे न ही सिर्फ आमजन को जमीन के क्रय-विक्रय तथा म्यूटेशन में समस्या होती है, अपितु नये उद्योगों के लिए भूमि उपलब्ध कराने तथा राज्य सरकार की योजनाओं को धरातल में उतारने में काफी विलंब होता है. यह चुनौती और बढ़ जाती है, जब अधिकतर मामलों में वन भूमि का क्षेत्र पड़ जाने से उसके क्लीयरेंस में महीनों या कभी-कभी कई वर्ष लग जाते हैं.
राज्य के फोकस क्षेत्र
प्रकृति ने इस राज्य को खनिज, वन, जल तथा जलवायु के रूप में अच्छे प्राकृतिक स्रोत दिये हैं. अतः विकास की गति को तीव्र करने हेतु हमें इन क्षेत्रों पर फोकस करना चाहिए.
- उद्योग व खनन
- पर्यटन
- कृषि, नयी तकनीक व प्रसंस्करण सहित
- पर्यावरण तथा खनिजों के दोहन के मध्य एक संतुलन बनाये रखने का प्रयास होना चाहिए.
कंप्यूटरीकरण तथा ई-गवर्नेंस
भू-अभिलेख सहित सरकार के सभी विभागों के आंकड़ों, योजनाओं, बजट तथा प्रक्रियाओं का कंप्यूटरीकरण करते हुए उनकी पूरी प्रणाली ऑनलाइन करने की जरूरत है. केंद्र सरकार व कई राज्य सरकारों में अब कोई भी संचिका कागजों पर नहीं है. सभी कार्य ई-ऑफिस पर किये जाते हैं, जिससे गति के साथ उनका अनुश्रवण सरलता से होता है.
शक्तियों का विकेंद्रीकरण
प्रत्येक विभाग में स्टैंडिंग आदेश निर्गत कर अधिकतम शक्तियों का प्रत्यायोजन कर दिया जाये और तब पूछा जाये कि निर्णय अथवा स्वीकृति विशेष में विलंब क्यों हो रहा है. स्वास्थ्य, शिक्षा जैसे सामाजिक क्षेत्रों में क्षेत्रीय कर्मचारियों का नियंत्रण स्थानीय लोगों (पंचायत अथवा पेसा तंत्र) को सौंप दिया जाना चाहिए. पदाधिकारी इस बात पर दंडित हों कि कार्य समय सीमा में क्यों नहीं किया गया.
क्षमता विकसित करना (कैपेसिटी बिल्डिंग)
सभी आवश्यक पदों पर नियमित रूप से नियुक्ति व पदस्थापन के साथ गहन प्रशिक्षण की कार्रवाई हो. उसका कैलेंडर प्रत्येक विभाग तैयार करे.
सेवा का अधिकार (राइट टू सर्विस)
इस अधिनियम को प्रभावी करते हुए प्रत्येक विभाग के कार्य/सेवा की समय सीमा निर्धारित हो, जिसे करने के लिए कानूनी बाध्यता रहे. समय सीमा पर स्वीकृति न मिलने पर उसे स्वतः स्वीकृति माना जा सकेगा. जहां कई स्वीकृतियां कई विभागों से अपेक्षित हों वहां सिंगल विंडो सिस्टम से कार्य कराया जाये, जिसकी मॉनिटरिंग सर्वोच्च स्तर पर प्रतिमाह की जाये.
साप्ताहिक तथा मासिक कार्ययोजना
राज्य सरकार के प्रत्येक कर्मी (माननीय मंत्रीगण सहित) को यह निर्धारित करना चाहिए कि वे पूरे वर्ष के प्रत्येक सप्ताह तथा माह में क्या कार्य करेंगे. यह प्रवृत्ति समाप्त हो कि कार्यालय जाकर जो संचिका भेजी जायेगी, हमें मात्र उसका निष्पादन कर देना है.
प्रभावी लोकपाल
राज्य में लोकपाल की व्यवस्था की गयी है, किंतु यह प्रभावी नहीं है. इस संस्था को मल्टी-मेंबर बनाकर इनके कार्यों को अधिक उपयोगी बनाया जाना चाहिए. ऐसा न हो कि इसमें मात्र सरकारी सेवकों का उत्पीड़न हो, जो कार्य करते हुए बोनाफाइड मिस्टेक करते हैं. यह भी देखा जाये कि अफसर कार्यों में अनावश्यक विलंब किसी निजी हित में तो नहीं कर रहे हैं.
उच्चस्तरीय स्पेसिफिक मॉनिटरिंग
आज के समय यह बिंदु सबसे अधिक महत्वपूर्ण है. जिस प्रकार से देश के प्रधानमंत्री सभी राज्यों के मुख्य सचिवों के साथ प्रतिमाह संवाद करते हैं, (जिसे प्रगति नाम दिया गया है) उसी के अनुरूप राज्य के स्तर पर कार्य विशेष (स्पेसिफिक) अनुश्रवण सभी विभागों और जिलों से हो, जिसकी सूची पूर्व से तैयार रहे. सामान्य प्रकार से बैठक करने से उद्देश्य की प्राप्ति नहीं हो पाती है.
लगभग सभी राज्यों के सीएमओ और नयी दिल्ली में पीएमओ में लगभग 20-30 जानकार पदाधिकारी अलग-अलग विभागों/क्षेत्रों की जिम्मेदारी संभालते हैं और दैनिक रूप से संवाद करते हैं. उन सबका निचोड़ माननीय प्रधानमंत्री/मुख्यमंत्री को दिया जाता है, जब उनकी प्रगति टाइप की बैठक होती है. इस राज्य में भी ऐसा करना अत्यंत लाभकारी होगा. झारखंड की यात्रा सही पथ पर है, बस थोड़ी और ऊर्जा के साथ लगातार परिश्रम करें, तो ऐसी कोई वजह नहीं है कि हम विकसित राज्यों में सबसे आगे न रह पायें.
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