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आदिम जनजाति को मिलेगा वृद्धावस्था पेंशन का लाभ
पीटीजी को सामाजिक सुरक्षा से जोड़ने की योजना रांची : झारखंड के 58 हजार से अधिक आदिम जनजाति (पीटीजी) के लोगों को सरकार की ओर से वृद्धावस्था पेंशन दी जायेगी. इस संबंध में श्रम नियोजन एवं प्रशिक्षण विभाग की ओर से पीटीजी को सामाजिक सुरक्षा योजना से जोड़ने की कार्यवाही की जा रही है. राज्य […]
पीटीजी को सामाजिक सुरक्षा से जोड़ने की योजना
रांची : झारखंड के 58 हजार से अधिक आदिम जनजाति (पीटीजी) के लोगों को सरकार की ओर से वृद्धावस्था पेंशन दी जायेगी. इस संबंध में श्रम नियोजन एवं प्रशिक्षण विभाग की ओर से पीटीजी को सामाजिक सुरक्षा योजना से जोड़ने की कार्यवाही की जा रही है.
राज्य सरकार ने पीटीजी समूह के पढ़े-लिखे युवक-युवतियों को सीधी नियुक्ति का लाभ देने की घोषणा की है.
पूर्व की सरकारों ने सीधी नियुक्ति के अलावा इन्हें बिरसा आवास योजना और मुख्यमंत्री खाद्यान्न योजना का लाभ भी दिया. 2011 की जनगणना के अनुसार राज्य में आदिम जनजाति की आबादी 2,92,359 है. इनमें पुरुषों की आबादी 146,814 है, जबकि महिलाओं की संख्या 145,545 है. सरकार ने सभी परिवारों की मुखिया को योजना से जोड़ने का निर्णय लिया है. इस जाति में अब भी साक्षरता की दर काफी कम है. सरकार ने जनजातीय शोध संस्थान के आंकड़ों के अनुरूप ही पीटीजी समूह को सामाजिक सुरक्षा के तहत लाने की कार्रवाई शुरू की है.
इन्हें छह सौ रुपये प्रति माह की दर से वृद्धावस्था पेंशन दी जायेगी. राज्य में आठ जातियां पीटीजी समूह के अंतर्गत आती हैं. इनमें असुर, बिरहोर, बिरजिया, कोरबा, माल पहाड़िया, पहाड़िया, सौरिया पहाड़िया और सबर जनजाति शामिल हैं. 2011 की जनगणना के आधार पर असुर जनजाति की कुल जनसंख्या 22459, बिरहोर जनजाति की आबादी 10726, बिरजिया जनजाति की आबादी 6276, कोरबा जनजाति की आबादी 35606, माल पहाड़िया जनजाति की जनसंख्या 135797, पहाड़िया जनजाति की आबादी 25585, सौरिया पहाड़िया की आबादी 46222 और सबर जनजाति की जनसंख्या 9698 है. इन जनजातियों की पहचान के लिए धविर आयोग (1961) ने राज्य सरकार के लिए तीन बिंदु तय किये थे. इसमें प्री एग्रिकल्चरल लेवल ऑफ टेक्नोलॉजी, एक्स्ट्रीमली लो लेवल ऑफ लिटरेसी और स्टैगैंट ओर वेरी लो ग्रोथ ऑफ पॉपुलेशन का मानक तय किया गया था. 2001 की जनगणना के आधार पर आदिम जनजाति की आबादी 22 फीसदी बढ़ी थी.
सरकार का मानना है कि आदिम जनजातियों की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है. सरकार तथा गैर सरकारी स्तर पर चलायी जा रही योजनाओं का लाभ भी इन तक नहीं पहुंच पाता है. वैसे बिरहोर जनजाति घुमंतु तथा शिकारी जीवन से उबर रहे हैं. कोरबा, पहाड़िया, सबर और बिरजिया जनजाति को भी आर्थिक प्रगति के रास्ते पर लाने के कई कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं. माल पहाड़िया और सौरिया जनजाति के लोग झूम खेती से ऊपर उठने का प्रयास कर रहे हैं.
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