8.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

गुरुनानक जयंती पर विशेष : सभ महि जोति जाेति है सोई : गुरुनानक देवजी

डाॅ एमपी सिंह बिरले ही ऐसे गुरु होते हैं, जो अपने शिष्यों के मार्ग के कण-कण को प्रकाशमय कर देते हैं. जीवन पथ आलोकित कर सुगम सरल करनेवाले ऐसे ही एक प्रकाशपुंज का नाम है श्री गुरुनानक देव जी. ज्ञान की ज्योति से चमक कर जब कण-कण जीवंत हो उठता है तभी प्रभु की सर्व […]

डाॅ एमपी सिंह
बिरले ही ऐसे गुरु होते हैं, जो अपने शिष्यों के मार्ग के कण-कण को प्रकाशमय कर देते हैं. जीवन पथ आलोकित कर सुगम सरल करनेवाले ऐसे ही एक प्रकाशपुंज का नाम है श्री गुरुनानक देव जी. ज्ञान की ज्योति से चमक कर जब कण-कण जीवंत हो उठता है तभी प्रभु की सर्व व्यापकता का अाभास होता है. ज्ञान की यह ज्योति गुरु से ही प्राप्त होती है. गुरुनानक देव जी की वाणी उनके अपने अनुभवों की उपज है, जिसमें उन्होंने उस निराकार प्रभु से साक्षात्कार किया है, जिसकी सत्ता हर आकार में मौजूद है. प्रभुनाम जब हृदय में समाता है, तभी शाश्वत सत्य की दिव्यता के दर्शन होते हैं.
निरी पाठ पूजा या कर्मकांड स्थूल आस्था है, सत्य की पूजा सूक्ष्म अन्वेषण की दृष्टि देती है. ये सत्य जब जीवन को सुगंधित करता है, तो आचरण अपने आप प्रभु योग्य हो जाता है. इसलिए धर्म सिर्फ कोरा सिद्धांत है, अगर वह मनुष्य के आचरण में नहीं उतरता है. चिंतन का उद्देश्य ही आचरण को परिष्कृत करना है. ईश्वर एक है, स्वयंभू है, शाश्वत सत्य है. गुरसिख के लिए वह एक सर्वशक्तिमान, सर्वदर्शी सच्चाई है,
इसलिए उसका आचरण इसी सत्य के अनुरूप होना चाहिए. यही बात गुरुनानक देव जी ने अपनी वाणी में बार-बार दोहरायी है. इस सत्य की समझ सांझीवालिता देती है, सत्संग को प्रेरित करती है, समानता का भाव स्थापित करती है. गुरसिख को सेवा के लिए सदा तत्पर करती है.
गहरी रमी अभिभूति में गुरुनानक देव जी पर वाणी प्रकट होती है…
तुम्हारी हजारों आंखें है, फिर भी कोई आंख नहीं.
तुम्हारे हजारों स्वरूप है, फिर भी निराकार हो.
दस लाख पांव है, फिर भी कोई पैर नहीं.
तुम निर्गंध हो, फिर भी अनंत सुगंधें तुमसे निकलती है.
तुम्हारी ऐसी शोभा ने, मेरे स्वामी, मेरा मन मोह लिया है.
तुम्हारा ही उजाला चारों तरफ फैला है.
(धनासरी)
गुरुनानक देवजी ने ईश्वर को अपना मालिक मान स्वयं को दास कहा है. अपनी वाणी में उन्होंने प्रभु को कई नामों से संबोधित किया है. जैसे-राम, हरि, गोविंद, रब, रहीम, करतार आदि.
प्रकाशमय होने के क्रम में सत्य की पड़ताल, स्वयं की पड़ताल भी है अौर अपने कर्मों की पड़ताल भी. इसी से ज्ञानोदय होता है और अंतत: उजाला भी.
गुरुनानक देवजी के अनुसार सत्य के इस मार्ग में विचलित होने से गुरु ही बचाते हैं. सच्चे गुरु का महिमागान गुरुनानक देव जी ने अपनी वाणी में जी खोल कर किया है. गुरु सिर्फ मार्गदर्शक हैं, स्वयं ईश्वर नहीं, इसलिए उन्होंने अपने आप को गुरु कहलाना पसंद किया, पैगंबर नहीं. वे कहते हैं, अगर तुम्हें सच्चे धर्म की राह देखनी है, तो दुनिया की बुराइयाें को देखो और अपने आप को इन बुराइयों से मुक्त कराे.
गुरुनानक देव जी ने आस्था को भाग्यवाद से अलग किया. वे कहते हैं कि दृढ़ इच्छाशक्ति भाग्य से ज्यादा ताकतवर है. वे आत्मविश्वास को बढ़ा जीवन जीते हुए ही मुक्ति के उपाय भी बताते हैं, ताकि सहज-अवस्था को प्राप्त किया जा सके.
हृदय की अशुद्धता… लोभ है.
जीभ की अशुद्धता…असत्य है.
नेत्रों की अशुद्धता…पराई संपति और कामिनीमोह है.
कानों की अशुद्धता…झूठी निंदा है
जीवन की इस सहजता में संगीतमय वाणी है, कोमलता है, आशा है, सभी के लिए निर्मल स्नेहधारा है, साध संगत के रूप में घनिष्ठता एकजुटता है, प्रभुनाम का सिमरन है. यह आनंद की अवस्था है अौर स्वास-स्वास प्रभुनाम, सृष्टि के कर्ता का अाभार प्रकट करता है. गुरुनानक देवजी के अनुसार एक गुरुसिख की विनीत जीवनशैली एेसी ही हाेनी चाहिए. आज के तनावपूर्ण जीवन में, गुुरुनानक देवजी की वाणी समूचे विश्व को सौहार्द, भाईचारे और सुख शांति का संदेश देती है.
गुरुनानक देवजी के पावन प्रकाश दिवस पर आप सभी को मेेरा स्नेह और आदर भरी शुभकामनाएं.
लेखक वरिष्ठ लेप्रोस्कोपिक सर्जन हैं

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें