तसवीर हैप्रवीण मंुडारांची : आदिवासियों में साहित्य की वाचिक परंपरा रही है. एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक गीत, कहानी व मुहावरे मौखिक माध्यम से पहंुचते रहे हैं. हाल के कुछ वर्षों में पत्रिकाओं के माध्यम से आदिवासी साहित्य को सामने लाने के प्रयास हुए हैं. कई छोटी पुस्तकों के जरिये आदिवासी संस्कृति को सामने रखने के प्रयास भी हुए हैं. अखड़ा ऐसी पत्रिका है जो पिछले दस वर्षों से आदिवासी साहित्य, संस्कृति से जुड़े मुद्दे को लेकर प्रकाशित हो रही है. अब पहली बार आदिवासी साहित्य पर, इसी नाम सेे एक राष्ट्रीय पत्रिका का प्रकाशन दिल्ली से शुरू हुआ है. पत्रिका त्रैमासिक है. इसके संपादक गंगा सहाय मीणा है. संपादक मंडल में झारखंड, राजस्थान व अन्य प्रदेशों के आदिवासी बुद्धिजीवी शामिल हैं. इनमें सुषमा असुर, वंदना टेटे, शांति खलखो, अनुज लुगुन, ग्लैडसन डंुगडंुग, जनार्दन गोंड, सुरेश जगन्नाथम, सावित्री बड़ाइक, बन्नाराम मीणा, अनिल सिंह गोंड सहित अन्य के नाम शामिल हैं. पुस्तक के भीतरी आवरण पर नागालैंड की कवियित्री तेमसुला आओ (पद्यश्री एवं साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित) की कविता पहाड़ के लोग पढ़ने को मिलती है. यह पुस्तक आदिवासी जीवन दर्शन, साहित्य, संस्कृति के विभिन्न पहलुओं को छूती है. पुरखा साहित्य से लेकर कहन गायन, दर्शन वैचारिकी, देस दिसुम, कहानियां, कविताएं व अन्य स्तंभों के जरिये विभिन्न मुद्दों को सामने लाने का प्रयास किया गया है. पत्रिका के अंत में एक लेख है जो रांची में हुए एक सेमिनार से जुड़ा है. लेख में एक जगह कहा गया है कि आदिवासी साहित्य वही है जिसमें आदिवासी दर्शन है. यह पुस्तक आदिवासी दर्शन को लेकर आगे बढ़ रही है.
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आदिवासी साहित्य पर राष्ट्रीय पत्रिका शुरू
तसवीर हैप्रवीण मंुडारांची : आदिवासियों में साहित्य की वाचिक परंपरा रही है. एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक गीत, कहानी व मुहावरे मौखिक माध्यम से पहंुचते रहे हैं. हाल के कुछ वर्षों में पत्रिकाओं के माध्यम से आदिवासी साहित्य को सामने लाने के प्रयास हुए हैं. कई छोटी पुस्तकों के जरिये आदिवासी संस्कृति को सामने […]
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