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झारखंड: विभिन्न देशों में युद्ध के कारण राह बदल रहे परिंदे, जलाशयों में कम हुई संख्या

शरद ऋतु के आगमन के साथ राज्यभर में प्रवासी पक्षियों का डेरा जमने लगता है. कुछ वर्ष पहले तक राजधानी रांची और राज्य के विभिन्न जलाशयों में सैकड़ों प्रवासी पक्षी नजर आते थे.

 रांची, अभिषेक रॉय : शरद ऋतु के आगमन के साथ राज्यभर में प्रवासी पक्षियों का डेरा जमने लगता है. कुछ वर्ष पहले तक राजधानी रांची और राज्य के विभिन्न जलाशयों में सैकड़ों प्रवासी पक्षी नजर आते थे. जबकि इस बार युद्ध परिस्थितियों के कारण उत्तरी और दक्षिण एशियाई देशों से पहुंचनेवाले पक्षियों की संख्या कम है. बर्ड वाचर्स का कहना है कि 2022 की तुलना में दिसंबर माह के दूसरे सप्ताह में आये पक्षियों की संख्या कम है. रांची में साइबेरिया व रूस, अफ्रीका, यूरोप, अफगानिस्तान और दक्षिण-पश्चिमी देशों से बड़ी संख्या में प्रवासी पक्षी पहुंचते थे, लेकिन इस बार इनकी संख्या कम है. पहले जहां एक ही प्रजातिवाले पक्षियों के बड़े झुंड 250 से 300 की संख्या में एक साथ नजर आते थे, इस बार छोटी टुकड़ी में हैं. पूर्व पीसीसीएफ वन्य प्राणी सह पूर्व चेयरमैन बायो डायवर्सिटी बोर्ड लाल रत्नाकर सिंह ने बताया कि प्रवासी पक्षियों की संख्या में कमी आयी है. देश-विदेश में युद्ध स्थिति के कारण आसमान में वायु सेना की गतिविधि ज्यादा है. विस्फोटक के कारण प्रदूषण का स्तर बढ़ा है. दूसरी ओर समुद्र में भी कई परीक्षण हो रहे हैं और इसका सीधा असर बर्ड रूट पर पड़ा है. समकालीन परिस्थितियां नहीं होने से भी पक्षियों को परेशानी हो रही है.

इस बार छोटे प्रवासी पक्षियों की संख्या ज्यादा

शहर के जलाशयों में इस बार बत्तख प्रजाति के पक्षियों की संख्या कम हुई है. पतरातू डैम में साइबेरियन सीगल के झुंड छोटी संख्या में हैं, जबकि आसपास के जगंल इलाके जैसे बोड़ेया, रुक्का, कांके, होरहाब, जोन्हा के हपतबेड़ा, कोयनारडीह, जागरा हिल्स, राधु नदी, खेरवातिरका, पतरातू, ओरमांझी में छोटे आकार के प्रवासी पक्षियों की संख्या ज्यादा हैं. इनमें ब्लैक रेडस्टार्ट, ब्लैक हेडेड बंटिंग, ब्लूथ्रोट, ब्लीथ्स रीड वार्बलर, कॉन केस्ट्रेल, कॉमन रोजफिंच, यूरेशियन कूट, गार्गेनी, ग्रे-बेलिड कुकू, हम्स वार्बलर और साइबेरियन रूबीथ्रोट, सल्फर बेलिड वार्बलर और वर्डिटर फ्लाइकैचर जैसे पक्षी शामिल हैं. ये पक्षी सुमात्रा, दक्षिण-पूर्व व पश्चिमी यूरोप, यूनाइटेड किंग्डम, बांग्लादेश, साइबेरिया व रूस जैसे देशों से हजारों किमी की उड़ान भर कर राजधानी और राज्य के जंगलों में नजर आ रहे हैं.

पहली बार दिखे साइबेरियन रूबीथ्रोट और ब्लैक हेडेड बंटिंग

राजधानी के जंगलों में पहली बार साइबेरिया से चलकर साइबेरियन रूबीथ्रोट और दक्षिण-पूर्व यूरोप में पाये जानेवाले छोटे आकार के पक्षी ब्लैक हेडेड बंटिंग नजर आ रहे हैं.

साइबेरियन रूबीथ्रोट

ये पक्षी गीले क्षेत्रों के पास प्रजनन करने पहुंचते हैं. साइबेरियन रूबीथ्रोट वयस्क नर का गला लाल होता है और शरीर में काले व सफेद रंग की धारियां होती हैं. इन्हें सिंगिंग बर्ड भी कहा जाता है.

ब्लैक हेडेड बंटिंग

इन पक्षियों में नर की पहचान उनके सिर पर काले रंग, चमकीले पीला कॉलर, निचला हिस्सा पीले और भूरे रंग की धारियों से किया जाता है. वहीं मादा पूरी तरह से भूरे रंग की होती है, जिसके छिद्र पर हल्के पीले रंग का धब्बा होता है और दुम पर पीले रंग के निशान होते हैं. इनकी चहचहाहट गौरैया जैसी होती है. (नर और माता की तस्वीर है)

कई तरह के बाज और गिद्ध भी आ रहे नजर

जंगल और नमी वाले इलाके में कई तरह के बाज और गिद्ध की प्रजाति नजर आ रही है. इनमें वाइट रम्पड वल्चर, ऑस्, पाइड हैरियर, स्टेप्पी इगल, वेस्टर्न मार्श हैरियर जैसे बड़े पक्षी जोड़े में नजर आ रहे हैं.

प्रवासी पक्षी चूजों को कर रहे हैं तैयार

हजारीबाग के जलाशयों में इस बार मोर्हेन, पिग्मी गूज और फिजैंट टेल्ड जकाना जैसे प्रवासी पक्षी अपने चूजों का पोषण करते नजर आ रहे हैं. ये पक्षी अपने प्रवास काल में शहरी जलाशयों के आसपास समय गुजारते हैं. बच्चों के अंडे से निकलने के बाद उन्हें प्रशिक्षण देने के बाद ही अगले गंतव्य की ओर निकलते हैं.

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बर्ड वाचर्स ने कहा

राजधानी के जलाशयों में बत्तख प्रजाति के प्रवासी पक्षी भी देखे जा रहे हैं. जंगल इलाके में कई छोटे प्रजाति के पक्षियों को चिह्नित किया जा रहा है.

सुशील कुमार

सेंचुरी नेचर फाउंडेशन की ओर से मड ऑन बूट फेलोशिप मिलने के बाद से बर्ड वॉचिंग को बढ़ाया. इसके लिए अहली सुबह का समय सबसे सटीक है.

साहेबराम बेदिया

काम के बीच से समय निकाल कर बर्ड वाचिंग करना एक अच्छा अनुभव है. इ-बर्ड वेबसाइट के लिए इस वर्ष कई पक्षियों को चिह्नित कर पाया हूं.

सोवोन प्रभात

शहर के विभिन्न जलाशयों में इन दिनों प्रवासी पक्षियों को देखा जा सकता है. कई गिद्ध और विदेशी बाज भी देखे जा रहे हैं.

अहमद नजम साकिब

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