कथा पावस . आर्यभट्ट सभागार में तीन दिवसीय राष्ट्रीय कथा गोष्ठी का उदघाटन
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युवा पढ़ने की आदत डालें : अमर बाउरी
कथा पावस . आर्यभट्ट सभागार में तीन दिवसीय राष्ट्रीय कथा गोष्ठी का उदघाटन आर्यभट्ट सभागार में श्ुक्रवार काे तीन दिवसीय राष्ट्रीय कथा गोष्ठी की शुरुआत की गयी. उक्त गोष्ठी में देश के विभिन्न राज्यों से आये कथाकार, लेखक व आलोचक हिस्सा ले रहे हैं रांची : झारखंड में निवास करनेवाले लोगों का यहां पहला हक […]
आर्यभट्ट सभागार में श्ुक्रवार काे तीन दिवसीय राष्ट्रीय कथा गोष्ठी की शुरुआत की गयी. उक्त गोष्ठी में देश के विभिन्न राज्यों से आये कथाकार, लेखक व आलोचक हिस्सा ले रहे हैं
रांची : झारखंड में निवास करनेवाले लोगों का यहां पहला हक बनता है. उनके विचारों को सामने लाने की आवश्यकता है. साहित्यकार झारखंड के गंभीर विषयों को भी अपने साहित्य के माध्यम से प्रचारित करें. इस दिशा में सबों को मिल कर कार्य करने की आवश्यकता है. आज के युवाअों में पढ़ने की आदत डालने की जरूरत है. स्मार्ट फोेन में व्यस्त रहने के कारण लोगों में पढ़ने की आदत कम हो गयी है. सरकार चाहती है कि हर पंचायत में एक पुस्तकालय खुले. इसके लिए प्रक्रिया शुरू की गयी है. वर्तमान परिदृश्य में मूल्यों का ह्रास हुआ है
साहित्यकार इसे वापस लाने में अपनी भूमिका निभायें. विद्यार्थियों को भी इस भूमिका में अपने को शामिल करना होगा. वामपंथी/दक्षिणपंथी होना गलत नहीं है, सबसे पहले हम भारतीय हैं. हमारी पहचान इसी में है.
उक्त बातें पर्यटन, कला-संस्कृति, खेलकूद व युवा कार्य मंत्री अमर कुमार बाउरी ने कही. वे शुक्रवार को मोरहाबादी स्थित आर्यभट्ट सभागार में आयोजित तीन दिवसीय राष्ट्रीय कथा गोष्ठी कथा पावस के उदघाटन के मौके पर बोल रहे थे. उक्त कार्यक्रम रांची विवि स्नातकोत्तर हिंदी विभाग व झारखंड कला-संस्कृति निदेशालय के संयुक्त तत्वावधान में हो रहा है.
श्री बाउरी ने कहा कि सबसे बड़ी विडंबना है कि लेखक काफी मेहनत से कथा लिखते हैं, लेकिन उन्हें उसका सही पारिश्रमिक नहीं मिलता है. लेखकों को वैश्वीकरण के इस दौर में अपने आपको स्थापित करना होगा. आज हिंदी व अंगरेजी का अलग-अलग वर्ग है.
बनारस हिंदू विवि के पूर्व प्राध्यापक व आलोचक प्रो चौथीराम यादव ने कहा कि लेखक होना बड़ी बात है, लेकिन मनुष्य होना इससे भी बड़ी बात है. मानवीय संवेदना के स्रोत सूख रहे हैं. आदमी रोबोट हो गया है.
आदमियता खत्म हो रही है. रुपये की खनक ने लोगों को पीछे धकेल दिया है. विकास हो, लेकिन व्यवस्था का भी विकास करना जरूरी है. समाज को दावं पर रख कर नहीं. आज चैन्नई, हैदराबाद, पुणे, मुंबई जैसे शहर सूचना एवं प्रौद्योगिकी में सबसे आगे हैं, लेकिन गांव की स्थिति खराब हो रही है. किसान आत्महत्या कर रहे हैं.
एक रचनाकार विकास का मॉडल अपने ढंग से देखता है. प्रेमचंद गांव के दर्द को समझते थे. उनका पंच परमेश्वर कथा का यह शताब्दी वर्ष चल रहा है. यह बड़ी बात है कि एक लेखक की कथा का कहीं शताब्दी वर्ष मनाया जा रहा हो. उन्होंने कहा कि आज न्यायपालिका भी कभी-कभी संदेह के घेरे आ जाती है. जब न्याय भी विवश दिखता है, तो पंच परमेश्वर कथा याद आती है. अभी स्थिति यह है कि एक झूठ को छिपाने के लिए करोड़ों खर्च हो जा रहे हैं.
प्रो यादव ने कहा कि भूमंडलीकरण अौर बाजारीकरण ने लोगों को दिशाहीन कर दिया है. लोगों को बिगाड़ दिया है. भ्रम की स्थिति पैदा हो गयी है. राष्ट्र निर्माण में तीन चौथाई आबादी की भागीदारी जरूरी है. कला संस्कृति विभाग के सचिव सत्येंद्र सिंह ने कहा कि लेखक अपनी कहानी को विकास यात्रा में मूल्यवान बनायें. बच्चों को पढ़ने व कहानी लिखने, सुनने के प्रति रुचि पैदा करनी होगी. विदेशों में शनिवार व रविवार को बच्चे अपने पूरे परिवार के साथ दिन-भर का समय लाइब्रेरी में बिताते हैं. विकास में परिवर्तन जरूरी है. जरूरत है अपने मूल्यों को बनाये रखने की.
कार्यक्रम की अध्यक्षता रांची विवि के कुलपति डॉ रमेश कुमार पांडेय, अतिथियों का स्वागत डीन डॉ वीवीएन पांडेय, संचालन डॉ मिथिलेश व धन्यवाद ज्ञापन विभागाध्यक्ष डॉ जेबी पांडेय ने किया. इस अवसर पर कला संस्कृति विभाग के निदेशक अशोक कुमार सिंह, श्रवण कुमार गोस्वामी, अशोक प्रियदर्शी, महुआ माजी, कामेश्वर निरंकुश, गिरधारी राम गोंझू, रांची कॉलेज के प्राचार्य डॉ यूसी मेहता, रांची विवि परीक्षा नियंत्रक डॉ आशीष झा, दूरदर्शन के निदेशक पीके झा, रामजी राय, संजीव, हरिश मोहन, दीपक राय सहित कई शिक्षक, साहित्यकार, लेखक व विद्यार्थी उपस्थित थे.
गोष्ठी में देश भर के कई कथाकार, लेखक व आलोचक ले रहे हैं हिस्सा
सूचना-अफवाह के बीच फंस रहे हैं लोग : सत्यनारायण पटेल
इंदौर से आये साहित्यकार सत्यनारायण पटेल ने कहा कि जो सूचना तंत्र आये हैं, उसे मैं गलत नहीं मानता. इसके जरिये लेखक अपनी कहानियों को अौर समृद्ध कर सकते हैं. मैं गांव से आता हूं. मैं अपनी रचना में ग्रामीण के नजरिये से पूरे देश को देखने का प्रयास करता हूं. गांवों में वर्ष 1990 के बाद जो परिवर्तन आये हैं, मैंने अपनी रचना में इन सबों का समावेश किया है. लेकिन आज देश में सूचना-अफवाह के बीच लोग फंस रहे हैं. इसका मिश्रण लोगों तक पहुंच रहा है.
प्रकाशकों की संख्या व पाठकों में रुझान बढ़ा है : राकेश मिश्र
महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विवि वर्धा से आये साहित्यकार राकेश मिश्र ने कहा कि आज समय बदल गया है. सूचना के तंत्र बढ़ गये हैं. किसी भी चीज की जानकारी लोग इंटरनेट के जरिये ले लेते हैं. इन सबके बावजूद आज प्रकाशकों की संख्या ही नहीं, बल्कि साहित्य के प्रति पाठकों का भी रुझान भी बढ़ा है. इस गोष्ठी में कई सारी पहलुओं पर भी बात हो रही है. कहानियों का स्वरूप कैसे बदल गया. कहानियों में लेखकों का क्या नजरिया होनी चाहिए. इसके अलावा और भी कई मुद्दे हैं.
एक लेखक को यह होना चाहिए कि कहानी लिखते समय समाज के हर पहलू को समग्रता से देखे.
आज के लेखकों की लेखनी में परिवर्तन आया है : मनोज पांडेय
साहित्यकार मनोज पांडेय ने कहा कि पाठकों के लिए कभी स्वर्णिम युग नहीं रहा. लेकिन आज अच्छी किताबें पाठकों तक पहुंच रही हैं. नये-नये प्रकाशक भी आ रहे हैं. अंगरेजी के प्रकाशक हिंदी की तरफ आ रहे हैं. यह अच्छी बात है. आज के लेखकों की लेखनी में परिवर्तन आया है. पहले के लेखक जो कहानियां लिखते थे, वो एक आयामी दिखता था, लेकिन आज वो नहीं लगता है. 1990 के बाद परिस्थितियां बदली हैं. यह सब परिवर्तन हमारी चेतना का हिस्सा बन गया है.
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